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________________ ८२] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला सम्पूर्ण दुनिया के देश अपनी भूमि को पितृभूमि कहते हैं, परन्तु भारतवासी अपने भारत को मातृभूमि कहकर उसकी वंदना करते हैं। माता जाति के प्रति कितना बड़ा सम्मान है। जैन धर्म अध्यात्मवादी धर्म है, वहाँ आत्मा के ही महत्त्व को प्रधानता दी है। जिसकी पर्याय से हटकर अंतरदृष्टि जाग्रत हो गई, वहाँ ही महानता के दर्शन हो जाते हैं। माताजी महान् नारी रत्न है, जिन्होंने बचपन से विषय विकारों पर अंकुश लगाकर आत्म-साधना शुरू कर दी, बंधनकारी गृहस्थ आश्रम में प्रवेश ही नहीं किया। बाल ब्रह्मचारिणी होकर आज के लाखों जन-जन की मातुश्री हैं। माताजी ने चारों अनुयोगों के सिद्धांत शास्त्रों का गहन अध्ययन किया है। मनन-चिन्तन हुआ है। न्याय, व्याकरण जैसे कठिन विषयों का तलस्पर्शी अध्ययन कर अष्टसहस्री, समयसार आदि अनेक महाग्रन्थों की टीकाएँ कर आपने महान् विदुषी पद का परिचय दिया है। साहित्य की अनेक विधाओं - बाल साहित्य, गद्य-पद्य कहानी, इतिहास, स्तोत्र, आदि के द्वारा सैकड़ों ग्रन्थ लिखकर साहित्यिक अवदान को समयोचित रूप देकर माँ भारती के भंडार को भरा है। माताजी का महान् उपकार समाज कभी भूल नहीं सकता। वह है विविध पूजा विधानों का सरल हिन्दी भाषा में, ललित छंदों में, इन्द्रध्वज, कल्पद्रुम, सर्वतोभद्र, नंदीश्वर इत्यादि विधानों की रचना जैनेन्द्र देव के गुणानुराग के लिए पूजा विधान द्वारा सामूहिक भक्ति भावना से हम पापों से बचते हुए आत्म हित कर सकते हैं। सच्चा श्रावक भोगों का विश्वासी नहीं, आत्म-कल्याण का इच्छुक होता है। इस काल में श्रावकों के लिए पूजा-विधान से बढ़कर कोई कर्तव्य नहीं है, लेकिन वे विधान संस्कृत में होने से या अनुपलब्ध होने से सर्वसाधारण जनता भक्ति रूपी पुण्य लाभ से वंचित हो रही थी इस कमी की ओर पूज्य माताजी की सूक्ष्म दृष्टि गई और उन्होंने अल्प समय में ही अनेक विधानों की रचना कर समाज का बहुत उपकार किया है, आज से करीब आठ वर्ष पूर्व मुझे भी हिसार (हरियाणा) में स्वर्गीय प्रोफेसर मुनिसुव्रत जी के द्वारा इन्द्रध्वज विधान संपन्न कराने का आमंत्रण आया था, तब मैंने हस्तिनापुर जाकर माताजी से आशीर्वादपूर्वक विधान की प्रतियाँ, आवश्यक सामग्री तथा निर्देश प्राप्त कर बड़ी प्रभावना के साथ विधान सम्पन्न कराया था। आज जगह-जगह समाज में विधानों की धूम मची है। इस धर्म प्रभावना का श्रेय माताजी हो ही है 1 पूज्य माताजी ने भारत के अनेक प्रान्तों में पैदल भ्रमण करते हुए संयम, सदाचरण का उपदेश देकर लोगों का हित संवर्धन तो किया ही है, हस्तिनापुर जैसे प्राचीन ऐतिहासिक नगर में जैन भूगोल की प्रतिष्ठा बढ़ाकर, जम्बूद्वीप का निर्माण करवाकर अपने नाम को अमर बना दिया है, जिसको देश-विदेश के लोग देखकर प्रभावित हो रहे हैं। भूतपूर्व प्रधानमंत्री राष्ट्रनायक इन्दिरा गाँधी के द्वारा उद्घाटित ज्ञान ज्योति का पूरे देश में रथ के द्वारा भ्रमण अनोखी प्रभावना का कार्य था, जो तीन वर्ष तक चला। इस ज्ञानज्योति रथ से सम्पूर्ण राष्ट्र में नैतिकता, अहिंसा, विश्वप्रेम एवं मानवीय मूल्यों को बल प्रदान किया गया। मुझे भी सिवनी जिले के कुछ हिस्सों में ज्ञानज्योति के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। जहाँ जैनियों के साथ अजैन जनता ने स्वागत में हिस्सा बैटाकर मांस, मदिरा का त्याग किया। इस प्रकार एक कोमलांगी माता के द्वारा अनेकानेक जैनधर्म की प्रभावना के कार्य हुए हैं, हो रहे हैं 1 सम्यग्ज्ञान पत्रिका के द्वारा भी जैन सिद्धान्त के चारों अनुयागों के आधार से रोचक सामग्री प्राप्त हो रही है अपने गुरु आचार्य श्री वीरसागरजी के नाम से संस्कृत विद्यापीठ द्वारा धर्म समाज की सेवा के लिए अनेक विद्वान् साधकों को तैयार करना माताजी की कर्मठता का जीता जागता प्रमाण है माताओं को भक्ति, शक्ति एवं सरस्वती रूपी ज्ञान की अधिष्ठात्री माना गया है। आपने अपने बहुमुखी रचनात्मक कार्यों से सिद्ध कर दिया है कि माताजी साक्षात् ज्ञान की गंगा स्वरूप हैं। हम पूज्या माताजी के यशस्वी दीर्घ जीवन की कामना करते हैं। विनयांजलि 1 पूज्या ज्ञानमती माताजी का दिगम्बर आर्यिका संघ में एक बहुश्रुत नाम है ज्ञान और वैराग्य के समन्वय से जिन्होंने अपने जीवन को उत्कर्ष की राह पर आगे बढ़ाया है, उन प्रभावक महिलाओं की सूची में उनका नाम बहुत ऊपर है। थोड़े ही समय में उनकी साधना की अर्द्ध शताब्दी पूरी हो जायेगी, जो अपने आप में एक गौरवमयी उपलब्धि कही जा सकती है। ऐसे महनीय व्यक्तित्व का अभिवन्दन वास्तव में अपनी आस्था का ही अभिवन्दन है। Jain Educationa International नीरज जैन, सतना (म०प्र० ] जैन वाङ्मय की भी उल्लेखनीय सेवा आर्यिका ज्ञानमती माताजी के द्वारा हुई है। प्राचीन ग्रन्थों की टीकाओं और अनुवादों के साथ-साथ मौलिक लेखन उनकी विशेषता है "मेरी स्मृतियाँ" शीर्षक से उनके जो संस्मरण प्रकाशित हुए हैं, वे अपने आप में एक प्रामाणिक इतिहास जैसे हैं। | For Personal and Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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