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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
भीवंडी, डोम्बीवली, घाटकोपर में भी वह ज्योति जली। अपनी पौराणिक संस्कृति का संदेश सुनाती गली-गली ॥ यह जम्बूद्वीप इसी पृथ्वी मंडल का नक्शा बता रहा।
भूगोल जो अब तक था अप्राप्त उसको यह मॉडल दिखा रहा ॥ १० ॥ कितने ही पंडित घर-घर में प्रतिदिन यह मंत्र सुनाते हैं। शुभ जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्ते को गाते हैं। पर उनको भी यह ज्ञात नहीं वह जम्बूद्वीप कहाँ पर है? कैसा है उसका रूप तथा उसमें हम लोग कहाँ पर हैं? ॥ ११ ॥
इस सत्य कथानक को बतलाने हेतु ज्योति रथ चलवाया। साकार रूप में हस्तिनागपुर में भी उसको बनवाया। इसलिए ज्ञानमति माता की प्रतिभा का अवलोकन करने।
भारत की जनता उमड़ पड़ी, ज्योतिरथ के दर्शन करने ॥ १२ ॥ बाम्बे प्रवास के बाद दो मई को पूना रथ पहुँच गया। सांस्कृतिक झांकियों से वहाँ पर स्वागत सत्कार जुलूस हुआ ॥ महाराष्ट्र में "बारामती" शहर में ज्ञानज्योति आगमन हुआ। नातेपूते फल्टण आदिक नगरों में भी शुभ गमन हुआ ॥ १३ ॥
पंडित मोतीचंद कोठारी ने यह अमूल्यनिधि पहचानी। माँ ज्ञानमती की अमर कृती को आगम की प्रतिकृति मानी॥ वे पूर्व से भी इस प्रतिभा का सानिध्य प्राप्त कर पाये थे।
सन् अट्ठत्तर के शिविर में वे कुलपति बन करके आये थे॥ १४ ॥ है जिला सतारा में "म्हसवड़" जब ज्ञानज्योति यहाँ पहुँची थी। मानो यहाँ ज्ञानमती अम्मा ही आई खुशियाँ ऐसी थीं। सत्ताइस वर्ष पूर्व यहां पर था अम्मा ने चौमास किया। इस पुण्यभूमि ने उनको जिनमति, पद्मावति दो शिष्य दिया ॥ १५ ॥
इसलिए वहाँ की जनता में अपनत्व विशेष झलकता था। उनके गीतों की अंजलि से कितना शुभराग छलकता था। श्री आबासाहब राजमानेजी द्वारा रथसम्मान हुआ।
श्री शरद गुरुजी के सम्बोधन से उद्देश्य प्रमाण हुआ॥ १६ ॥ कितने ही शहरों में होकर पंढरपुर ज्योति पधारी थी। आचार्य विमलसागर मुनिवर की संघ सम्मती भारी थी॥ प्रवचन में उन्होंने बतलाया अन्दर में ज्योति जलाओ सब। इस वाह्य ज्ञान सामग्री से अन्तर में ज्ञान जगाओ सब ॥ १७ ॥
श्री उपाध्याय मुनिवर ने भी उद्बोधन वहाँ प्रदान किया। इस जम्बूद्वीप की रचना को सब जातिवर्ग में मिला दिया | सब वेद पुराणों की कथनी यह जम्बूद्वीप बताती है।
अतएव ज्ञानमतीजी की कृति हम सबको राह दिखाती है ॥ १८ ॥ शोभायात्रा में भी चउविध संघ ने अपना सानिध्य दिया। मानो सचमुच के समवसरण ने पृथ्वीतल को तृप्त किया। जय-जयकारों के नारों से नगरी का कण-कण गूंज उठा। इस अमरकृती के दर्शन कर सबका अन्तर्मन झूम उठा ॥ १९ ॥
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