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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
कल्पगम की काव्य भक्ति
समीक्षक-विमल कुमार जैन सोरया, एम०ए० शास्त्री, प्रतिष्ठाचार्य, टीकमगढ़ (म.प्र.)
मणिनी आर्यिकाका
भावानुभूति को शब्दों में व्यक्त करना नैसर्गिक प्रतिभा का उपकार है। काव्यरचना दो प्रकार की होती है एक
तो तथ्य को शब्दों में पिरोकर प्रस्तुत करना उसकी कलात्मक चतुरता है। दूसरा तथ्य को सत्य तक ले जाकर कल्पद्रम
हृदय में अनुभूति प्रदान करना यह नैसर्गिक प्रतिभा है। आर्यिकारत्न परम-विदुषी ज्ञानमती माताजी ने अपनी विधान
काव्य प्रतिभा को भक्ति के रूप में अभिव्यक्ति दी है जो नैसर्गिक प्रतिभा के रूप में साकार हो उठी है। भावनाओं की अभिव्यक्ति जिस काव्य में होती है उस काव्य को बार-बार पढ़ने पर निरन्तर नई-नई चिन्तानुभूति का अव्यक्त आनंद पाठक स्रोता को उपलब्ध होता है।
किसी तथ्य पर स्वतन्त्र चिन्तन कर प्रस्तुतीकरण करना एक सौम्य प्रयत्न है, परन्तु आगम आज्ञानुसार वर्णित तथ्य को इस ढंग से प्रस्तुत किया जाए जो हमारे विचारों में नई चेतना के स्वर दें जिन स्वरों से हम अपने आपको भावनाओं की सुनहली धूप में खड़ाकर अपार प्रकाश की आभा का बोध करा सकें। यह एक प्रतिभापूर्ण प्रयास या नैसर्गिक कविता का प्रवाह माना जा सकेगा। कल्पद्रुम विधान की गरिमा इस तथ्य से अक्षरशः संयुक्त है।
विभिन्न छन्दों का प्रयोग और छन्द रचना में वर्णित मात्रों की शालीनता कवयित्री की अपार विलक्षणता को प्रस्तुत करती है। काव्य की संगति में जब कल्पद्रुम विधान नामक भक्ति के इस अपूर्व ग्रंथ का हम सस्वर वाचन करते हैं तो पाठक और श्रोता पर मुख्यतः ४ रूपों का परिबोध एक साथ परिलक्षित होता हुआ दिखाई पड़ता है। प्रथम पूर्वाचार्यों द्वारा प्रतिपादित विषय वस्तु का यथावत् चित्रण दूसरा उस चित्रण के साथ हमारी अन्यतम भक्ति की गहनता, तीसरा भक्ति के साथ गहरी भावनाएँ जो आराध्य के प्रति हमारे अन्तर्मन को पावनता तक ले जाती है और चौथा अर्थबोध की प्रस्तुत भावनाओं से वात्सल्यता के उस सागर में पहुँचा देती है जो हमारी रागभोग की प्रवृत्ति को विसर्जित करने में सक्षम है। इससे यह स्पष्ट होता है कि रचना अपने उद्देश्य की साकारता में पूर्णतः सफल और सुखकर है।
कवयित्री ने अपने काव्य में जहाँ एक ओर सुन्दर भावों की संयोजना की है वहाँ दूसरी ओर उसमें सौन्दर्य वृद्धि के लिए भी प्रयत्नशील रही है। प्रत्येक काव्य की श्रेष्ठता उसके कलापक्ष और भाव पक्ष के निर्वाह पर है। भावपक्ष के अन्तर्गत रस, भाव, अनुभाव और संचारी भाव आदि आते हैं और कलापक्ष के अन्तर्गत अलंकार, भाषा, छन्द पर विचार किया जाता है। कल्पद्रुम विधान भक्ति काव्य के दोनों पक्ष अपने आप में प्राणवान हो उठे हैं। रचना में भाव प्रवणता तो है ही, अलंकृत सज्जा भी है। अलंकारों का प्रयोग भावों की सौन्दर्य वृद्धि के लिए किया है। कल्पद्रुम में जहाँ भक्ति भावना का सागर लहराता है वहाँ उनकी वचन चातुरी भी दर्शनीय है, इस पूजा काव्य में जितनी सहृदयता और भावुकता है उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है। इनके पदों में आत्मानुभूति, संगीतात्मकता और कोमलकान्त पदावली जैसे प्रमुख तत्त्व विद्यमान हैं। संक्षिप्तता और भावों का केन्द्रीकरण तथा भाषा और भावों की स्पष्टता इनकी भक्ति काव्य की गुणज्ञता के प्रतीक हैं।
शान्त रस का स्थाई भाव निर्वेद है जो तत्त्व ज्ञान से उत्पन्न होता है। इसलिए वैराग्य, विनय, भक्ति आदि से प्रेरित होकर माताजी ने जिन पदों की रचना की उनकी गणना शान्तभक्ति के अर्न्तगत की जाएगी। प्रारम्भिक भक्तिपूर्ण धार्मिक जीवन की आधारशिला संसार के प्रति वैराग्य भावना है। सम्पूर्ण भक्तिकाव्य का अवलोकन करने पर पाया कि भाषा में ओज की अपेक्षा प्रसाद और माधुर्य गुण अधिक मात्रा में विद्यमान है। भाषा अत्यन्त प्रवाहमयी
और संगीतात्मक है। सार्थक शब्द योजना के कारण भाषा अत्यन्त सशक्त हो गई है। भावों एवं प्रसंगानुकूल भाषा होने से दृश्य चित्रण जैसा आनंद प्रदान करती है।
दार्शनिक दृष्टि से जिनेन्द्रभक्ति के इन भावमयी ज्ञानबोधक पदों का पाठन अन्तस में एक निर्मलता प्रदान करते हैं जो हमारे अनन्त अशुभ कर्मों की एक देश निर्जरा एवं शुभकर्मों के शुभाश्रव के कारण हैं। यही शुभाश्रव आत्मसिद्धि के हेतु होते हैं। अतः माताजी का पूजाभक्ति का यह काव्य हमारी आत्मा की सिद्धि के सोपानों पर ले जाने का साक्षात् कारण है। इसलिए यह एक अलौकिक सातिशय ग्रंथ के रूप में समाहार है। जितने बार भी इस ग्रंथ का पाठ किया गया नई-नई अनुभूतियाँ नया-नया चिन्तन और नए-नए विचारों के प्रकीर्णन हमारे अन्तर्मन में जाग्रत हुए। भावों की निर्मलता से प्राप्त आनन्दानुभूति से यह भक्ति काव्य ग्रंथ जन-जन के लिए आराधना का हेतु बन गया। यही कारण है एक वर्ष में इसके दो संस्करण विपुलमात्रा में प्रकाशित होकर जन-जन के लिए पठन के हेतु बन गये।
भक्ति काव्य की सफलता भावनाओं की प्रधानता, शब्दों की सरलता-पदों की गम्यता और भाषा की प्रवाहता के कारण ही लोकप्रिय होता है और
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