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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [१२१ एक समय - शिल्पी साधक, सौम्य, सरस, मृदु, गम्भीर, कर्मठ, चिंतक एवं संकल्प शक्ति की साधिका का नाम ही आर्यिकारत्न ज्ञानमती है। अनेक प्रतिष्ठानों की जन्मदाता, जीवनदाता, अनगिनत ग्रन्थों की लेखिका, कार्यक्षमता और श्रमशीलता से संस्कृत, पाली,प्राकृत जैसी भाषाओं के क्लिष्ट ग्रन्थों का सरलीकरण कर, आपने विपुल साहित्य का सृजन व अभिवृद्धि कर समाज की आने वाली अनेक पीढ़ियों पर महान् उपकार किया है। जम्बूद्वीप दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान व आपके निर्देशन में संचालित संस्थाएँ युगों-युगों तक आपका बोध करायेंगी। जिसके लिए समाज आपका कृतज्ञ रहेगा। मेरी वीर प्रभु से प्रार्थना है कि पूज्य माताजी शतायु हों। इस अवसर पर मैं माताजी के चरणों में विनयाञ्जलि अर्पण करते हुए नमन करता हूँ। सरस्वती की प्रतिमूर्ति - देवकुमार सिंह कासलीवाल अध्यक्ष : कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने इस बीसवीं शताब्दी में साहित्य सृजन का अनुपम कार्य किया है। हमारी नई पीढ़ी प्रथमानुयोग के ग्रन्थों का स्वाध्याय न करने के कारण धर्म विमुख होती जा रही थी। हर व्यक्ति को द्रव्यानुयोग की चर्चा नहीं सुनाई जा सकती। न तो यह उपादेय है और न शक्य । पूज्य माताजी ने प्राचीन पुराणों से प्रामाणिक रूप से कथानकों का संकलन कर सुंदर सुबोध शैली में उपन्यासों, नाटकों एवं कथा संग्रहों का सृजन किया। बच्चों एवं महिलाओं हेतु रचित उनका साहित्य अत्यन्त लोकप्रिय है, इस साहित्य से बालकों एवं किशोरों की धर्म के प्रति रुचि बढ़ी है यह बहुत बड़ी सफलता है। पूज्य माताजी ने यह कार्य कर समाज पर बड़ा उपकार किया है। लगभग एक दशक पूर्व तक मात्र अष्टान्हिक पर्यों में सिद्धचक्र विधान एवं यदा-कदा, चतुर्विंशति विधान, पंचपरमेष्ठी विधान की बात सुनाई देती थी। पूज्य माताजी द्वारा अनेक विधानों की रचना कर भक्ति संगीत का ऐसा सशक्त माध्यम उपलब्ध कराया गया है कि आज सर्वत्र विधानों की धूम है एवं समाज का एक बड़ा वर्ग इनके माध्यम से कुछ समय के लिए भक्तिरस में डूब जाता है। विधानों में उपजे संस्कार अनेकशः जीवन की दिशा बदल देते हैं। भूगोल, खगोल, न्याय, व्याकरण पर आपके ग्रन्थों, जिनकी संख्या १२५ से भी अधिक है, को देखकर ऐसा लगता है मानो आप सरस्वती की प्रतिमूर्ति हों। माताजी के द्वारा किया गया कार्य अभिवन्दनीय है,अतुलनीय है। अभिवन्दन ग्रन्थ प्रकाशन के आपके निर्णय हेतु साधुवाद तथा पूज्य माताजी के चरणों में शतशः नमन् । अक्षयकीर्ति अर्जित की है - राजाबहादुर सिंह, इन्दौर श्री पूज्य १०५ आर्यिकारत्न गणिनी ज्ञानमती माताजी वर्तमान युग की सर्वश्रेष्ठ साध्वी हैं, जिन्होंने अपने विशाल ज्ञान और चरित्र द्वारा श्रमण संस्कृति के उन्नयन में अपना सक्रिय योगदान देकर अक्षयकीर्ति अर्जित की है। पूज्य माताजी ने अष्टसहस्री नामक उच्चकोटि के न्यायग्रन्थ का हिन्दी सुनवाद तथा अनेक ग्रंथों की रचना कर जैन साहित्य को समृद्ध बनाया है। हस्तिनापुर प्राचीन क्षेत्र में जम्बूद्वीप का शास्त्रोक्त वृहद् निर्माण कराकर एक अनुपम और अद्भुत स्मारक स्थापित किया है, जिसके दर्शनकर दर्शकगण आपके प्रति सदैव कृतज्ञ बने रहेंगे। हमें आश्चर्य है कि आप अस्वस्थ रहकर भी निरन्तर साहित्य रचना और निर्दोष रूप से आर्यिकाव्रत निर्वाह करते हुए स्व-पर कल्याण में तत्पर बनी रहती हैं। यह भी एक अनुकरणीय उदाहरण है कि पूज्य माताजी का गृहस्थ जीवन का अधिकांश परिवार त्याग और निवृत्ति की ओर प्रवृत्त होकर आपकी रत्नत्रयाराधन में पूर्ण सहयोग दे रहा है। ___ आपके इस अभिनन्दन या अभिवंदन के अवसर पर मैं अपने परिवार सहित आपकी सविनय सभक्ति मंगलकामना करते हुए आपके द्वारा हो रहे सत्कार्यों की सराहना एवं विनम्र श्रद्धा प्रकट करता हूँ। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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