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________________ १२६] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला श्रद्धापूर्वक नमन कैलाशचंद जैन चौधरी, इन्दौर महामंत्री - महावीर ट्रस्ट एवं आदिनाथ आध्यात्मिक अहिंसा फाउण्डेशन यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी से संबंधित एक विशेष अभिवन्दन-ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा 1 है वास्तव में माताजी का जैन धर्म, जैन दर्शन, जैन संस्कृति के प्रति जो समर्पण है, उसको अनुभूति से मन प्रसन्न एवं गद्गद हुए बगैर नहीं रहता । दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान एवं जम्बूद्वीप रचना हमेशा-हमेशा माताजी के नाम को अमर रखने में ऐतिहासिक भूमिका निर्वाह करती रहेगी। माताजी ने जो उपकार हम पर किये हैं, उससे सारा भारतीय दिगम्बर जैन समाज उनका चिरकाल तक कृतज्ञ रहेगा। उनके चरणों में श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए मेरी यही अंतरंग भावना है कि वे शतायु होकर अपने आशीर्वाद और अपनी विद्वत्ता से समाज को लाभान्वित एवं गौरवान्वित करती रहें। माताजी के चरणों में पुनः नमन् । जादुई व्यक्तित्व Jain Educationa International हमारे यहाँ सनावद मध्यप्रदेश में परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न पूज्य माताजी ज्ञानमतीजी ने चातुर्मास (वर्षायोग ) किया; यह सन् १९६७ की बात है। उन चार माह में नवयुवकों में जो धर्म की भावना आपने जाग्रत की, वह आज भी कायम है। उस वर्षायोग में आपने दानवीर सेठ मयाचंदसाजी की धर्मपत्नी द्वारा मंडल विधान भरवाया तथा बड़े उत्साह के साथ कार्य सम्पन्न हुआ, उसी वर्षायोग में माताजी ने अपने साथ दो नवयुवकों को अपने साथ ले लिया; ये दोनों युवक मुनि आचार्य श्री वर्धमानसागरजी, क्षुल्लक श्री मोतीसागरजी बाल ब्रह्मचारी थे, जो आज पूरे भारतवर्ष में सनावद का नाम उज्ज्वल कर रहे हैं। - - इन्दरचंद चौधरी अध्यक्ष दि० जैन समाज, सनावद इस प्रकार एक वर्षायोग का यह चमत्कार रहा। यों भी माताजी एक जादूगर के माफिक हैं, इनके सम्पर्क में एक बार कोई आ गया वह इनकी दृष्टि में जम गया, वह फिर इनके चक्कर से छूट नहीं सकता है, ऐसा मेरा अनुभव है वीर प्रभु से प्रार्थना है कि माताजी शतायु हों तथा आगम का प्रचार करती रहें, यही मेरी पू० माताजी के चरणों में विनयांजलि है । श्रावकों की मार्गदर्शिका - For Personal and Private Use Only परम आदरणीय पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के सानिध्य में उनकी प्रेरणा से मुझे सन् १९८० में प्रथम बार इन्द्रध्वज महामण्डल विधान कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जो निर्विघ्न सानंद सम्पन्न हुआ। इसके बाद कई बार उनकी जन्म जयंती महोत्सव मनाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मेरी हार्दिक इच्छा है कि आगे भी उनका मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद मिलता रहे। धर्म ग्रन्थ- प्रकाशन कार्य में विविध गति से कार्य करती रहें एवं जैनागम के प्रचार एवं प्रसार में श्रावकों को अपना अमूल्य मार्गदर्शन कराती रहें। यहां मेरी विनयांजलि है कि माताजी शतायु हों । पन्नालाल सेठी एवं परिवार डीमापुर [नागालैंड ] www.jainelibrary.org.
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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