________________
६१६]
गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
सायं ७ बजे यहाँ से रवाना होकर जतारा पहुँचे। २-३ दिन पूर्व से ही जतारा में पं. श्री गुलाबचंदजी पुष्प टीकमगढ़ वालों के आचार्यत्व में सिद्धचक्र मंडल विधान चल रहा था। २-३ कि.मी. दूर से ही लोगों ने विशाल भीड़ के साथ ज्योतिरथ का स्वागत किया। भिन्न-भिन्न तोरणद्वार बिजली आदि से पूरे नगर को सजाया गया था। सभा का आयोजन विद्यालय के बाहर प्रांगण में था, जहाँ पर हजारों की संख्या में नर-नारियों ने भाग लिया। बोलियों में असीम उत्साह नजर आया। पं. गुलाबचंदजी पुष्प का भी अच्छा सहयोग प्राप्त हुआ। एक बजे रात तक शहर में शोभा यात्रा निकाली गई। ज्ञानज्योति के इस भ्रमण में मानो रात-दिन का भेद ही समाप्त हो गया था। यहाँ के मंदिर का जीर्णोद्धार तात्कालिक समय में ही हुआ है। नीचे भौरे में प्राचीन प्रतिमाएं हैं और एक मुनि की पिच्छी कमंडलु सहित पौराणिक प्रतिमा भी विराजमान है। हम लोगों ने भी समस्त प्रतिमाओं के दर्शन किए। रात्रि विश्राम भी यहीं रहा।
२८ मार्च प्रातः ७ बजे जतारा से ज्ञानज्योति मवई पहुँची। यहाँ एक राजकीय विद्यालय में प्रोग्राम था। ३०-३५ जैन घर वाले इस गाँव में लोगों का उत्साह सराहनीय रहा। दिन में एक बजे तक जुलूस निकला, पश्चात् भोजन के अनंतर २ बजे आहारजी तीर्थक्षेत्र के लिए रवाना हुए।
दोपहर ३ बजे ज्योति आहारजी तीर्थक्षेत्र में आई । यहाँ से एक प्राचीन इतिहास जुड़ा हुआ है। भ. शांति, कुंथु, अरहनाथ की विशाल खड्गासन प्रतिमाएं विराजमान हैं। शांतिनाथ की प्रतिमा अत्यन्त सौम्य और श्रवणबेलगोला के भ. बाहुबली के समान ही शांतिप्रद है। यहाँ आकर मुझे भी अपूर्वशांति प्राप्त हुई। कहते हैं कि पानाशाह जो एक वैश्य व्यापारी था, उसका खरीदा हुआ सारा रांगा यहाँ चाँदी में बदल गया था। इस चमत्कार से आकर्षित होकर ही उसने यहाँ इन प्रतिमाओं का निर्माण कराया। जिनके ऊपर हीरे और पन्ने की पॉलिस की गयी थी। आज भी प्रतिमा बहुत दूर से ही चमकती है। मुस्लिम शासन में औरंगजेब के अत्याचारों से यह क्षेत्र अछूता न रह पाया और अरहनाथ की प्रतिमा पूर्ण भग्न हो गई, जिसके अवशेष यहाँ के संग्रहालय में आज भी मौजूद हैं। बाकी दोनों प्रतिमाओं में भी कुछ दोष आए थे, लेकिन आस-पास के शुभचिन्तकों ने वैसा ही पाषाण मंगाकर प्रतिमा की पूर्ण अवस्था प्राप्त कराई है तथा जयपुर के महाराजा द्वारा दिए गए हीरे और पन्ने की पॉलिश भी करवाई गई है। उत्तर भारत में शायद ऐसी सौम्य और सुडौल प्रतिमा कहीं नजर में नहीं आती है। हम सभी लोगों को भगवान का मस्तकाभिषेक भी करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस मूल मंदिर के अतिरिक्त और भी कई मंदिर हैं तथा थोड़ी-सी दूर पर पंचपहाड़ी नाम से टोकें हैं, जहाँ मुनिराजों के चरण स्थापित हैं। इस प्राकृतिक रम्य तीर्थक्षेत्र में आस-पास के कई गांवों से लोग ज्ञानज्योति के स्वागतार्थ आए और आयोजन सफल रहा। विद्वानों के वक्तव्य हुए, बोलियाँ हुई और रथ का जुलूस भी निकला। २८ ता. का रात्रि विश्राम भी यहीं पर रहा।
