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________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [५९५ HATHO मत विमलसिन्धु की विमल देशना२० मई, ८३ को पंढरपुर की सार्वजनिक सभा में आचार्य श्री विमलसागर महाराज ने अपनी देशना में कहा "इस ज्ञानज्योति से हमें अन्तरंग के ज्ञान को जाग्रत करना चाहिए। यह एक महान् कार्य ज्ञानमती माताजी कर रही हैं। जम्बूद्वीप का वर्णन हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि सभी पुराणों में मिलता है। जम्बूद्वीप का ज्ञान प्राप्त कर हमें अपनी आत्मा की ज्ञानज्योति को जगाना है।" आचार्य श्री के संघस्थ उपाध्याय १०८ श्री भरतसागर महाराज एवं आर्यिका श्री स्याद्वादमती माताजी ने अपने मंगल प्रवचन में इस ज्ञानज्योति प्रवर्तन को हस्तिनापुर का चक्ररत्न बतलाया। जैसे तीर्थंकर श्री शांतिनाथ ने अपने चक्ररत्न से छह खण्ड पर विजय प्राप्त की थी, उसी प्रकार हस्तिनापुर से यह द्वितीय चक्ररत्न भारत यात्रा को निकला है, इससे निश्चित ही देशवासियों का ध्यान जम्बूद्वीप एवं हस्तिनापुर की ओर केन्द्रित होगा तथा अब हस्तिनापुर पुनः राजधानी के समान उभर कर सामने आएगा।" आर्यनन्दि की अमृतवाणी"ज्ञानज्योति के प्रवर्तन से समाज एवं देश का बड़ा हित हो रहा है। सारे विश्व के समक्ष पूज्य ज्ञानमती माताजी के प्रयत्न से एक बहुमूल्य निधि आ रही है। ऐसे महान् कार्य में हम सभी को उदारता से अपना योगदान देना है।" ये विचार करकंब में २१ मई सन् ८३ को मुनि श्री आर्यनन्दि महाराज ने व्यक्त किये। आचार्यरत्न का मंगल आशीषभारतगौरव आचार्यरत्न श्री १०८ देशभूषण महाराज का सानिध्य जयपुर (राज.) में तो प्राप्त हुआ ही था। महाराष्ट्र में अकलूज, पेनूर एवं पाटकूल इन तीन मुनि श्री आर्यनन्दि महाराज लातूर (महाराष्ट्र) में ज्ञानज्योति स्वागतसभा को संबोधित नगरों में भी ज्योतिरथ को आचार्य श्री का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। वे तो चूँकि करते हुए। प्रारंभ से ही ज्ञानमती माताजी की दृढ़ता एवं आगम कट्टरता से भलीभाँति परिचित थे, अतः हृदय की गुरुता को प्रकट किये बिना न रहते थे। अकलूज में उन्होंने अपने प्रवचन में कहा"भव्यात्माओ! ज्ञानज्योति रथ को तुम साक्षात् ज्ञानमती माताजी का रूप समझो और इसकी वाणी को ज्ञानमतीजी की आगमोक्त वाणी ही समझना। उन्होंने जो जंबूद्वीप बनाने का संकल्प उठाया है, वह आप सबके सहयोग से शीघ्र सम्पन्न होगा, ऐसा मुझे विश्वास है।" समन्तभद्रजी की भद्रता१४ अक्तूबर, १९८३ को ज्ञानज्योति के कुंभोज पदार्पण पर क्षेत्र के निर्माता, प्रेरणास्रोत मुनि श्री समन्तभद्र महाराज ने बड़ी प्रसन्नतापूर्वक ज्योतिरथ का अवलोकन किया तथा स्वागत सभा के मध्य अपने प्रवचन में कहा "पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का महान् उपकार व परिश्रम अप्रतिम है। उनका उपकार यह देश और समाज कभी नहीं भूल सकता है। उनके अलौकिक कार्य नारी जाति के लिए ही नहीं, प्रत्युत् पुरुषवर्ग के लिए भी वर्तमान में एक चुनौती बनकर सामने आए हैं। इस महान् निधि (माताजी) को आप लोगों को संभालकर रखना चाहिए . . . ." मुनि श्री समन्तभद्र महाराज कुम्भोज बाहुबली में ज्योतिरथ का अवलोकन करते हुए। विद्यानन्दिजी की अनमोल विद्या"जब भगवान आदिनाथ की दिव्यध्वनि खिरी, तब उन्होंने बताया कि छह द्रव्य जहाँ रहते हैं वह लोक है और जहाँ ये द्रव्य नहीं हैं, उसे अलोक कहा है। यह बहुत ही सूक्ष्म प्रतिपादन है। इस संसार में अनेक कल्पनाएं इस विश्व के संबंध में उपलब्ध हैं, उनका अन्वेषण, संशोधन होना आवश्यक है। उस दृष्टि से यह प्रवर्तन बहुत ही आवश्यक था, जिसे ज्ञानमती माताजी दृढ़ता के साथ कर रही हैं . . . .।" उपर्युक्त विचार पूज्य एलाचार्य श्री विद्यानन्दि महाराज ने १४ अक्टबर, १९८३ को कुम्भोज बाहुबली में प्रकट किए। कोल्हापुर में भट्टारक श्री लक्ष्मीसेन स्वामी ने अपने प्रवचन में इस प्रवर्तन को जैनधर्म की प्रभावना का महान् अंग बतलाया तथा महाराष्ट्र प्रान्त को Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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