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________________ ४८४] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला इसका अनुभव मुझे ही है। इससे अतिरिक्त मैंने जो भी ग्रंथ व पुस्तकें लिखी हैं उनमें से किसी के लिए भले ही किसी की प्रेरणा रही हो, फिर भी मैंने अतीवरुचि से आत्मा की शुद्धि व परोपकार की भावना से भी लिखे हैं इसमें कोई संदेह नहीं है। इस "मेरी स्मृतियाँ" से यदि कोई भी कुछ प्रेरणा ग्रहण करेंगे तो मैं अपना प्रयास सफल समशृंगी। भाषा- मेरी स्मृतियाँ अत्यधिक सरल भाषा में निबद्ध आत्मचरित है। पूरी कृति हिन्दी गद्य में निबद्ध है। यद्यपि बीच-बीच में माताजी ने संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी पद्यों का उपयोग किया है, लेकिन यह तो अपने कथनों को प्रामाणिकता देने के लिए है। मेरी स्मृतियाँ एक आर्यिका माताजी द्वारा निबद्ध आत्मचरित है, इसलिए यह पूर्णतः माताजी की जीवनचर्या पर आधारित है। अपने ५६ वर्ष के जीवन में प्रारंभ के ६ वर्ष निकाल देने के पश्चात् यह उनका ५० वर्ष का स्वयं का एवं साधु समाज का सिंहावलोकन है। माताजी ने इसे एक गति में निबद्ध किया है। लेकिन यह आत्मचरित जैसा प्रारंभ में संवेदनशील लगता है। मन में चुभन पैदा करता है, वैसा अन्त का अध्याय नहीं बन सका है। फिर भी प्रस्तुत मेरी स्मृतियाँ को वर्तमान आत्मचरितों में उच्च एवं लोकप्रिय स्थान प्राप्त होगा तथा भविष्य में दिन-प्रतिदिन लोकप्रियता प्राप्त करेगा ऐसा हमारा विश्वास है। लिए हा ११ उपन्यास साहित्य समीक्षिका-डॉ० कु० मालती जैन, मैनपुरी HAMARTHIL NONS I बाहुबली -भार में "आर्यिकारत्न ज्ञानमतीजी की कथा-सृष्टि" आर्यिका ज्ञानमती माताजी के कथा-साहित्य के विवेचन का दुधमुंहा प्रयास करते समय अनायास ही मुझे महाकवि तुलसीदास की यह पंक्ति स्मरण हो आई है: "कीरति भनति भूति मल सोई, सुरसरि सम सब कर हित होई।" सत्साहित्य वही है जो गंगा के समान सबका हित करने वाला हो। कोरे कागजों पर कलम की पिचकारी से स्याही की होली खेलने वाले तथाकथित साहित्यकारों की कमी नहीं है, किन्तु ऐसे साहित्यसेवी कभी-कभी ही जन्म लेते हैं जिनका साहित्य "सत्यं शिवं सुन्दरं" का संवाहक बनकर जीवन में अशुभ का निवारण कर, शुभ को प्रतिष्ठित करता है। बहुमुखी प्रतिभा की धनी आर्यिका ज्ञानमतीजी की तपःपूत लेखनी ने साहित्य की विविध विधाओं-उपन्यास, कहानी, नाटक, निबन्ध, कविता, स्तोत्र-साहित्य, पूजा-साहित्य, बाल-साहित्य, अनुवाद आदि को अलंकृत किया है। उनकी प्रत्येक कृति का अपने क्षेत्र में विशिष्ट स्थान है। गहन गम्भीर चिन्तन में प्रतिक्षण आकंठ निमग्न रहने वाली आर्यिकाजी की अभिरुचि जैन दर्शन के विलष्ट ग्रन्थों के अनुवाद में रमती है, फिर भी जनसाधारण को जैन पौराणिक साहित्य से परिचति कराने के उद्देश्य से उन्होंने कथा-साहित्य का भी सृजन किया है, जिसकी अपनी उपयोगिता है, अपना आकर्षण है। आज के भौतिकवादी युग में जब बेचारे व्यक्ति के सुनहले दिन को दो रोटियों की तलाश छीन लेती है और रूपहली रातें टी०वी० के रंगीन पर्दै के नाम कर दी जाती हैं तब किसे फुरसत है भारी-भरकम पुराणों को पढ़ने-सुनने की? वैसे तो पढ़ने का अवकाश ही कहां है और यदि कभी मनोरंजन के लिए कुछ पढ़ा भी जाता है तो जासूसी, अपराध-प्रधान कहानियां, सस्ते अश्लील उपन्यास और कॉमिक्स ही युवापीढ़ी के हाथों में नजर आते हैं। नैतिक मूल्यों के ह्रास के साथ इस समय में आवश्यकता थी-ऐसे उपयोगी कथा-साहित्य के सृजन की, जो अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से अनगि भ्रमित युवा पीढ़ी को अपने पूर्वजों के दिव्य आदर्श चरित्रों का ज्ञान करा सके, जिनका अनुसरण कर वह अपने जीवन के कंटकाकीर्ण मार्ग को सुगम बना सके। पूजनीया आर्यिकाजी ने कथा पुस्तकों की रचना कर आधुनिक युग की इस ज्वलन्त मांग की पूर्ति कर नई पीढ़ी को अपने उपदेशों द्वारा जो पाथेय प्रदान किया है, उसके लिए मानव समाज उनका सदैव ऋणी रहेगा। माताजी द्वारा प्रणीत कथा-साहित्य की कुछ पुस्तकों की समीक्षा निम्नवत् है:- 'प्रतिज्ञा', 'भगवान ऋषभदेव', 'जीवनदान', 'उपकार', 'परीक्षा', 'योगचक्रेश्वर', 'बाहुबली', 'कामदेव बाहुबली', 'आदिब्रह्मा', 'आटे का मुर्गा', 'सती अंजना', 'भरत का भारत'। प्रतिज्ञा : "प्रतिज्ञा" हस्तिनापुर के सेठ महारथ की सुशील, धर्मपरायण पुत्री मनोवती के दृढ़प्रतिज्ञा, निर्वाह और उसके पुण्यफलों का कथा वृतान्त है। मनोवती अपने बाल्यकाल में ही दिगम्बर जैन मुनि के समक्ष यह नियम लेती है- "जब मैं जिनमन्दिर में जिनेन्द्रदेव के समक्ष गजमोती चढागी, तभी भोजन करूँगी" इस कठोर प्रतिज्ञा-निर्वाह में उसे अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है, पर वह विचलित नहीं होती। विवाह के Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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