२९ मार्च प्रातः ८ बजे आहारजी के समस्त मंदिरों के दर्शन करके आगे बल्देवगढ़ आए। यहाँ १०-१५ जैन घर हैं। प्रोग्राम एक विद्यालय के प्रांगण में हुआ। एक जैन मंदिर है तथा एक बहुत प्राचीन किले में कुछ अवशेष तथा युद्ध के अस्त्र-शस्त्र आज भी विद्यमान हैं।
दिन में २ बजे यहाँ से निकल कर भेलसी आए। यहाँ एक मंदिर है। मंदिर के बाहर चौक में सभा हुई। जैन स्कूल की छात्राओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। विशाल संख्या में जैन अजैन जनता ने ज्ञानज्योति का स्वागत किया।
शाम ७ बजे भेलसी से निकलकर खरगापुर आए। यहाँ गाँव के बाहर ही मेन बाजार में लोगों ने स्वागत किया और वहीं बोलियाँ हुई, पश्चात् गाँव के अन्दर तक जुलूस गया। जहाँ पर विशाल सभा का आयोजन हुआ। रात्रि १२ बजे तक प्रोग्राम चला। लोगों ने बड़े वात्सल्य एवं आग्रहपूर्वक मुझे यहाँ की महिला समाज में जागरूकता के लिए बोलने को कहा। जिसके ऊपर मैंने कुछ प्रकाश डाला। एक जैन मंदिर है, जिसका दर्शन किया। इसी बीच यहाँ से लगभग ३० कि.मी. दूर हटा के कुछ गणमान्य व्यक्तियों के विशेष आग्रह पर रात्रि २ बजे हम लोग वहाँ पहुँचे। यहाँ का पहले से कोई प्रोग्राम नहीं था, फिर भी भक्तों के आग्रह को स्वीकार करके प्रातः ७ बजे वहाँ समारोह हुआ। हटा में ५ जिन मंदिर हैं। प्रथम मूलमंदिर १७५ फुट ऊँचा शिखर वाला है, शायद बुंदेलखंड का सबसे ऊँचा मंदिर यही होगा। लगभग सभी मंदिर ऊँचे शिखर वाले हैं, जिनमें भव्य जिन प्रतिमाएं पंचमेरु आदि स्थापित हैं। यहाँ के निवासी पं. गोकुलचंद “मधुर" ने भी अपने काव्य प्रस्तुत किए। ज्ञानज्योति कालोनी का उद्घाटन-९ बजे यहाँ से अपनी योजनानुसार गुलगंज में ज्ञानज्योति का भावभीना स्वागत हुआ। यहाँ केवल ३-४ जैन घर हैं, किन्तु अजैन जनता का भी अच्छा सहयोग प्राप्त हुआ। विशेष बात यह रही कि यहाँ पर "जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति" के नाम से एक जैन कालोनी का उद्घाटन उसी दिन मेरे द्वारा सम्पन्न कराया, जहाँ लगभग १५ कमरे बन चुके थे और उनमें लोग निवास करने के लिए आने वाले थे। यहाँ एक जैन मंदिर है, जहाँ १०वीं शताब्दी की भ. वृषभदेव की प्राचीन प्रतिमा विराजमान है।
मध्याह्न २ बजे बिजावर आए। यहाँ पर भी एक मंदिर है, २०-२५ जैन घर हैं। डी.एम., एस.डी.एम. ने पधार कर जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का पुष्पहार से स्वागत किया। पं. सुधर्मचंदजी, वीरसागर संस्कृत विद्यापीठ हस्तिनापुर के विद्यार्थी श्री नरेश चंदजी, ब्र. कु. माधुरी शास्त्री, श्री भूरमलजी जबलपुर वालों के ओजस्वी वक्तव्य हुए। बोलियों में बहुत अच्छा उत्साह रहा।
शाम ७ बजे यहाँ से सटई पहुँचे। यहाँ भी एक मंदिर है, प्रोग्राम सफल रहा, लोगों ने रुचिपूर्वक भाग लिया। १५-२० जैन घर हैं। सभी का रात्रि-विश्राम यहीं हुआ।
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org