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________________ ६६४] नीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला निकलकर सीधे दक्षिण दिशा में आती हुई विजयाध की गुफा से निकलकर आगे आकर सीता-सीतोदा नदी में मिल जाती है इनके उद्गम स्थान में तोरणद्वार 6योजन चौड़ा और प्रवेश स्थान में तोरणद्वार 621 योजन चौड़ा है। विदेह देश की रक्ता-रक्तोदा नदियां- सीता-सीतोदा के उत्तर तट में २-२ नदियां हैं। उनके नाम रक्ता-रक्तोदा हैं। ये नदियां निषधपर्वत के पास कुंडों से निकलकर उत्तरदिशा में जाती हुई विजयार्ध पर्वत की गुफा में प्रवेश कर आगे निकलकर सीता-सीतोदा नदियों में मिल जाती हैं इनके भी उद्गम प्रवेश के तोरणद्वार पूर्वोक्त गंगा-सिन्धु के समान हैं। प्रत्येक देश में एक-एक विजयाई और दो-दो नदियों के निमित्त से छह-२ खण्ड हो जाते हैं। इनमें एक आर्यखंड और पांच म्लेच्छ खंड कहलाते हैं। ___पूर्वोक्त कक्षा आदि विदेह देशों की मुख्य-मुख्य राजधानी इन आर्यखंडों में हैं। वृषभाचल पर्वत- इन 32 विदेह के प्रत्येक के पांच-पांच म्लेच्छ खण्ड हैं जिसमें मध्य के म्लेच्छ खण्ड में १-१ वृषभाचल पर्वत हैं। अतः विदेह क्षेत्र में ३२ वृषभाचल पर्वत हो गये हैं। इन पर वहां के चक्रवर्ती अपनी-अपनी प्रशस्तियां लिखते हैं। यमकगिरि- सीता-सीतोदा नदियों के तट पर चित्र-विचित्र एवं यमक और मेघ नाम के ४ गोल पर्वत हैं। जिन्हें यमकगिरि संज्ञा है। ये पर्वत १००० योजन ऊँचे तथा नीचे १००० योजन विस्तृत व ऊपर ५०० योजन विस्तृत हैं। इन पर्वतों पर अपने-अपने नाम वाले व्यंतर देवों के भवन हैं। सीता-सीतोदा नदी के २० सरोवरः- सीता-सीतोदा नदी के मध्य २० सरोवर हैं इनकी लम्बाई १००० योजन एवं चौड़ाई ५०० योजन है। इन सरोवरों में एक-एक मुख्य कमल एक-एक योजन विस्तृत प्रमाण वाले हैं। शेष परिवार कमल १४०११५ हैं। इन कमलों पर नागकुमारी देवियां अपने-अपने परिवार सहित रहती हैं। कांचनगिरी:- इन २० सरोवरो के दोनों तटों पर पंक्तिरूप से पांच-पांच कांचगगिरी हैं। एक तट सम्बन्धी २०४५=१०० दूसरे तट संबंधी २०४५=१०० ऐसे २०० कांचनगिरि हैं ये पर्वत १०० योजन ऊँचे, मूल में १०० योजन विस्तृत एवं ऊपर ५० योजन विस्तृत हैं। इन पर्वतों पर अपने-अपने पर्वत के नाम वाले देवों के भवन हैं। इनमें रहने वाले देव शुक (तोता) के वर्ण वाले हैं। देवों के भवनों के द्वार सरोवरों के सन्मुख हैं। दिग्गजपर्वतः- देवकुरु-उत्तरकुरु भोगभूमि में और पूर्व पश्चिम भद्रसाल वन में सीता-सीतोदा महानदी हैं। उनके दोनों तटों पर दो-दो दिग्गजेन्द्र पर्वत हैं। ये पर्वत आठ हैं। १०० योजन ऊँचे, मूल में १०० योजन विस्तृत एवं ऊपर ५० योजन विस्तृत गोल हैं। इनके नाम पद्मोत्तर, नील, देवकुरु में स्वस्तिक, अंजन, पश्चिम