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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
मातृभूमि यह महायशी है, शक्तिरूपा को पाके । देवराज तक नत होते हैं, जिनकी तप महिमा गाके ॥ जिनकी ज्ञान किरण विकसित है, नभ-वसुधा में अनुपम देख ।
परम श्री आदरणीया का, कंचन-सा पथ पावन नेक ॥ महामनीषी आज धरा की, शोभित करती काम समान । ज्ञानमती माताजी को है, शतशः बारम्बार प्रणाम ॥
संयम तप की शुभधारा से जो भी कभी नहाता है । अतिशयी वह हो जाता जग में, सबके कष्ट मिटाता है । शाश्वत सद्भावों से ही, जीवन यशमय है बढ़ता ।
मानव तन है धर्म कसौटी, फेंके मिथ्यावी जड़ता ॥ रत्नत्रय के पथ पर बढ़कर, पाता क्रमशः शिवसुख धाम । ज्ञानमती माताजी को है, शतशः बारम्बार प्रणाम ॥
जिस-जिसने तव दर्शन पाया, जन्म-जन्म का पुण्य लिया । अर्चन से कृतकत्य हुआ है, मानव तन को धन्य किया । यशस्वती बन कुन्दन चन्दन, सी सुरभित है जन-जन में ।
पूर्णमासी की ज्ञानचन्द्रिके, कार्यशक्ति बिखरी तन में ॥ समता क्षमता की देवी की, छाया पाकर सभी ललाम । ज्ञानमती माताजी को है शतशः बारम्बार प्रणाम ॥
संभव किया असंभव को भी, जाएँ देखें धर्मस्थल । नाम हस्तिनापुर महिमामय, नत हो जाते देखें खल ॥ पत्थर दिल पारस हो जाता, नीरसता को किया सरस ।
शाप मिटाने इस धरती का, पावन व्रत ले बढ़ी हरष ॥ धन्य-धन्य हे ज्ञान श्री तेरी भक्ति दे शिवसुख धाम । ज्ञानमती माताजी को है, शतशः बारम्बार प्रणाम ॥
यह पावन अभिनन्दन बेला, शुभ अर्चन से धन्य करूँ । रवि को क्या मैं शमा दिखाऊँ, पथ तेरा चल कर्म खपूँ ॥ शब्दों के शुभ शब्द चढ़ाके, श्रद्धानत हूँ माँ आगे ।
मिले मातु-सी शक्ति हममें, दे आशीष की वह जागे । यथा नाम तत गुण से शोभित, नारी तन की दिव्य महान । ज्ञानमती माताजी को है, शतशः बारम्बार प्रणाम ॥
जब तक सूरज-चाँद गगन में, गंगा-यमुना में पानी । मातु श्री हे ज्ञानमती जी, तेरी गरिमा हो शानी ॥ तारागण-सी छवि रहे, और रहें चाँदनी-सी उज्ज्वल ।
ज्ञान-स्रोत को रखें प्रवाहित, जय तेरी हो नभ और थल ॥ यही कामना माँ चरणों में, शुभाशीष दें शुभ हो काम । ज्ञानमती माताजी को है, शतशः बारम्बार प्रणाम ॥
शतशः बारम्बार प्रणाम।
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