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________________ ६०२] गणिनी आर्यिकारत्र श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ उन्नीस दिसम्बर को बीजापुर में स्वागत सत्कार हुआ। जनता पार्टी अध्यक्ष ने आ अर्पित पुष्पों का हार किया। इण्डी, आलन्द, बिदर, बासवकल्याण सभी का क्रम आया। इक्कीस दिसम्बर को गुलबर्ग जिले में था स्वागत पाया ॥ ३० ॥ तहसीलदार एम.पी. बालीगर ने मंगल आरति कर ली। बहुजनसमुदाय जुड़ा सब नर नारी ने पुष्पांजलि भर ली । गलियों में शोभायात्रा के मधि पुष्पवृष्टि वे करते थे। जय ज्ञानज्योति जय ज्ञानज्योति के शब्द निरन्तर चलते थे॥ ३१ ॥ हरलापुर गुड़गेरी हरिहर में वीर प्रभू संदेश मिला। दावणगेरे चित्रदुर्ग जिले में कुन्थुसिन्धु का संघ मिला ॥ आचार्य कुंथुसागरजी ने प्रवचन में खुशियां दर्शाई। उनका कहना इक नारी ने कैसी इच्छा शक्ती पाई ॥ ३२ ॥ उस समय ज्योति के दर्शन से उनके मन में भी भाव जगे। कब तीर्थ हस्तिनापुर में जाकर जम्बूद्वीप का दर्श करें। सन् उनिस सौ नवासी में उनका संघ हस्तिनापुर आया। श्री ज्ञानमती माताजी ने उस समय संघ था बुलवाया ॥ ३३ ॥ इस जिले से चिकमंगलूर चली वह ज्ञानज्योति मंगल यात्रा। भिंगेरी, कोप्पा और कालसा में निकली शोभा यात्रा ॥ नरसिंह राजपुर आदि नगर में जैन धर्म को बतलाया। नहि आदिनाथ ने नहीं वीर प्रभु ने है इसको चलवाया ॥ ३४ ॥ यह सार्वभौम शासन अनादि से पृथ्वीतल पर आया है। वृषभेश तथा महावीर ने धर्मप्रवर्तन मात्र कराया है। जो कर्मशत्रुओं को जीते उसको जिनेन्द्र माना जाता। जिनदेव उपासक जैनी है वह धर्म धर्मजिन कहलाता ॥ ३५ ॥ जैसे मिश्री हर प्राणी को अपनी मिठास ही देती है। जिनधर्म शरण भी ऐसे ही सबको पावन कर देती है। चाण्डाल ने भी धारा इसको यह बात ग्रंथ बतलाते हैं। इस ज्ञानज्योति के माध्यम से हम जग में ज्योति जलाते हैं ॥ ३६ ॥ इन व्यापक उपदेशों को ले यह रथ सीमोगा में पहुंचा। हुम्मच में भव्य प्रवर्तन कर पद्मावति मंदिर भी पहुँचा । देवेन्द्रकीर्ति भट्टारकजी ने स्वागत सभा बुलाई थी। कन्नड़ भाषा में प्रवचन कर सबको संतुष्टि कराई थी॥ ३७ ॥ दक्षिण कन्नड़ के तीर्थ मूडबिद्री में भी उत्सुकता थी। श्री चारुकीर्ति स्वामीजी के सनिध में वहाँ व्यवस्था थी॥ सबका स्वागत स्वीकार हुआ ज्योती ने पुनः विहार किया। रत्नों की प्रतिमा के दर्शन कर सबको हर्ष अपार हुआ ॥ ३८ ॥ वेन्नूर तथा मंगलौर बेलतंगड़ी की जनता जाग उठी। धर्मस्थल में प्रभु बाहुबली के निकट ज्ञानज्योती पहुँची। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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