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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
द्वितीय चित्र(तीर्थंकर ऋषभदेव को सोमप्रभ उनकी पत्नी और भ्राता श्रेयांस कुमार इक्षुरस का आहार दे रहे हैं। आकाश से देवगण पंचाश्चर्य वृष्टि कर रहे है)-उपर्युक्त कथानक से ही इसका संबंध जुड़ा है। एक वर्ष के उपवास के पश्चात् मुनिराज वृषभदेव का प्रथम आहार हस्तिनापुर में ही हुआ है। इसके पूर्व कोई भी श्रावक आहारदान की विधि नहीं जानते थे। उस आहारदान के निमित्त से वह पावन दिवस भी अक्षय तृतीया नाम से प्रसिद्ध हो गया है। चित्र नं.३(शांति, कुन्थु, अरहनाथ की पद्मासन प्रतिमाएं)-हस्तिनापुर में इन तीनों तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान ये चार-चार कल्याणक हुए हैं। चित्र नं. ४(इस शताब्दी के प्रथम आचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी (दक्षिण) महाराज)-आज जितने भी मुनि-आर्यिका आदि के संघ दिख रहे हैं, वे प्रायः सभी इन्हीं आचार्यश्री की देन हैं। इनकी समाधि सन् १९५५ में कुंथलगिरि क्षेत्र पर हुई है। गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने इन्हीं की आज्ञा से इनके पट्टशिष्य आचार्य श्री वीरसागर महाराज से आर्यिका दीक्षा लेकर आर्यिका ज्ञानमती नाम प्राप्त किया था। चित्र नं. ५(अपनी ब्राह्मी-सुन्दरी पुत्रियों को पढ़ाते हुए भगवान आदिनाथ)-इसमें अयोध्या नगरी का दृश्य है, नारी शिक्षा का अनुपम उदाहरण भी है। चित्र नं. ६(अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनियों का उपसर्ग निवारण)-इसमें रक्षाबंधन का इतिहास छिपा है, जो आज से लाखों वर्ष पूर्व हस्तिनापुर से प्रारंभ हुआ है। चित्र नं. ७(द्रौपदी का चीरहरण)-यह हस्तिनापुर के महाभारत युद्ध से संबंधित है तथा नारी सतीत्व का प्रतीक है। चित्र नं. ८(सुमेरु पर्वत की पांडुक शिला पर जिन भगवान का जन्माभिषेक)
अकृत्रिम सुमेरु पर्वत जो कि एक लाख योजन अर्थात् ४० करोड़ मील ऊँचा है, उसकी पांडुक शिला पर समस्त तीर्थंकरों का जन्माभिषेक इन्द्र करते हैं। क्षीरोदधि से भरकर जल लाते हुए एवं अभिषेक करते हुए इन्द्र भी इस चित्र में दर्शाए हैं। इसी की प्रतिकृति के रूप में हस्तिनापुर में ८४ फुट ऊँचा समेरुपर्वत बनाया गया है। चित्र नं. ९(पद्म सरोवर से निकली हुई गंगा-सिन्धु नदी की धारा से जिनप्रतिमा का अभिषेक दृश्य)
जम्बूद्वीप रचना के अन्दर का ही एक लघु दृश्य इस चित्र में है। हस्तिनापुर की रचना में भी यह दृश्य बड़ा सुन्दर दिखाया गया है। चित्र नं. १०(भगवान बाहुबली का ध्यान करती हुई ज्ञानमती माताजी)
जम्बूद्वीप रचना का प्रारंभिक केन्द्रबिन्दु जहाँ से इस इतिहास का प्रारंभीकरण होता है तथा एकाग्रध्यान का महत्त्व भी इस चित्र से परिलक्षित होता है।
इन वृहद् चित्रों के अतिरिक्त कई छोटे-छोटे सुन्दर चित्रों से यह ज्ञानज्योति रथ सुसज्जित किया गया था तथा अनेक सारगर्भित सूक्तियां तो मानो बिना बोले ही ज्ञानज्योति का सम्पूर्ण महत्त्व बतला रही थीं।
लगभग २५ सूक्तियां उसमें लिखी गई थी, किन्तु मैं यहाँ उनमें से कुछ नमूना प्रस्तुत करती हूँ।
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