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________________ ५४८] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ प्रधानमंत्री के पास डेपुटेशनत्रिलोक शोध संस्थान का एक डेपुटेशन प्रधानमंत्री के निवास स्थान पर उद्घाटन प्रस्ताव लेकर पहुँचा। थोड़ी देर की बातचीत के बाद इंदिराजी ने स्वीकृति नहीं दी। कई बार उच्चाधिकारियों के द्वारा कोशिशें कराई गई, किन्तु सफलता नहीं मिली। जब प्रधानमंत्री के आने की विशेष उम्मीद नहीं दिखी, तब कई लोगों ने माताजी से अनुरोध किया कि इसका प्रवर्तन किसी सामाजिक व्यक्ति से करवा कर प्रारंभ किया जाए, किन्तु माताजी ने यही कहा कि यह धर्म प्रचार का कार्य है, इंदिराजी अवश्य आयेंगी, यह मुझे विश्वास है। जे०के० जैन सांसद का अमूल्य सहयोगप्रधानमंत्रीजी को लाने के प्रयास बराबर जारी रहे । एक बार यह ज्ञात हुआ कि संसद सदस्य जे०के० जैन इंदिराजी के निकटवर्ती हैं; अतः उनसे सम्पर्क किया गया, उन्होंने प्रयास करने का वचन दिया । होनहार की बात, उन दिनों मोतीचंदजी, रवीन्द्रजी और हम लोग कोई दिल्ली में नहीं थे। अथक प्रयासों के बाद २५ मई, संस्थान का एक शिष्ट मंडल प्रधानमंत्री के निवास स्थल पर, साथ में हैं त्रिलोकचंद कोठारी, डा. कैलाशचंद जैन राजा टॉयज के ४ सुपुत्र सपत्नीक, चक्रेश जैन, कु मालती शास्त्री, ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन, ब्र. मोतीचंद १९८२ को जे०के० जैन का टेलीफोन डॉ. कैलाशचंद जैन, साहू रमेशचंद जैन न.भा.टा., राजेन्द्र प्रसाद जैन कम्मोजी, डा. कैलाशचंद जैन, देशपांडे। जी के पास पहुँचा कि प्रवर्तन के लिए इंदिराजी ने स्वीकृति प्रदान कर दी है। डॉ० साहब ने आकर माताजी को खुशखबरी सुनाई और दूसरे दिन हम लोग जब जयपुर से आए तो यह समाचार ज्ञात हुआ। पुनः २-३ दिन बाद ४ जून, ८२ के उद्घाटन की तारीख निश्चित हो गई। बस, क्या था सबकी भावनाएं सफल हुईं। तैयारियां अब बहुत जोरों से होने लगीं। समय भी अल्प ही था, किन्तु मोतीचंद, रवीन्द्र कुमारजी के साथ समस्त कार्यकर्ता उत्साहपूर्वक जुटे हुए थे। सारी देहली में प्रचारार्थ खूब बैनर लगाए गए, पूरे देश में खबरें भेजी गई, दैनिक अखबारों में प्रतिदिन विज्ञापन छपने लगे और नये ट्रक चेसिस में जम्बूद्वीप का सुन्दर मॉडल सुसज्जित किया गया, जिसका "जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति" रथ के नाम से प्रवर्तन प्रारंभ होने वाला था। ऐतिहासिक दिवसदेखते ही देखते ४ जून की तारीख भी आ गई। २ जून से ही लाल किला मैदान में विशाल पंडाल और मंच बनाने की व्यवस्था चल रही थी। सुमेरु पर्वत के आकार का सुन्दर द्वार पंडाल के प्रमुख प्रवेश द्वार पर बनाया गया। सारी देहली में प्रधानमंत्री के स्वागतार्थ तरह-तरह के सुन्दर तोरण बनाए गए। मंच की सारी व्यवस्थाएं जे०के० जैन देख रहे थे। वह फूलों से और दीपों से सजा हुआ मंच अपने अतिथि की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहा था। सभा मंच के बायीं ओर पूज्य ज्ञानमती माताजी, रत्नमती माताजी और शिवमती माताजी के लिए अलग मंच बनाया गया एवं मंच के दायीं ओर एक फूस की झोपड़ी थी, जहाँ माताजी सभा से पूर्व बैठी हुई थीं। आने-जाने वाले दर्शनार्थियों को उनके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो रहा था। इंदिरा जी का आगमन और सर्वप्रथम माताजी का आशीर्वादपूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी से वार्तालाप करती हई प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा जी। दिन के ठीक ४.०० बजे जन-जन का स्वागत स्वीकार करती हुई प्रधानमंत्री की कार उस ऐतिहासिक लाल किला मैदान में प्रविष्ट हुई। उनके साथ में गृहमंत्री Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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