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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [११७ हे अम्बे ! हे ज्ञानमते ! - अमरचंद पहाड़िया, कलकत्ता भारत की संस्कृति विश्व की वरेण्य कृतज्ञता भरी संस्कृति है। हमें जहाँ से जो भो मिला, हम श्रद्धा से अभिभूत होकर आम्र वृक्षों की तरह विनम्र हो गये, हमारी वाणी मधुमिश्रित हो गई, नेत्र आनन्दाश्रुओं से आप्लावित हो गये, स्तुति का संगीत गुंजारित हो गया। जो जगती को देता है, चमकाता है, वह देवता के गौरवास्पद पद पर अभिषिक्त कर दिया गया। पूज्या श्री ज्ञानमतीजी आप भी विविधस्वरूपा देव तुल्या हैं ___ दानतीर्थ प्रवर्तक राजा श्रेयांस के अक्षय तृतीया के इक्षु-रस आहार दान के विस्मृत तीर्थ हस्तिनापुर को पुनः स्मृतिपटल पर अंकित कर उस इक्षु प्रदेश को पुनः अभिसिंचित कर दिया है। भगवान ऋषभ के षट् कर्म उद्घोष को पुनः अपनी प्रखर प्रतिभासम्पन्न वाणी से उद्घोषित कर जन-जीवन को ज्योतिर्मय कर दिया है। शांति कुंथु अरह-चक्रवर्ती, कामदेव, तीर्थकर पदधारियों के पावन प्रदेश को अपनी जनकल्याणी निर्झरिणी से ज्ञानामृत का प्रसार कर चमत्कृत कर दिया है। भीष्म पितामह की दृढ़ता, कर्त्तव्यनिष्ठता को अपनी कर्ममय जीवनचर्या से जगती तल पर पुनः साकारित कर दिया है-धर्मराज युधिष्ठिर की सत्यनिष्ठा को अपनी समीचीन आगम प्ररूपित सत्यता से सर्वोच्च शिखर पर आरोहित कर दिया है। आपने हस्तिनापुर को उसका विस्मृत अतीत का गौरव पुनः प्रदान किया है-उसके स्वर्णिम इतिहास में एक पृष्ठ और जोड़कर जो आत्म सम्मान उसे प्रदान किया है, वह एक देव तुल्य कार्य है। समीचीनी सत् साहित्य की अजस्त्र धारा प्रवाहित कर भगवती सरस्वती का जो महा अभिषेक आप प्रतिदिन कर रही हैं, उससे अभिषिक्त होकर जन मेदिनी अपने संत्रस्त अंतस को सांत्वना प्रदान कर रही है। जिस प्रकार माता अपने पुत्र के लिए अंतरंग वात्सल्य पूरित भाव से दुग्ध का विसर्जन कर उसका पोषण करती है, उसी प्रकार आप भी परिपूर्ण मातृभाव से ज्ञानामृत की पयस्विनी धारा से शिष्यजनों के भव-भय रोग निवारणार्थ उनका सम्पोषण कर रही हैं। करुणा-कर्तव्य-शांति ये मातृत्व के अपरिमित गुण आप में विद्यमान हैं। आप में श्रद्धा अडिग एवं अकम्प है। जहां विवेक है, त्याग है, उत्सर्ग का भाव है, वहीं मातृत्व है-जहाँ अधिकारों का निनाद है-संग्रह की पाशविक वृत्ति है, वहाँ हिंसत्व है-आप जानती हैं यह क्षमाशील धरती सबकी अन्तिम शैया है। हे मंगल मूर्ते ज्ञानमते। आप महती, कल्याणमयी निर्झरिणी से सबका दुःख हरती। शारदे सरस्वती रूपा ज्ञानमते। दश धर्म दीप से प्रज्वलित क्षमाधारिणी बन। आप नित रत्नत्रय निलय में रहती॥ स्वीकार करो मेरा अभिवन्दन, मेरा प्रणाम, मेरा नमन। जिनशासन की महत्त्वपूर्ण सेविका -निर्मल कुमार जैन [सेठी] अध्यक्ष : श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा पूज्य गणिनी १०५ आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने विशाल साहित्य का लेखन, सम्पादन एवं प्रकाशन करवाकर अनेक विद्वत् गोष्ठियाँ, अनेक सेमिनार करवाकर जिनशासन की महत्त्वपूर्ण सेवा की है। जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति के भ्रमण के माध्यम से भी जैन-जैनेश्वर समाज में धर्म के प्रति उत्साह पैदा किया है एवम् शाकाहार के प्रचार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। पूज्य माताजी अपनी धुन की पक्की हैं और वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिए श्रावक-श्राविकाओं को विशेष प्रेरणा देकर कार्य सम्पादित करने की विशेष क्षमता रखती हैं। जब से मैं महासभा का अध्यक्ष बना हूँ, तब से आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का वरदहस्त पा रहा हूँ और हमें प्रेरणा मिलती रही है। मैं पूज्य माताजी के दीर्घ जीवन की कामना करता हूँ। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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