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________________ २३६] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला जय गणिनी माँ ज्ञानमती तव चरणन कोटि प्रणाम है Jain Educationa International जिनवाणी की मूर्तरूप मी ज्ञानमती तब वन्दन । संयम की साकार रूप कोटिक कोटिक अभिनंदन ॥ पूजा की पूजक आराधक और ज्ञान की नंदन । भक्ति भाव से नितप्रति मेरा तव चरणों में वंदन ॥ यथानाम तव गुणगरिमामय देखा रूप तुम्हारा । संयम की सुगंध से तुमने अपना रूप निहारा ॥ जग उद्धारक जनहित कारक सिद्धों को अपनाकर । ज्ञान लोक से अन्तर तम को काटा यथा दिवाकर || श्रावक के षट् कर्त्तव्यों में प्रथम रूप पूजन है I मंगल वाणी से प्रसूत उससे उपकृत जन-जन है ॥ भावों भरी आत्म सुखकारी सहृदयी रचनाएँ । आराधन कर लाखों जन-जन जिन्हें आज अपनाएँ ॥ गूढ़ गम्य आगमवाणी को हृदयंगम कर लीना । जन-जन के उपकार हेतु माँ भव्यों को सुखदीना ॥ जिनवाणी की परम्परा में जो सतकार्य किया है। कोटिक विज्ञजनों के द्वारा नहिं साकार हुआ है ॥ सुन्दर भव्य मनोहर सुखकर आत्मज्ञान गुणकारी । रचनाओं का पाठन करके भव्य मोक्ष अधिकारी ॥ आर्षग्रन्थ में वर्णित जम्बूद्वीप कथन मनहारी । रचना कर लोकोत्तर युग का कार्य किया सुखकारी ॥ - वर्द्धमान कुमार जैन सोरया, प्रकाशक वीतरागवाणी मासिक, टीकमगढ़ कोटि-कोटि जन युगों-युगों तक हों कृतज्ञ माँ तेरे । तव चरणों की सम्यक् भक्ति हृदय बसे नित मेरे ॥ मेरा कोटि नमन है - श्रीमती गजरादेवी सौरया सैलसागर, टीकमगढ़ [म०प्र० ] संयम की सुगंध से आलोकित जिनका तन-मन है । गणिनी ज्ञानमती के चरणन मेरा कोटि नमन है ॥ दर्शन, ज्ञान, आचरण तीनों का जहाँ हुआ मिलन है । पूज्य आर्यिका ज्ञानमती का मंगल अभिनंदन है ॥ अभिनंदन का अर्घ्य आपको अर्पित हर्षित मन है । शत-शत कृतज्ञता से पूरित भारत का हर जन है ॥ ज्ञान ध्यान, तपः युक्ता का आगम जहाँ कथन है । किया उसे साकार आज तुम सा न अन्य कोई जन है ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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