SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 504
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४०] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला जम्बूद्वीप गाइड समीक्षक-डा. रमेश चन्द्र जैन, उज्जैन DONARASINORINE प्रस्तुत पुस्तक वीर ज्ञानोदय अर्थमाला का पुष्प नं. ५५ है। कुल २५ पृष्ठों की पुस्तक वास्तव में गागर में सागर है। परम पूज्य आर्यिका ज्ञानमती माताजी एक महान् विदुषी लेखिका हैं। जिनकी १२५ से अधिक रचनाएँ अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं और ५० से अधिक रचनाएँ प्रकाशन की ओर हैं। वर्तमान समय में ज्ञानमती माताजी ही एक ऐसी आर्यिका हैं जिन्होंने जैन दर्शन एवं धर्म के विभिन्न अंगों पर अधिकारपूर्वक लगभग २०० ग्रन्थ रचकर समाज को दिए हैं। प्रस्तुत रचना की सामग्री तिलोयपण्णत्ति, जम्बूद्वीप पण्णत्ति आदि अनेक ग्रन्थों से ली गई हैं। जम्बूद्वीप गाइड में जैन भूगोल के अनुसार जम्बूद्वीप का विस्तार, प्रमुख पर्वत, क्षेत्र, नदियों एवं जिनमंदिरों का वर्णन है। जैन भूगोल के अनुसार लोक तीन हैं। जिनके नाम क्रमशः ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक एवं अधोलोक हैं जिसमें मध्यलोक का विस्तार दोनों लोकों की अपेक्षा से कम है। तीनलोक संबंधी अकृत्रिम चैत्यालयों की पूजन पर्वो पर की जाती है। इस मध्यलोक में ३२ द्वीप और ३२ समुद्र हैं। जिसमें प्रथम द्वीप का नाम जम्बूद्वीप है। इसका विस्तार एक लाख योजन है और थाली के समान गोल है। इसके चारों ओर लवण समुद्र है। इसके केन्द्र में ९९००० योजन विस्तार वाला विशाल सुमेरू पर्वत है। छह प्रमुख पर्वतों के कारण (हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मि एवं शिखरी) यह द्वीप सात प्रमुख खण्डों (भरत, हेमवत, हरि, विदेह, रम्यक्, हैरण्यवत् एवं ऐरावत क्षेत्र) में विभाजित हैं। भरत क्षेत्र का विस्तार ५२६.३२ योजन है और इससे दूने विस्तार वाला पर्वत हिमवान है। इससे दूना हेमवत् क्षेत्र है और ऐसे विदेह क्षेत्र तक दूना विस्तार है। तत्पश्चात् आधा-आधा हो गया है। अंतिम क्षेत्र ऐरावत का विस्तार ५२६.३२ योजन है। इन सातों क्षेत्रों में अनेक नदियाँ एवं पर्वत हैं जिनमें से दो प्रमुख नदियाँ पूर्व एवं पश्चिम के लवण समुद्रों में गिरती हैं। विशेष जानकारी निम्न तालिका से प्राप्त की जा सकती है। क्षेत्र क्रमांक क्षेत्र का नाम खण्डों की संख्या दो प्रमख नदियों के नाम काल । भरत गंगा एवं सिन्धु षट्काल १ आर्य खण्ड ५म्लेच्छ खण्ड सम्पूर्ण हेमवत् हरि सम्पूर्ण रोहित एवं रोहितास्या. हरित एवं हरिकांता सीता एवं सीतोदा तीसरा दूसरा चतुर्थ विदेह ३२ आर्य खंड १६० म्लेच्छ खंड संपूर्ण रम्यक हैरण्यवत् ऐरावत संपूर्ण १ आर्य खण्ड ५म्लेच्छ खण्ड नारी एवं नरकांता स्वर्णकूला एवं रूप्यकूला रक्ता एवं रक्तोदा दूसरा तीसरा षट्काल इस द्वीप में तीर्थंकरों की जन्म स्थली भरत. विदेह एवं ऐरावत क्षेत्र के आर्यखण्डों में ही हैं। भरत एवं ऐरावत क्षेत्र में तीसरे काल के अंत में और चतुर्थ काल तक २४ तीर्थकर जन्म लेते हैं, जबकि विदेह क्षेत्र में २० तीर्थंकर हमेशा विद्यमान रहते हैं। विदेह क्षेत्र के विद्यमान २० तीर्थंकर से सम्बंधित नित्य पूजा प्रत्यक मंदिर में होती है। ऐरावत क्षेत्र के भूत, वर्तमान एवं भविष्य के तीर्थंकरों की जानकारी अनुपलब्ध है। समेरू पर्वत विदेह क्षेत्र में स्थित है और तल पर भद्रसाल नाम का वन है। इससे ५०० योजन ऊपर जाने पर नन्दन वन है और ६२५०० योजन ऊपर की ओर सौमनस वन है। पुनः ३६००० योजन ऊपर पांइक वन है। प्रत्येक वन में अनेक चैत्यालय हैं जिनका वर्णन पंचमरू संबंधी पूजन में आता है। पांइक वन में चार दिशाओं में चार अर्द्ध चन्द्राकार शिलाएं हैं। विशेष जानकारी निम्न तालिका से प्राप्त की जा सकती है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy