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________________ ५५०] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ आर्यिका श्री का मंगल उद्बोधनश्रीमती इंदिरा गांधी एवं उपस्थित समस्त जनता पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का मंगल उद्बोधन सुनने को आतुर थी। वे सभी शायद पूज्य माताजी के श्रीमुख से ही ज्योति प्रवर्तन की वृहद् योजना का उद्देश्य जानना चाहते थे। इसलिए अब आर्यिका श्री का आशीर्वादात्मक प्रवचन हुआ। पुनः प्रधानमंत्री ने समस्त जनता को संबोधित करते हुए जैन धर्म की प्राचीनता तथा जैन धर्म की अहिंसा का महत्त्व बतलाया। अन्त में ज्ञानज्योति रथ के पास जाकर इंदिराजी ने अपने हाथों से स्वस्तिक बनाकर, श्रीफल चढ़ाकर विधिवत् धार्मिक अनुष्ठान के द्वारा ज्योति प्रवर्तन का शुभारंभ किया। यह धार्मिक अनुष्ठान कु० मालती एवं कु० माधुरी द्वारा सम्पन्न कराया गया। समस्त कार्यक्रम आशातीत सफलता के साथ निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। आज के इस समारोह मंच पर श्री जे०के० जैन, साहू श्री श्रेयांस प्रसादजी जैन, साहू श्री अशोक कुमार जैन, श्री अमरचंदजी पहाड़िया, श्री श्यामलालजी ठेकेदार, श्री निर्मल कुमार सेठी, पं० श्री बाबूलालजी जमादार, ब्र० श्री मोतीचंदजी, ब्र० श्री रवीन्द्र कुमार जी, वैद्य श्री शांतिप्रसाद जी, श्री राजेन्द्र प्रसाद जैन (कम्मौजी), श्री कैलाश चंद जैन, श्री के०सी० जैन तथा श्री हेमचंद जैन आदि महानुभावों का माल्यार्पण द्वारा स्वागत श्री त्रिलोकचंद कोठारी, श्री चैनरूप जी बाकलीवाल, श्री कैलाशचंद सर्राफ, श्री सुमतप्रकाश जैन ने किया। ज्योति रथ के पीछे बने इन्द्रों के आसन पर सर्वप्रथम सौधर्मइन्द्र के रूप में श्री निर्मलजी सेठी, ईशानइन्द्र श्री विमल प्रसादजी जैन, मोरीगेट-दिल्ली, सानत्कुमार इन्द्र श्री सतवीर सिंह जैन, मोरीगेट-दिल्ली, ४ जून, ८२ को ज्ञानज्योति के सभा मच पर विराजमान मणि-मा आर्यका श्री ज्ञानमती माताजी ससंघ। माहेन्द्र कुमार इन्द्र श्री अनन्तवीर्य जैन-हस्तिनापुर तथा माताजी के साथ है आर्यिका श्री रनमती जी. आर्यिका श्री शिवमती जी। पास में है.---कु मालतो शास्त्री एवं कु. माधुरी शास्त्री। कुबेर के पद पर श्री जिनेन्द्र प्रसाद जैन ठेकेदार–दिल्ली सपत्नीक विराजमान हुए। इन समस्त इन्द्रों का चयन बोलियों द्वारा ३ जून की रात में ही दिगम्बर जैन लाल मंदिर में हो चुका था; अतः इन्हें यह प्रथम सौभाग्य प्राप्त हुआ था। राजधानी में प्रथम शोभायात्रापूज्य आर्यिकारत्न श्री १०५ ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा एवं शुभाशीर्वाद से श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा उद्घाटित arhi ज्ञानज्योति रथ का प्रथम ऐतिहासिक जुलूस लाल किला मैदान, दिल्ली से प्रारंभ हुआ, जो चांदनी चौक, खारी बावली, सदर बाजार, मॉडल बस्ती, बाड़ा हिन्दूराव, अजमल खाँ पार्क होती हुई छप्पर वाला, करोलबाग रात्रि में ९.३० बजे पहुँची। वहाँ आरती के पश्चात् कार्यक्रम सम्पन्न किया गया। जुलूस के समस्त मार्ग में सुन्दर-सुन्दर तोरणद्वार, स्वागत बैनर्स आदि के द्वारा दिल्ली महानगरी आज वास्तविक राजधानी प्रतीत हो रही थी। हजारों नर-नारी इस स्वागत जुलूस में निरंतर चलते रहे, मानो सभी की क्षुधा-तृषा भी शान्त ही हो गई थी। ज्ञानज्योति रथ के शिखर पर विराजमान सुमेरुपर्वत Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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