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________________ २१४] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला "श्री ज्ञानमती माता जी " - कयामुद्दीन मुन्तर नगीनवी १३७, कोठी अतानस, मेरठ जिस तरह फूल को देती है जनम खिलके कली, ऐसे मैना से बनी ज्ञानमती माता जी । ज्ञान सा ज्ञान है इन ज्ञानमती माता को, हक़ की पहचान है इन ज्ञानमती माता को । धर्म की खोज है जिन लोगों को वो इन से मिलें, इनके उपदेश सुनें इनकी किताबों को पढ़ें । ऐसी माता को ब्रह्मचारिणी नारी कहिये, और अहिंसा में अहिंसा की पुजारी कहिये । जीवनी आपके जीवन की बताती है हमें, आज के वक्त की आचार्या हम इनको कहें । हर ग्रन्थ इनका है मानव की भलाई के लिये, यानी हर पाप से हर दुःख से रिहाई के लिये । जम्बूद्वीप इनका करिश्मा है चमत्कार है यह, आप पर लार्ड महावीर का उपहार है यह । हस्तिनापुर को बहारों का नगर कर डाला, इसने ही ज्ञानमती नाम अमर कर डाला । इनसे मिलने के लिये मैं भी गया था मुज्तर, इनके दर्शन से सुकून दिल को मिला था मुज्तर । ज्ञानमति हे तुम्हें नमन - निर्मलचन्द जैन "आजाद" जबलपुर [म०प्र०] जम्बूद्वीप की पावन प्रेरिका, ज्ञानमति हे तुम्हें नमन । ज्ञान ध्यान वैराग्य साधिका, ज्ञानमति हे तुम्हें नमन ॥ दृढ़ निश्चयी तपोमूर्ति, विदुषी माता तुम्हें नमन ॥ सम्यग्ज्ञान की ज्ञान साधिका आर्षमार्गी का तुम्हें नमन । शरद चाँदनी सम तुम चमकी, अवध प्रान्त के प्रांगण में । खिल उठी बगिया धनकुमार सुत श्री छोटेलाल के आंगन में । वीर के पथ पर चली वीरमति, देश भूषण के चरणन में । शांति दर्श किये कुंथलगिरी में, वीर गुरु के चरणन में ॥ बनी आर्यिका ज्ञानमती अब, ज्ञानार्जन का लक्ष्य किया । जैन ध्वजा सम्पूर्ण देश में, फहराने का संकल्प लिया । शिवसागर महाराज संघ रह, ज्ञान ध्यान उपवास किया । उत्तर दक्षिण सम्पूर्ण देश में, पद यात्रा विहार किया ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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