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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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ज्ञानज्योति का आसाम भ्रमण (गोहाटी से उद्घाटन)
१४ अक्टूबर, १९८४ को आसाम की राजधानी गोहाटी में ज्ञानज्योति का उद्घाटन समारोह मनाया गया। श्री निर्मल कुमार सेठी (केन्द्रीय ज्ञानज्योति अध्यक्ष) महामंत्री श्री ब्र. मोतीचन्द्रजी एवं ब्र. रवीन्द्र कुमारजी, पं. सुधर्मचन्द्रजी शास्त्री, कु. मालती शास्त्री एवं कु. माधुरी शास्त्री आदि सभी लोग उद्घाटन समारोह में गोहाटी पधारे। शानदार कार्यक्रमों के साथ प्रवर्तन प्रारंभ हुआ।
४ जून, १९८२ से प्रवर्तित होकर यह ज्ञानज्योति का रथ सम्पूर्ण भारतवर्ष में अपने कार्यक्रमों को सुनियोजित ढंग से सम्पन्न करता रहा। इस शुभ अवसर पर श्री गणपतजी पांड्या ने अपने पिता श्री चांदमलजी पांड्या की स्मृति में हस्तिनापुर में एक भवन निर्माण की स्वीकृति भी प्रदान की।
गोहाटी के महावीर भवन में विशाल सभा का आयोजन हुआ, जिसमें अनेक वक्ताओं ने ज्ञानज्योति प्रवर्तन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। अखिल भारतवर्षीय दि. जैन महासभा के भूतपूर्व अध्यक्ष श्री लखमीचन्दजी छावड़ा ने अपने भाषण में पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए इस ज्ञानज्योति प्रवर्तन को उनके अदम्य ज्ञान का प्रतिफल बताया।
इसके साथ ही श्री गणपतजी पांड्या, श्री हुकमीचंदजी पांड्या, श्री झूमरमलजी पहाड़िया, (अमरचंदजी पहाड़िया के भाई) एवं डीमापुर से पधारे श्री चैनरूपजी बाकलीवाल एवं श्री राजकुमारजी सेठी आदि महानुभावों के विशेष सहयोग से यहाँ ज्ञानज्योति का उद्घाटन कार्यक्रम अप्रतिम सफलता के साथ सम्पन्न हुआ।
थोड़ी-थोड़ी वर्षा होने के बावजूद भी ज्योतिरथ की शोभायात्रा शानदार ढंग से निकली। लगभग १ किलोमीटर लम्बे जुलूस में हजारों नर-नारी साथ-साथ चल रहे थे। आश्चर्य तो यह था कि जुलूस के आगे-पीछे वर्षा हो रही थी और जुलूस के साथ चल रहे किसी भी नर-नारी के ऊपर बारिश की एक बूंद भी नहीं पड़ रही थी। ज्योतिरथ के ऊपर स्थित अतिशयकारी सुमेरुपर्वत का ही यह प्रभाव माना गया।
गोहाटी प्रवर्तन के पश्चात् ज्ञानज्योति का पावन रथ आसाम की वसुंधरा को पवित्र करता हुआ खारू पेटिया, तेजपुर, विश्वनाथचाराली, उत्तर लखीमपुर, शिलापथार से डिब्रूगढ़ पहुँचता है। ब्रह्मपुत्र नदी की यात्राज्ञानज्योति के शिलापथार प्रवर्तन के पश्चात् डिब्रूगढ़ जाने के मार्ग में विशाल ब्रह्मपुत्र नदी (स्टीमर) के द्वारा पार की गई। उस पानी के जहाज पर ज्ञानज्योति का रथ और ज्योति प्रवर्तन की सारी मंडली के द्वारा भक्ति संगीत का वह मनोरम दृश्य भी एक अभूतपूर्व था। निरन्तर ५ घंटे की लम्बी समुद्र यात्रा करके हम सभी डिब्रूगढ़ नगर में गए और वहाँ की जनता का भावभीना स्वागत स्वीकार किया गया। फिर उस दिन हम लोगों के एकाशन थे। शाम को देर से पहुंचने पर जल्दी-जल्दी सबने भोजन किया। फिर रात्रि में ऑडिटोरियम में विशाल सभा का आयोजन हुआ और सफल आयोजनों के साथ प्रातः शोभायात्रा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। तिनसुकिया का धर्मप्रेमडिब्रूगढ़ कार्यक्रम के पश्चात् ज्योतीयात्रा तिनसुकिया पहुँचती है। श्री निर्मल कुमारजी सेठी की जन्मभूमि होने के कारण वे यहाँ अपने भाइयों के साथ विशेष रूप से ज्योतिरथ का स्वागत करने हेतु पधारे। सेठीजी के घर में ही सभी अतिथियों का आतिथ्य सत्कार हुआ। मुझे ध्यान है कि उस दिन किसी कारणवश वहाँ उनके घर में कोई महिला उपस्थित नहीं थी, फिर भी निर्मलजी सेठी तथा उनके भाई हुलासचंदजी आदि ने हम लोगों के खाने-पीने तथा किसी भी व्यवस्था में कोई कमी नहीं रखी, यह उनका धर्मप्रेम ही कहना होगा।
ज्ञानज्योति प्रवर्तन की श्रृंखला में तिनसुकिया के स्वागत कार्यक्रम ने भी अपनी अविस्मरणीय छाप डाली। शोभायात्रा के पश्चात् सेठीजी हम सभी
आसाम के,तिनसुकिया नगर में जानज्योति रथ के साथ श्रीनिर्मलकुमार सेठी, पत्रालाल अतिथियों को अपनी पुरानी फैक्ट्री दिखाने ले गए। उस दिन रात्रि विश्राम के ।
सेठी, त्रिलोकचंद कोठारी, हुलासचंद सेठी एवं जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति प्रवर्तन की पूरी टीम। पश्चात् दूसरे दिन ज्योतियात्रा ने अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थान किया।
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