भद्रसाल में कुमुद, पलाश उत्तरकुरु में अवतंस, रोचन हैं। इन पर्वतों पर दिग्गजेन्द्र देव रहते हैं देवकुरु-उत्तरकुरु भोगभूमि- सुमेरु और निषध पर्वत के मध्य में देवकुरु और सुमेरु तथा नील पर्वत के मध्य में उत्तरकुरु है। कुरु क्षेत्र का विस्तार 118426-योजन है। कुरुक्षेत्रों का वृत्त विस्तार 71143 -योजन है। इसमें उत्तम भोगभूमि की व्यवस्था है। जम्बूवृक्षः- सुमेरु पर्वत के ईशान कोण में नील पर्वत के पास जम्बूनाम का वृक्ष है। यह ८ योजन ऊँचा है। इसकी वज्रमय जड़ दो कोस गहरी है। इस वृक्ष का स्कन्ध २ कोस मोटा एवं २ योजन ऊँचा है। इस वृक्ष की चारों दिशाओं में ४ महा शाखाएं हैं इनमें से प्रत्येक शाखा ६ योजन लम्बी और इतने ही अन्तर से है। इनके अतिरिक्त क्षुद्र शाखाएं अनेकों हैं। यह वृक्ष पृथ्वीकायिक है। जामुन के वृक्ष के समान इसमें फल लटकते हैं अतः यह जम्बूवृक्ष कहलाता है। जम्बूवृक्ष की उत्तर शाखा पर जिनमंदिर है। शेष ३ शाखाओं पर आदर-अनादर नाम के व्यंतर देवों के भवन है। इस वृक्ष के चारों तरफ बारह पद्म वेदिकाएं हैं प्रत्येक वेदिका में चार-चार तोरणद्वार हैं उनमें इस जम्बूवृक्ष के परिवार वृक्ष हैं उनकी संख्या १४०११९ है। इनमें चार देवांगनाओं के ४ वृक्ष अधिक हैं। अर्थात् पदमद्रह के परिवार की संख्या १४०११५ थी। इस वृक्ष के परिवार वृक्षों का प्रमाण मुख्य वृक्ष से आधा-आधा है। शाल्मली वृक्षः- इसी प्रकार निषध कुलाचल के पास सुमेरु पर्वत की नैऋत्य दिशा में देवकुरु क्षेत्र में रजतमयी स्थल पर शाल्मलि वृक्ष है। इसका सारा वर्णन जम्बूवृक्ष के समान है। इसकी दक्षिण शाखा पर जिनमंदिर है शेष ३ शाखाओं पर वेणु और वेणुधारी देवों के भवन हैं। इनके परिवार वृक्ष भी पूर्वोक्त समान हैं। इस प्रकार विदेह क्षेत्र के सुमेरुपर्वत, गजदंत, वक्षारपर्वत, विभंगानदी, बत्तीस देश, विजयार्ध, वृषभाचल, गंगा सिन्धु आदि नदियां, यमकगिरि, नदी के मध्य सरोवर, दिग्गज और जम्बू-शाल्मलिवृक्ष का वर्णन संक्षेप से किया गया है। ५- रम्यकक्षेत्र नारी नरकांता नदीः इस रम्यक क्षेत्र का सारा वर्णन हरिक्षेत्र के समान है। यहां पर नील पर्वत के केसरी सरोवर के उत्तर तोरण द्वार से नरकांता नदी निकली है और रुक्मि पर्वत के महा पुण्डरीक सरोवर के दक्षिण तोरण द्वार से नारी नदी निकलती है। ये नदियां नारी-नरकांता कुंड में गिरती हैं। यहां के नाभिगिरि का नाम पद्मवान है। इस पर 'पद्म' नाम का व्यंतर देव रहता है। ६- हैरण्यवत क्षेत्र सुवर्णकूला-रूप्यकूला नदी:- इस हैरण्यवत क्षेत्र का सारा वर्णन हैमवत क्षेत्र के सदृश है। यहाँ पर रुक्मि पर्वत के महापुण्डरीक सरोवर के उत्तर Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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