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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
एकान्तवादीभसिंही धरित्र्याः
पुनातु पृष्ठं दुरिताञ्जनेभ्यः ॥ ५ ॥ गणिनी सुसंघे शिविरप्रबोधिका
ममादृशानां हस्तावलम्बिनी प्रकृष्टसज्ज्ञानज्योतिः धरिण्याः
पुनातु पृष्ठं दुरिताञ्जनेभ्यः ॥ ६ ॥ दीक्षासुशिक्षाप्रमुखप्रयत्नैः
संस्कारितानां सुतनिर्विशेषम् हितैककरणक्षमा क्षमायाः
पुनातु पृष्ठं दुरिताञ्जनेम्यः ॥ ७ ॥
स्तुति
- आर्यिका अभयमतीजी
श्री ज्ञानमती माता, अध्यात्म रसिक वक्ता । सबको संबोधन कर, व्यवहार कुशल ज्ञाता ॥ जग में आलोक किया, निज ज्ञान किरण द्वारा । निज में प्रतिभास हुआ, चैतन्य कला द्वारा ॥ दिव्य ज्योति जगा करके, जन-जनकर सुख साता । सबको . . . . . . . . . . . . ॥१॥ चंदन चंदा तारे, नहिं मन शीतल करते । तव वचनामृत पाकर,भवि संत अमर बनते ॥ निज के द्वारा निज में, अनुभव कर भ्रम नाशा । सबको . . . . . . . . . . . . ॥ २ ॥ गागर में सागर भर, अरू बिंदु में सिंधु भरा । विष को अमृत कर दें, तप में श्रुत ध्यान धरा ॥ विज्ञान प्राप्त करके, संयम लहे तज आसा । सबको . . . . . . . . . . . . ॥ ३ ॥ अंजन से निरंजन बन, मिथ्यात्व विनाश किया । आतम परमात्म बन, सम्यक्त्व प्रकाश किया ॥ सहजिक सुख में रमके, लहें, झट शिवपुर वासा सबको . . . . . . . . . . . . ॥४॥
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