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________________ ५९४] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ इस दीर्घकाल का ज्योतिप्रवर्तन तभी सफल हो पाया है। लगभग छह महिने पन्द्रह दिन तक सबने समय लगाया है ॥ ४९ ॥ तेरासी तीन नवम्बर तक महाराष्ट्र प्रान्त में भ्रमण हुआ। फिर अन्त विदाई बेला में इक समारोह सम्पन्न हुआ। महाराष्ट्र निवासी अब उस क्षण के इन्तजार में आतुर हैं। माँ ज्ञानमती का जम्बुद्वीप देखें जाकर हस्तिनापुर में ॥ ५० ॥ मैंने यह जम्बूद्वीप ज्ञानज्योती का लघु इतिहास लिखा। महाराष्ट्र प्रवर्तन का किंचित दिग्दर्शन इसमें मात्र किया। इसको पढ़कर जो ज्ञानज्योति का अंश हृदय में धारेंगे। वे भी इक दिन "चन्दनामती" शुभ ज्ञानज्योति को पालेंगे॥ ५१ ॥ महाराष्ट्र यात्रा पर एक दृष्टि धर्मगुरुओं के वरदहस्त एवं राजनेताओं के सानिध्य को प्राप्त जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति ने १७ अप्रैल, १९८३ को महाराष्ट्र प्रान्त में प्रवेश किया। पुनः ३ नवम्बर, १९८३ तक लगभग साढ़े छह माह के प्रवास में महती धर्मप्रभावना हुई। सर्वप्रथम बम्बई महानगरी में १२ दिनों तक १२ स्थानों पर भ्रमण हुआ, उसके पश्चात् पुणे, सतारा, सांगली, सोलापुर, श्रीरामपुर, अहमदनगर, नासिक, औरंगाबाद, जालना, बीड, उस्मानाबाद, लातूर, परभणी, नांदेड, धूलिया, जलगांव, यवतमाल, अकोला, वुल्ढाणा, वर्धा, अमरावती, नागपुर, भंडारा, कोल्हापुर, रत्नागिरि आदि पच्चीस जिलों में कुल २६६ शहरों, कस्बों एवं ग्रामों में ज्ञानज्योति रथ ने अहिंसा धर्म का अलख जगाया। धन्य ज्योति जब गुरुवर आएबम्बई-श्री १०८ नेमसागर महाराज एवं आचार्य श्री संभवसागरजी ससंघ भिवंडी-मुनि श्री १०८ अजितसागर महाराज पंढरपुर (सोलापुर)-आचार्य श्री १०८ विमलसागर महाराज ससंघ करकंब (सोलापुर)-मुनि श्री १०८ आर्यनन्दी महाराज अकलूज (सोलापुर)-आचार्यरत्न श्री १०८ देशभूषण महाराज ससंघ एवं क्षल्लिका श्री अजितमती माताजी पेनूर (सोलापुर)-आचार्य श्री देशभूषण महाराज ससंघ पाटकूल (सोलापुर)-आचार्य श्री देशभूषण महाराज ससंघ सोलापुर-आचार्य श्री विमलसागर महाराज ससंघ अकलकोट (सोलापुर)-आर्यिका श्री १०५ जयमती माताजी कुंभोज बाहुबली (कोल्हापुर)-एलाचार्य श्री १०८ विद्यानन्दि महाराज एवं मुनि श्री १०८ समन्तभद्रजी महाराज कोल्हापुर-स्वस्ति श्री भट्टारक लक्ष्मीसेन स्वामीजी नांदणी-स्वस्ति श्री भट्टारक जिनसेन स्वामीजी गुरु प्रशस्त वाणी कल्याणीबम्बई बोगसी में १७ अप्रैल, १९८३ को श्री नेमसागर महाराज ने अपने मंगल प्रवचन में बतलाया कि "ज्ञानज्योति के चरम प्रकाश को तो केवली भगवान ही प्राप्त करते हैं, किन्तु इस ज्ञानज्योति के द्वारा कम से कम आप सभी लोगों को अपने मति, श्रुत का आवरण हटाकर ज्ञान का कुछ अश तो ग्रहण करना ही चाहिए।" श्री सम्भव वाणी"यह प्राणी अनादिकाल से अज्ञान के कारण ही संसार में भ्रमण कर रहे हैं, अतः उनका उद्धार करने हेतु ज्ञानमती माताजी ने साक्षात् ज्ञानज्योति का ही भ्रमण करवा दिया है। इसके प्रवर्तन के द्वारा निश्चित ही देशवासियों का ज्ञान विकसित होगा तथा विज्ञान अपनी नई खोज की ओर अग्रसर होगा।" पे विचार आचार्य श्री संभवसागरजी ने व्यक्त किये। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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