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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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प्रतिमा है। पू० माताजी की लेखनी इतनी सरल और आधुनिक है कि बाल-गोपाल भी आसानी से जैनधर्म में रुचि लेते हैं और उनका चहुँमुखी साहित्य पढ़ने से नहीं घबराते हैं। जम्बूद्वीप रचना की वे प्रेरिका हैं। अनेक विधानों की वे रचयित्री हैं; जैसे- इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम विधान, शान्ति विधान, तीस चौबीसी विधान, ऋषि मण्डल विधान आदि जो पहले संस्कृत में होने की वजह से कभी-कभी कराये जाते थे, परन्तु आज ऐसा कोई दिन नहीं होता, जबकि पू० माताजी द्वारा लिखित विधान कहीं न कहीं न होता हो।
पूज्य माताजी दीर्घकाल तक स्वस्थ रहे और श्री जी से प्रार्थना है कि वे दीर्घ आयु प्राप्त करें, ताकि हम जैसे अज्ञानियों का मार्गदर्शन व आशीर्वाद मिलता रहे।
शत-शत वंदन
- पुरुषोत्तमदास जैन, जगाधरी [हरियाणा]
सन् १९७५ की बात है। परम पूज्य आचार्य श्री धर्मसागरजी स हान-मार तीर्थक्षेत्र पर विराजमान थे, उनके दर्शनार्थ हमें सपरिवार जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आचार्यश्री के दर्शनों के साथ-साथ ही बड़ नांदी में विराजमान पूज्या आर्यिका माता ज्ञानमतीजी के दर्शन करने का सुयोग भी प्राप्त हुआ। पूज्य माताजी एवं धर्मश्रेष्ठी ब्र० मोतीचंदजी सर्राफ (वर्तमान पूज्य भुल्नक मोतीसागरजी) से जम्बूद्वीप रचना की योजना, जिसका मॉडल भी पास के कमरे में रखा हुआ था, की जानकारी प्राप्त हुई। मन बहुत ही प्रफुल्लित हुआ, माताजी ने एक ऐसी रचना को साक्षात् निर्माण कराने का बीड़ा उठाया है, जिसका वर्णन अभी तक केवल शास्त्रों में ही पढ़ने को मिलता था, उसको साकार रूप देने जा रही हैं। जो एक अद्भुत एवं नवीन रचना होगी, जो हजारों वर्षों तक जैन धर्म की पताका लहरायेगी व धर्म प्रभावना होगी।
सुमेरु पर्वत के सोलह चैत्यालयों में एक चैत्यालय आप की ओर से बनना है, पूज्य माताजी के आशीर्वाद से हम और हमारी धर्मपत्नी की ओर से सहर्ष स्वीकृति हो गई। उसके उपरांत तो जम्बूद्वीप रचना में एवं त्रिलोक शोध संस्थान से हार्दिक लगाव ही हो गया। इसके उपरांत प्रत्येक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं अन्य धार्मिक समारोहों में हमने तन-मन-धन से भाग लिया।
१९८७ की पंच कल्याणक प्रतिष्ठा के तप कल्याणक का संस्मरण हमेशा याद रहेगा, परम पूज्य आचार्य विमल सागरजी विशाल संघ सहित विराजमान थे, भगवान् की पालकी उठाने के लिए बाली होने जा रही थी उसी समय एक सुझाव आया कि भगवान् की पालकी उठाने का अवसर उनको मिलेगा जो आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत पालन करने का नियम धारण करेंगे, कितने ही बंधुओं ने ब्रह्मचर्यव्रत को धारण किया, परम पूज्य आचार्य श्री एवं माताजी का आशीर्वाद प्राप्त कर श्रीजी की पालकी उठाने का शुभ अवसर एवं सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ था।
कई बार जम्बूद्वीप में सपरिवार इन्द्रध्वज विधान एवं अन्य विधानों में बैठने के सुअवसर प्राप्त हुए। यह सब परमपूज्य माता ज्ञानमतीजी की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से हो सका।
इस युग की पूज्य माताजी ऐसी प्रथम आर्यिकारत्न हैं जिन्होंने अपने अभूतपूर्व ज्ञान से जम्बूद्वीप जैसी महान् रचना को साकार रूप दिया, पूज्य माताजी यथा नाम तथा गुण ज्ञान की भण्डार ही हैं, जिन्होंने अनेक ग्रंथों की टीकाएँ करके, अनुवाद करके एवं अनेक विधानों की रचना करके सरल भाषा में सृजन किया है, जिनके द्वारा जैन, अजैन जनता हमेशा धर्मज्ञान प्राप्त करती रहेगी।
वीर प्रभु से प्रार्थना है कि पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न माता ज्ञानमतीजी दीर्घायु हों आपके द्वारा धर्म का प्रचार-प्रसार होता रहे। हमारे समस्त परिवारकी ओर से उनके पावन चरणों में कोटि, कोटि नमन ।
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