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________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [६०१ विद्यानंदी आचार्यप्रवर की जन्मभूमि यह कहलाती। ये जन्मभूमियाँ निज पुष्पों की सुरभि जगत में महकातीं ॥ २० ॥ ऐनापुर के उस प्रांगण में अब ज्ञानज्योति रथ आया है। जहाँ शांतिसिन्धु के शिष्य कुन्थुसागर ने जीवन पाया है। कर्नाटक का बेलगांव जिला सौभाग्यशालि सर्वाधिक है। जहां सदी बीसवीं के कितने आचार्य हुए उपदेशक हैं ॥ २१ ॥ कोन्नूर शहर में पहुँच ज्योति ने तपोभूमि का दर्श किया । श्री शांतिसिन्धु की काया का जहाँ सों ने स्पर्श किया ॥ विषधर गर्दन में लिपट गया पर गुरुवर ने नहिं ध्यान तजा। बस इसीलिए चारित्रचक्रवर्ती पद उनको शोभ रहा ॥ २२ ॥ गोकाक नगर आचार्य पायसागर का जन्मनगर भी है। जहाँ सैलटेक्स आफीसर जी स्वागत को आए ज्योती में | इक नारी के द्वारा प्रेरित इस सफल प्रवर्तन को पाकर । आश्चर्यचकित हो नमन किया ज्योतीरथ के सन्मुख आकर ॥ २३ ॥ चल पड़ी बहस दो कन्याओं में क्या यह सच हो सकता है। क्या ज्ञानमती माता द्वारा यह महाकार्य हो सकता है। इस एक प्रश्न के उत्तर में दूजी ने कहना शुरू किया। यह पहली कन्या कलियुग की जिसको नारी का गुरु कहा ॥ २४ ॥ इस ज्योतिप्रवर्तन से केवल नहिं ज्ञानमती जानी जातीं। सारे विद्वान जगत में वे विदुषी माँ पहचानी जाती॥ उनकी साहित्यिक कृतियों ने जग में इतिहास बनाया है। हस्तिनापुरी निज तपोभूमि में कैसा अलख जगाया है ॥ २५ ॥ सब गांव गली औ शहरों में यह ज्योति प्रवर्तन करती है। २९ नवम्बर को प्रातः बेलगांव में आन ठहरती है। हनवर हट्टी, अमटूर, शिवापुर कितने नाम गिनाऊँ मैं। यह इच्छा है माँ ज्ञानमती सम ज्ञान की प्रतिभा पाऊँ मैं ॥ २६ ॥ द्वेवर्षी मेहली, थिगडोली, देवालोली, कीत्तूर नगर। इसके पश्चात् प्रवेश हुआ धारवाड़ जिले के भी अन्दर । सत्तरह दिसम्बर तेरासी एस.पी. सुभाषवर्णी आकर । धारवाड़ नगर में अभिनंदन कर लिया ज्ञानज्योती रथ पर ॥ २७ ॥ हुबली की शोभायात्रा में जनता की भीड़ अपार हुई। इतिहास के पन्नों पर जिनकी श्रद्धाएं भी साकार हुईं। उस जिले के ग्राम गडम में श्री मुत्तीनपेंडीमठ जी आए। इन एम.एल.ए. के साथ श्री देवीन भी स्वागत को आए ॥ २८ ॥ श्री मदनकेशरी एम.बी. वत्री बागलकोट पधारे थे। बीजापुर जिले में ये दोनों अतिथी स्वागत को आए थे। जनता ने बोली लेकर अपने इन्द्रादिक का चयन किया। इस ज्ञानज्योति के रथ पर सबने अपना आसन ग्रहण किया ॥ २९ ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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