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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [५२७ . ६३. आदिब्रमाः - जैन संस्कृति के वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों में प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का चरित्र संक्षेप में दिया गया है। प्रथम संस्करण सन् १९८४ में। पृष्ठ १६४, मूल्य ४/- रु०। ज्ञानज्योति गाइड:- ४ जून १९८२ को दिल्ली के लाल किला मैदान से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के करकमलों से एवं पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के आशीर्वाद से जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति प्रवर्तन का शुभांरभ हुआ था। संपूर्ण भारतवर्ष में १०४५ दिनों तक भ्रमण हुआ। आवश्यकता को देखते हुए १९८४ में इस ज्ञानज्योति गाइड पुस्तक का सृजन माताजी ने किया। इसको पढ़ने से हस्तिनापुर का इतिहास, जम्बूद्वीप रचना का परिचय तथा ज्योति रथ पर दिये गये चित्रों का परिचय प्राप्त होता है। हिन्दी के अतिरिक्त मराठी व असमिया भाषा में भी इसका प्रकाशन किया गया। प्रथम संस्करण १९८४ में। पृष्ठ संख्या ४४, मूल्य १.०० रु०। ६५. भरत बाहुबली (चित्र कथा):- बालक-बालिकाओं को भगवान भरत बाहुबली की जीवन का सुगमता से परिचय कराने के लिए चित्रों के माध्यम से कथा लिखी, जो कि अति आधुनिक शैली में है। इसका प्रकाशन नवभारत टाइम्स से प्रकाशित होने वाले इन्द्रजाल कामिक्स की श्रृंखला नं. ३६८ में फरवरी १९८१ में भगवान बाहुबली सहस्राब्दि महामहोत्सव के पावन अवसर पर हिन्दी व अंग्रेजी में किया गया। मूल्य १.५० रु०। धरती के देवताः- देव स्वर्ग में भी रहते हैं व पृथ्वी पर भी, किन्तु यहाँ धरती के देवता का तात्पर्य है मानव शरीर को धारण करने वाले दिगम्बर मुनि। पूज्य माताजी ने अति संक्षेप में इस छोटी-सी पुस्तक में यह बताया है कि दिगम्बर मुनि कैसे बनते हैं? प्रातः से रात्रि तक क्या करते हैं? किन महान् गुणों का पालन करते हैं? इत्यादि । अन्य धर्मावलम्बियों ने दिगम्बर मुनि अवस्था को सर्वश्रेष्ठ माना है यह बताया गया है। यह पुस्तक जैन व जैनेतर सभी के लिए पठनीय है। प्रथम संस्करण जून १९८२ में। पृष्ठ संख्या ४०, मूल्य १.०० रु०। पतिव्रताः- उपन्यासों की श्रृंखला में यह भी अपना विशेष महत्त्व रखता है। अपने कोढ़ी पति कोटिभट श्रीपाल का एवं उसके सैकड़ों योद्धा साथियों का कुष्ठ रोग दूर करने वाली शील शिरोमणि मैना सती को जैन समाज का ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो न जानता हो। जिसने सिद्धचक्र विधान रचाकर भगवत् भक्ति के प्रभाव के अभिषेक का गंधोदक लगाकर महारोग को दूर कर दिया। अतिरोमांचक कथानक है। प्रथम संस्करण सन् १९८४ में। पृष्ठ संख्या ९२, मूल्य १.५० रु०। आटे का मुर्गाः-यशोधर चरित्र पर लिखा गया यह उपन्यास हिंसा के दुष्परिणाम को बताने वाला है। आटे का मुर्गा बनाकर उसकी बली करना भी कितने महान् पाप बंध का कारण बना? अति रोमांचक कथानक है। तृतीय संस्करण-अगस्त १९९१ में । पृष्ठ १४८, मूल्य ६/- रु० । एकांकी प्रथम भागः- इसमें तीन कथानक लघु नाटिकाओं के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं। (१) दृढ़सूर्य चोर एवं णमोकार महामंत्र का प्रभाव (२) अहिंसा की पूजा (यमपाल चांडाल की दृढ़ प्रतिज्ञा) (३) सती चंदना। प्रथम संस्करण-अक्टूबर १९८३ में । पृष्ठ ४८, मूल्य २/- रु०। ७०. एकांकी द्वितीय भागः- इसमें भी तीन कथानक लघु नाटिकाओं के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं- (१) तीर्थंकर ऋषभदेव, (२) अकाल मृत्यु विजय (पोदनपुर नरेश विजय महाराज), ३- प्रत्युपकार पूर्व भव में राजा मेघरथ के रूप में भगवान शांथिनाथ । प्रथम संस्करण-अक्टूबर १९८४, पृष्ठ संख्या ६४, मूल्य २.५० रु०।। ७१. पुरुदेव नाटकः- भगवान ऋषभदेव के परम पावन जीवनवृत्त को प्रदर्शित करने वाले इस नाटक का प्रकाशन भी उपर्युक्त महोत्सव के शुभ अवसर पर किया गया। प्रथम संस्करण सन् १९८४ में। पृष्ठ संख्या १२२ । मूल्य ३.००। जैनधर्मः- भगवान जिनेन्द्र के द्वारा प्रतिपादित धर्म को जैन धर्म कहते हैं। जैन धर्म प्राणीमात्र का धर्म है। इसे तो पशु-पक्षियों तक ने धारण किया है। संसार का प्रत्येक मनुष्य इसे धारण कर सकता है। इसलिए माताजी ने यह छोटी-सी पुस्तक लिखी है। जैन धर्म का प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए बहुत अच्छी पुस्तक है। प्रथम संस्करण जुलाई १९८४ में। पृष्ठ संख्या ४४, मूल्य १.०० रु० । जम्बूद्वीप एंड हस्तिनापुर (अंग्रेजी):- जम्बूद्वीप गाइड का यह अंग्रेजी भाषांतर है। अंग्रेजी अनुवादक श्रीमती राजरानी जैन मोरीगेट दिल्ली। प्रथम संस्करण नवम्बर १९८३ में। पृष्ठ संख्या ३६, मूल्य ५० पैसा। ७४. जिनगुणसम्पत्ति विधान:- इस विधान में भगवान जिनेन्द्र के गुणों की पूजा है। प्रथम संस्करण का प्रकाशन सन् १९८५ में । पृष्ठ संख्या-४८, मूल्य २.५० रु०॥ नियमसार:- आचार्य कुन्दकुन्द के इस ग्रंथ की आ. पद्मप्रभमलधारीकृत प्रथम संस्कृत टीका की हिन्दी टीका पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने अतीव सुगम शैली में अथक परिश्रम करके की है। इसमें भावार्थ-विशेषार्थ भी दिये हैं। अनेक स्थलों पर गुणस्थानों का स्पष्टीकरण किया है। प्रथम संस्करण फरवरी १९८५ में। पृष्ठ संख्या ५२+५३० । मूल्य ३५/- रु०।। जैन जाग्रफी (अंग्रेजी):- पूज्य माताजी द्वारा जम्बूद्वीप के विषय में संक्षेप में लिखी गई पुस्तक जैन भूगोल का यह अंग्रेजी अनुवाद है। अनुवादक डॉ० एस.एस. लिस्क पटियाला (पंजाब) हैं। प्रथम संस्करण सन् १९८५ में। पृष्ठ संख्या ६०, मूल्य १०/- रु०। (पुस्तकालय संस्करण १५/- रु०) Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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