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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [४७ वैसे तो हम लोग पूज्य माताजी की प्रत्येक आज्ञा का पूरा पालन करते हैं लेकिन इस संबंध में उनकी आज्ञा का पालन नहीं कर सके इसमें एकमात्र गुरुभक्ति ही कारण है। पूज्य माताजी से मुझे ज्ञान मिला- पूज्य माताजी से ही मैंने सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये इस प्रकार आज मैं जो कुछ हूँ वह सब पूज्य ज्ञानमती माताजी की ही देन है- हमारा अपना कुछ नहीं है। मैं अपना यह सौभाग्य मानता हूँ कि पूज्य माताजी का गृहस्थावस्था का लघु भ्राता तथा शिष्य बनने का मुझे योग मिला। साथ ही उनके अनुभवों का लाभ ले सका। "चतुर्मुखी प्रतिभा की धनी माताजी" - डा. पन्नालाल साहित्याचार्य जबलपुर [ म०प्र०] वर्तमान में विराजमान आर्यिका माताओं में गणिनी ज्ञानमती माताजी अग्रणी मानी जाती हैं। सिद्धान्त, न्याय, साहित्य, व्याकरण आदि सभी विषयों में आपका ज्ञान परिपक्व है, संस्कृत और हिन्दी की गद्य-पद्य रचना में आप कुशल हैं। प्रारम्भ कार्य को पूर्ण करने में आप अपनी प्रतिभा के बल से सफलता प्राप्त करती हैं। हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की रचना, इसका ज्वलंत उदाहरण है। आपके सानिध्य में लगने वाले शिक्षण-शिविर में मुझे सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ है। दिल्ली के समन्तभद्र विद्यालय (बालाश्रम) में समयसार का और हस्तिनापुर में लगने वाले मोक्षशास्त्र के शिविर में कुलपति का कार्यभार संभालने का मुझे अवसर मिला है। एक बार दिल्ली चातुर्मास के समय पर्युषण पर्व में सेठ कूचा के मन्दिर में मेरे प्रवचन हुए हैं। आप गहराई से तत्त्व चर्चा करती हैं। ___अष्टसहस्री की टीका आपके न्याय विषयक वैदुष्य को प्रकट करती है तो नियमसार की टीका आपके सैद्धान्तिक तथा संस्कृत ज्ञान को प्रकट करने में सक्षम है। हिन्दी में लिखित इन्द्रध्वज तथा कल्पद्रुम पूजा विधान आदि आपकी काव्य निर्माण शक्ति को प्रकट करते हैं। प्रवचन निर्देशिका आदि कितनी ही पुस्तकें नवीन विद्वानों को प्रवचन कला सिखाने में समर्थ हैं। अभिवन्दन की बेला में आपके दीर्घजीवी होने की कामना करता हुआ आपके चरणों में विनयाञ्जलि समर्पित करता हूँ। "भारत-भूषण आर्यिकाश्री" - पद्मश्री, बालब्रह्मचारिणी श्री सुमतिबाईजी शहा, सोलापुर पूज्य १०५ विदुषी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का चातुर्मास श्राविका आश्रम सोलापुर हमारे आश्रम में हुआ था। माताजी की बचपन से ही हमने वैराग्यवृत्ति देखी है। वे तीव्र व प्रखर बुद्धि हैं। उनका संस्कृत, न्याय, काव्य, अध्यात्म चारों अनुयोगों में ज्ञान अगाध है। उन्होंने हिन्दी, मराठी, कनड़, संस्कृत चारों भाषाओं में काव्य रचना की है। उनका हमेशा यह प्रयत्न रहता है कि जैन धर्म की अधिक से अधिक प्रभावना हो तथा लोगों में जैन धर्म की रुचि बढ़े। आपने आर्यिका जिनमतीजी, आदिमतीजी, आर्यिका अभयमतीजी जैसी अनेक महिला रत्न तैयार की हैं। आपने अपने सारे परिवार को जैन धर्म का प्राण बनाया है। ज्ञानमती माताजी को देखकर भगवान् महावीर के समय की आर्यिका चन्दना सती का स्मरण होता है। उन्होंने अनेक जटिल ग्रन्थों का सरल हिन्दी में अनुवाद किया है। इसलिए दिल्ली में भगवान् महावीर निर्वाण महोत्सव के शुभ अवसर पर आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज ने आपको न्याय प्रभाकर एवं आर्यिकारत्न की उपाधि से सम्मानित किया। स्वास्थ्य ठीक न रहने पर भी वे अपने आचार-विचार में स्थिर रहती हैं। सोलापुर में चातुर्मास के समय सोलापुरवासियों को धर्ममय बनाया। स्थान-स्थान पर सब लोगों के लिए प्रवचन किये सब धर्म के लोगों को आपने अपने प्रवचनों से प्रभावित किया। धन्य हैं उनकी माँ, जिन्होंने ऐसे रत्न को जन्म दिया। आप "सम्यग्ज्ञान" मासिक पत्रिका निकालकर चारों अनुयोगों का ज्ञान सबको दे रही हैं। हस्तिनापुर में "दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान" स्थापित करके आपने जैन धर्म का बहुत बड़ा उपकार किया है। इस संस्था से जैन धर्म को बहुत लाभ हो रहा है। ऐसी भारतभूषण आर्यिकाश्री को ईश्वर चिर आयु दे। अन्त में मैं उनको अपनी विनयांजलि अर्पित करती हूँ। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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