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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
मंगलकामना
- साहू रमेशचन्द्र जैन, कार्यकारी निदेशक
__टाइम्स ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के प्रति विनयांजलि के रूप में अभिवन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है।
सरस्वती और अध्यात्म की अर्चना का आपका यह प्रयास स्तुत्य है। पूज्य माताजी जैन दर्शन की परम विदुषी हैं। अध्यात्म और ज्ञानाराधना उनका जीवन है। उनके कृतित्व और व्यक्तित्व को जन-जन तक पहुँचाने में यह अभिवन्दन ग्रन्थ सफल होगा ऐसी मैं आशा करता हूँ। आपका प्रयास सार्थक हो। मेरी मंगलकामना आपके साथ है।
पूज्य माताजी के चरणों में सादर वन्दना ।
सम्यक्ज्ञान की अजस्रधारा
- राजेन्द्र प्रसाद जैन कम्मोजी, दिल्ली
जैसे गंगा नदी का शीतल जल शरीर को ही पवित्र करता है, चन्द्रमा की शीतल किरणें भी विश्व को शीतलता प्रदान करती हैं, वसन्तऋतु सोई हुई प्रकृति को नवजीवन प्रदान करती है, वर्षा का जल झुलसी हुई पृथ्वी को तृप्ति प्रदान करता है। उसी प्रकार इस भौतिकवादी युग में पापों में उलझे हुए ज्ञानविहीन प्राणियों को ज्ञानमूर्ति, बालब्रह्मचारिणी गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी अपने सम्यक्ज्ञान की अजस्रधारा से निरन्तर शान्ति प्रदान कर रही हैं।
जिन्होंने १७ वर्ष की छोटी-सी उम्र से ही कठोर साधना प्रारम्भ कर दी थी, संसार, शरीर, भोगों से विरक्त उन ज्ञानमती माताजी के बारे में यूं तो मैंने आचार्यरत्न श्री देशभूषण महाराज के मुख से अनेक प्रशंसाएं सुन रखी थीं, फिर उनके दिल्ली प्रवास में नजदीक से देखकर मैंने उनमें जो अपूर्व तेज पाया, वह प्रायः विरले मनुष्यों में ही देखा जाता है।
पूज्य माताजी जहाँ चारित्र में अत्यन्त दृढ़ हैं वहीं अपने सोचे गए कार्यों को पूर्ण करने में भी उनकी विशिष्ट क्षमता है। वे तो हमारी क्या जगत् की माता हैं और वर्तमान के समस्त साधुओं में सर्वाधिक प्राचीन दीक्षित आर्यिका हैं।
उनकी प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं कि मैं उनके अनमोल गुणों का वर्णन कर सकूँ। हाँ, अभिवन्दन ग्रन्थ प्रकाशन की इस मंगल बेला में इतना अवश्य कहना चाहता हूँ कि पूज्य माताजी हमारे समाज की एक अमूल्य धरोहर हैं, इनकी हमें जितनी बने उतनी सेवा - वैयावृत्ति करके संभाल करनी चाहिये; ताकि अधिक से अधिक दिनों तक देशवासियों को उनके तप, त्याग और ज्ञान का लाभ मिलता रहे । चरणों में शतशत नमन।
विनयांजलि
- रमेशचंद जैन - राजपुर रोड, दिल्ली
बाल्यकाल से ही धर्म में प्रवृत्ति त्यागमयवृत्ति ने आज की ज्ञानमती माताजी को जहां एक ओर शास्त्रज्ञ, अन्वेषक, ग्रन्थ रचयिता, व्याख्याता एवं समाज को धर्म की प्रेरणा देने वाली बनाया है वहीं दूसरी ओर त्याग की उत्कृष्ट वृत्ति के आचरण का सम्यक भार वहन का उत्तरदायित्व भी दिया है।
इनकी प्रेरणा तथा मार्गदर्शन में बने जम्बूद्वीप तथा कमल मन्दिर ने हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र को नया आयाम दिया है। समाज को सदैव ही इनके प्रवचनों सहित ग्रन्थों तथा आगम व्याख्याओं से धर्माचरण की प्रेरणा मिलती रहती है। संस्कृत में इनकी विद्वत्ता ने अष्टसहस्री जैसे कठिन ग्रन्थ का जिसे कष्टसहस्री भी कहते हैं हिन्दी में अनुवाद एवं टीका करके एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है।
इनका आचरण एवं प्रबुद्धता जन-जन को धर्म के मार्ग पर चलने में सहायक हो, ऐसी मेरी विनयांजलि है।
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