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________________ गणिनो आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [५२५ ४०. ४२. ३५. शांति विधानः- सुख शांति की प्राप्ति के लिए भगवान शांतिनाथ की पूजा है, इसमें १२० अर्घ्य हैं। प्रथम संस्करण सन् १९८० में। तीसरा संस्करण अप्रैल १९९१ में । प. संख्या ४४-८, मूल्य ५/- रु.। नित्य पूजा:- इस पुस्तक में सर्व जनप्रिय मवदेवता पूजन, सिद्ध पूजा एवं बाहुबली पूजा तथा कुछ भजन व आरती हैं। तीनों पूजाएं पूज्य माताजी द्वारा रचित हैं। प्रथम संस्करण १९८० में । द्वितीय संस्करण १९८१ में । पृष्ठ संख्या २८, मूल्य ५० पैसे। ३७. सुदर्शन मेरु पूजाः- पूज्य माताजी द्वारा लिखित सुदर्शन मेरु पूजा एवं सुमेरु वंदना के अतिरिक्त अन्य लेखकों की कविताएं व भजन भी इसमें दिये गये हैं। प्रथम संस्करण १९८० में । द्वितीय संस्करण सन् १९८२ में । पृष्ठ संख्या ५४, मूल्य ५० पैसा। सोलह भावना:- जिनकी भावना भाने से तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो जाता है, ऐसी सोलह भावनाओं का स्वरूप एवं एक-एक भावना संबंधि कथा इस पुस्तक में दी गई है। कथाएँ पुराण ग्रंथों से माताजी ने स्वयं संकलित की हैं। स्वाध्याय के लिए तो उत्तम है ही, प्रवचनकार विद्वानों के लिए भी विशेष रूप से उपयोगी है। प्रथम संस्करण फरवरी, १९८५ में, पृष्ठ संख्या १००, मूल्य ८/- रु. । ३९. तीर्थंकर त्रय पूजा:- भगवान् शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ की सामूहिक पूजा व अलग-अलग पूजा, भगवान बाहुबली की पूजा तथा हस्तिनापुर क्षेत्र का संक्षेप में प्राचीन-अर्वाचीन परिचय दिया है। सभी पूजाएं माताजी द्वारा रचित हैं। प्रथम संस्करण १९८१ में। पृष्ठ संख्या ४०, मूल्य १.०० रु.। भगवान् वृषभदेवः- जैन संस्कृति के प्रथम तीर्थंकर युग प्रवर्तक देवाधिदेव भगवान आदिनाथ का जीवन वृत्त-पांचों कल्याणक तथा उनके पूर्व भव इस उपन्यास में दिये गये हैं। पुस्तक छोटी होते हुए भी सारगर्भित है। पूज्य माताजी की अपनी यह एक विशिष्ट शैली है कि पुस्तक . छोटी हो या बड़ी, पूजाएं हों या स्वाध्याय के ग्रंथ, सभी में सुगमता से जैन धर्म के चारों अनुयोगों का समावेश कर देती हैं। माताजी द्वारा लिखी प्रत्येक पुस्तक को पढ़ने से जीवन जीने की कला प्राप्त होती है। प्रथम संस्करण सन् १९८१ में । पृष्ठ संख्या ७०, मूल्य २.५० रु.। रोहिणी नाटकः- महारानी रोहिणी जो कि महाराजा अशोक की पत्नी थी, जिसके पुण्य का इतना प्रबल उदय था कि उसे यह भी मालूम नहीं था कि रोना किसे कहते हैं? उसने ऐसे महान् पुण्य का बंध रोहिणी व्रत करके किया था, उस व्रत की महिमा इस नाटक में दिखाई गई है। तृतीय संस्करण सन् १९८८ में। पृ. ७२, मूल्य ३/- रु.। जिनस्तोत्र संग्रहः- पूज्य माताजी द्वारा लिखी हुई स्तुतियों एवं स्तोत्रों का यदा-कदा प्रकाशन विभिन्न पुस्तकों में किया गया। प्रत्येक स्तुतियाँ अतिभावपूर्ण हैं। उनका सबका एक साथ प्रकाशन इस स्तोत्र संग्रह में किया गया है। इसके प्रकाशन से माताजी द्वारा लिखी हुई स्तुतियों व स्तोत्रों पर शोध करने वाले