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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
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करकम्ब जिला सोलापुर में जब ज्ञानज्योति आगमन हुआ। श्री आर्यनंदि मुनिवर के मंगल सन्निध में सम्पन्न हुआ। पं. श्री मनोहर आग्रेकर के व्याख्यानों में सभा जुड़ी।
मुनिवर के आशीर्वाद हेतु जनता फिर उनकी ओर मुड़ी ॥ २० ॥ बतलाया मुनि ने यह ज्योति सबका हित करने आई है। माँ ज्ञानमती इस पृथ्वी पर बहुमूल्य वस्तु ले आई हैं। इस महाकार्य में हम सबको बहु योगदान देना होगा। धन के बदले इस प्रतिकृति का साकार लाभ लेना होगा ॥ २१ ॥
छोटे व बड़े सब नगरों को आलोकित करने आई है। यह ज्ञानज्योति मानवता का संदेश सुनाने आई है। बिन भेदभाव के सभी जातियों को ज्ञानामृत पिला रही।
उपदेशों को सुन-सुन जनता स्वयमेव त्याग को निभा रही ॥ २२ ॥ कितनों ने मांसाहार छोड़ हिंसा करने का त्याग किया। बीड़ी सिगरेट व शराब जुआ का भी बहुतों ने त्याग किया। इस ज्योति प्रवर्तन अन्तराल में सबसे अधिक विकास हुआ। व्यसनी निर्व्यसनी बने अतः यह अमर ज्योति इतिहास हुआ ॥ २३ ॥
इस तरह भ्रमण करते-करते अकलूज नगर का क्रम आया। २७ मई तिरासी सन् आचार्यरत्न सानिध पाया । आचार्य देशभूषणजी ने अपना मंगल आशीष दिया।
क्षुल्लिका अजितमतिजी ने भी अन्तर्मन से आशीष दिया ॥ २४ ॥ सानिध्य साधु का मिलते ही माहौल बदल ही जाता है। फिर इन गुरु का तो ज्ञानमती माता से धार्मिक नाता है । अपनी शिष्या की प्रगति देख वे फूले नहीं समाते थे। उनके चारित्र व ज्ञान की प्रतिभा जन-जन को बतलाते थे ॥ २५ ॥
पेनूर व पाटकूल में भी गुरुवर के दर्शन पुनः हुए। फिर ज्ञानज्योति ने सोलापुर की ओर कदम भी बढ़ा दिये ॥ सन्मार्ग दिवाकर विमलसिन्धु का संघ वहाँ भी प्राप्त हुआ।
इस द्वितिय समागम से सोलापुर में भी अतिशय व्याप्त हुआ ॥ २६ ॥ सन् उन्निस सौ छयांसठ में सोलापुर में दो संघ आए थे। श्री विमलसिन्धु माँ ज्ञानमती के युगपत् दर्शन पाए थे॥ जब ज्ञानमती की ज्ञानज्योति आई है आज यहाँ पर ही। तब पुनः विमलसागर मुनिवर भी आये देखो संघसहित ॥ २७ ॥
यह अनहोना संयोग ही है या धर्मप्रेम इसको कह लें। क्योंकि पुरुषार्थ बिना यह सब धार्मिकता का संचार करे। शिक्षा के क्षेत्र में सोलापुर नगरी ने बहुत विकास किया।
श्राविका नगर महिलाश्रम में नारी शिक्षा का वास हुआ ॥ २८ ॥ पण्डिता सुमतिबाईजी ने माँ ज्ञानमती जयकार किया। श्री विद्युल्लता शहा ने भी संस्मरण पूर्व का याद किया। श्री प्रभाचंद्रशास्त्री एवं डाक्टर दोसी भी आए थे। सबने मिलकर इस स्वागत के कार्यक्रम सफल बनाए थे॥ २९ ॥
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