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ब्र. कु. माधुरी शास्त्री दीक्षा से पूर्व अपनी जन्मभूमि में स्वागत स्वीकार करती हुई।
१३ अगस्त, १९८९ को हस्तिनापुर में दीक्षा के लिए कु. माधुरी का केशलोंच करती हुई गणिनी आर्यिका श्री।
माधुरी से बन गई आर्यिका चन्दनामती १३ अगस्त, १९८९ को।
कु. माधुरी के मस्तक पर आर्यिका दीक्षा के संस्कार करती हुई माताजी।
पू. श्री ज्ञानमती माताजी, आर्यिका श्री अभयमती माताजी एवं आर्यिका श्री चंदनामती माताजी १४ अगस्त, १९८९ को आहार ग्रहण करती हुई।
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