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मंगल आशीर्वाद
-सन्मार्ग दिवाकर आचार्यरत्न १०८ श्री विमलसागरजी महाराज
माताजी की प्रखर बुद्धि, तर्कशक्ति, नये-नये विचार, नवीन-नवीन रचना की क्षमता अत्यंत सराहनीय है। माताजी ने बालपन से ही वैराग्य को अपने जीवन का श्रृंगार बनाया है। गुरुओं से विचार-विमर्श कर किसी कार्य को करना आपकी गुरुभक्ति का परिचायक है।
मार्च सन् १९८७ में उनकी प्रेरणा एवं आग्रह से अपने संघ सहित मैं हस्तिनापुर पहुँचा तो वहाँ जम्बूद्वीप रचना का अद्वितीय कार्य देखकर मन फूला नहीं समाया। तबसे मैं प्रतिदिन जम्बूद्वीप के समस्त चैत्यालयों का ध्यान करता रहता हूँ। ८ मार्च १९८७ को वहाँ मैंने माताजी के शिष्य ब्र० मोतीचन्दजी को क्षुल्लक दीक्षा देकर ‘मोतीसागर' बनाया तथा श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक महोत्सव में मैंने सभी प्रतिमाओं को सूरिमंत्र प्रदान किया। ___ ज्ञानमती माताजी ने मुझसे अनेक शास्त्रीय एवं सामयिक विषयों पर चर्चा की। उनकी वही चिर-परिचित गुरुभक्ति तथा धर्मवात्सल्य देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। ___माताजी का शरीर नीरोग रहे, धार्मिक प्रभावना करते हुए आत्मप्रभावना द्वारा जीवन के अन्तिम लक्ष्य को प्राप्त करें, यही मेरा माताजी के लिए मंगल आशीर्वाद है।
सम्मेद शिखर ३ जून १९९२
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