शोधकर्ताओं को भी सुगमता हो गई है। इसमें प्राचीन आचार्यों द्वारा रचित भक्तामर, तत्त्वार्थसूत्र, स्वयंभू स्तोत्र आदि कुछ सुप्रसिद्ध स्तोत्र भी दिये गये हैं। प्रथम संस्करण जून १९९२ में। पृष्ठ संख्या ५३२-३६ । मूल्य ६४/- रु.।। जीवन दान:- जीव दया पर लिखे गये इस उपन्यास में मृगसेन धींवर द्वारा ली गई छोटी-सी प्रतिज्ञा उसे अगले भव में पाँच बार जीवन रक्षा में सहकारी होती है। इस घटना को बहुत ही सरल भाषा में प्रदर्शित करता है। प्रथम संस्करण १९८१ में। चतुर्थ संस्करण १९९२ में। पृ. ३६, मूल्य २.५० रु.। उपकार:- जीवंधर कुमार के जीवन के उतार-चढ़ाव को दर्शाने वाला यह उपन्यास सुकृत की महिमा को प्रकट करता है। द्वितीय संस्करण सन् १९८२ में। पृष्ठ संख्या ६०. मूल्य २.५० रु.। परीक्षा:- "पद्म पुगण' के आधार से उपन्यास की शैली में मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी एवं सीताजी का जीवनवृत्त इसमें है। पंचम संस्करण अप्रैल १९९१ में, पृष्ठ संख्या १६०, मूल्य ६. र. । नियमसार पद्यावली:- आचार्य कुंदकुंदकत आध्यात्मिक ग्रंथ नियमसार की १८७ गाथाओं का हिन्दी पद्यानुवाद माताजी ने किया है। इसमें मूल गाथाएं, पद्यानुवाद तथा गाथाओं के नीचे संक्षेप में अर्थ भी दिया है। अध्यात्म रस का आनंद लेने के लिए पद्यानुवाद सुरुचिकर है। प्रत्येक अधिकार के अंत में सारांश भी दिये हैं। प्रथम संस्करण अक्टूबर १९८.० में। पृष्ठ संख्या ११२, मूल्य ५/- रु.। दिगम्बर मुनि:- वैसे तो दिगम्बर मुनि आर्यिकाओं की चर्या संबंधी अनेक ग्रंथ लिखे गये हैं जैसे मूलाचार, अनगार धर्मामृत इत्यादि, किन्तु ये ग्रंथ बड़े-बड़े हैं। सामान्यजन इन ग्रंथों को पढ़कर संक्षेप में मुनिचर्या की जानकारी प्राप्त नहीं कर पावेंगे। इसे लक्ष्य में रखकर माताजी ने उक्त ग्रंथों के सार में, न बहुत संक्षिप्त न अति विस्तृत अपितु मध्यम रूप में इस "दिगम्बर मुनि' नाम से ग्रंथ को लिखकर तैयार किया। जिन-जिन ग्रंथों से जिस विषय को इसमें लिया है नीचे टिप्पणी में उन ग्रंथों का नाम दे दिया है। समस्त विश्व के लोगों के लिए दिगम्बर मुनि आर्यिकाओं की दीक्षा से समाधिपर्यंत प्रतिदिन प्रातः से रात्रि तक की जाने वाली क्रियाओं का सरलता से बोध कराया गया है। स्वयं मुनि-आर्यिकाओं के लिए भी यह ग्रंथ अत्यंत उपयोगी है। द्वितीय संस्करण १९८२ में, पृष्ठ संख्या ३०४-२८, मूल्य १०/- रु० । ४८. जैन भारती:- पूज्य माताजी ने अपने दीक्षित जीवन में सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन, स्वाध्याय किया है उनमें से सार रूप यह ग्रंथ माताजी ने लिखा है। इसमें एक-एक अनुयांग के विषय प्रारंभ से अंत तक संक्षेप में दिये हैं। चार खण्डों में चार अनुयोगों को बहुत ही सुगम शैली में प्रतिपादित किया है। जैन धर्म का प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए जैन एवं जैनेतर सभी के लिए महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इसका अध्ययन, स्वाध्याय Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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