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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [२११ "गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की जय हो" -ब्र० रवीन्द्र कुमार जैन, अध्यक्ष : जम्बूद्वीप, हस्तिनापुर गए और जाएंगे कितने मुक्तिधाम को जिनवर । णि प्पिच्छो निर्वाण नहीं पा सकते कोई मुनिवर ॥ नीति यही कहती है क्रम से व्रत का पालन करना आज नहीं तो कल सिद्धी कन्या है तुमको वरना ॥ १ ॥ र्यि शब्द की महिमा ऋषि मुनियों ने है बतलाई । काम, क्रोध परनिन्दा तजकर आत्मरमण कर भाई ॥ रत् रहना शुभ ज्ञानध्यान में यही आपका लक्षण । नहीं लुभा पाया दुनिया का वैभव तुम्हें किसी क्षण ॥ २ ॥ श्री बाह्य लक्ष्मी को तज अन्तरलक्ष्मी को पाना । ज्ञाता बुद्धी से शास्त्रों में पढ़कर उसको जाना ॥ नमन किया गुरु आदर्शों को सच्चा पथ अपनाया । मनन किया शुभ शास्त्रों का तब जम्बूद्वीप बनाया ॥ ३ ॥ तीर्थक्षेत्र हस्तिनापुरी को भारत में चमकाया । मान नहीं सम्मान नहिं अपमान डिगा नहीं पाया । तान वही वीणा को ले इक सोता तीर्थ जगाया ॥ जीना है तो संघर्षों से डरो नहीं बतलाया ॥ ४ ॥ की है न्यायनीति जो उस पर अमल सभी को करना । जय हो गणिनी ज्ञानमती जी जय तेरी गुण गरिमा । धरती माता तुझसी माता पाकर धन्य हुई है। मेरी नमित कराञ्जलि में पुष्पाञ्जलि धन्य हुई है ।। ५ ।। अविस्मरणीय क्षण -बा० ब्र० कौशल वन्दन के साथ रत्नत्रय साधना का रूप देखने को मिला । शरीर में पीड़ा होते हुए भी चेततापूर्ण सजग व सावधान थीं । परिचर्या भी हो रही थी । किन्तु, उस ओर कोई अपेक्षा नहीं । कुछ ऋषि प्रणीत सम्बोधन हुए । दवा से बढ़कर प्रार्थना शक्तिशाली होती है । शरीर से अधिक आत्मबल श्रेष्ठ होता है । वही सजीव दृश्य देखने को मिला । चेतना से जागरूक अथवा Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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