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________________ चल रहा है। ये सब देन पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की है, जिन्होंने ऐसे सुन्दर-सुन्दर मंडल विधानों की रचना कर सारी समाज में भक्ति की गंगा प्रवाहित कर दी है। अष्टसहस्त्री जैसे ग्रंथों का अनुवाद, नियमसार की संस्कृत टीका, कातंत्र व्याकरण की हिन्दी टीका आदि विद्वानों के लिए भी दुरूह कार्यों को करके आपने आर्यिकाओं का जो गौरव बढ़ाया है वह अतुलनीय है । आपकी प्रेरणा से निर्मित हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की रचना तो आज विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक धरोहर बन गई है, जिसे देखकर जैन एवं जैनैतर हजारों लाखों लोग नतमस्तक होते हैं। इन सभी कार्यों के द्वारा हम सभी विद्वानों में पूज्यमाताजी के प्रति अगाध श्रद्धा जाग्रत हुई है। इसलिये हम लोगों ने आपका सम्मान करने का बीड़ा उठाया और आज हम इस अभिनंदन ग्रंथ के द्वारा आपका सम्मान करने जा रहे हैं। लेकिन हम जानते हैं कि आपके सम्मान में एक नहीं यदि १०० अभिवंदन ग्रंथ भी प्रकाशित किये जायें तो भी कम हैं। क्योंकि आपके गुण व आपके कार्य महान् हैं। उन सभी गुणों का अभिवंदन करने में हम सक्षम ही नहीं हैं। यह ग्रंथ तो मात्र एक औपचारिकता है । वास्तव में आपकी लेखनी में सरस्वती का ऐसा निवास है जो भी लिखती हैं वह एक-दूसरे से बढ़कर सरस एवं हृदयग्राही हो रहा है। आपकी इस लेखनी ने हम सभी विद्वानों का मस्तक ऊँचा किया है। इसीलिये आपका अभिवंदन कर हम अपने को गौरवशाली मान रहे हैं। वैसे हम जानते हैं कि माताजी निंदा-स्तुति से परे हैं। आपकी कोई निंदा करे, प्रशंसा करे लेकिन आप सभी पर समभाव रखकर अपने ज्ञान ध्यान में लीन रहती हैं। इस अभिवंदन की बेला में हम यही कामना करते हैं कि हे माता! आप शतायु हों, स्वस्थ रहें एवं हम सभी को चिरकाल तक आपका आशीर्वाद एवं अमृतवाणी को सुनने, पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होता रहे । इस ग्रन्थ के प्रकाशन में जिन लेखकों ने अपनी रचनायें भेजकर हमें सहयोग प्रदान किया है उनके प्रति हम आभार प्रदर्शित करते हैं । परम गुरुभक्त धर्मानुरागी श्री मनोजकुमार जैन — हस्तिनापुर, श्री नरेश बंसल जैन-दिल्ली एवं श्री राकेश कुमार जैन- मवाना का भी आभारी हूँ, जिन्होंने इस ग्रंथ के प्रकाशन में तन-मन-धन समर्पित कर अपनी गुरुभक्ति का परिचय दिया है। श्री अनिल कुमार जैन, कागजी, चावड़ी बाजार - दिल्ली तथा श्री विजय जैन, दरियागंज - दिल्ली के भी हम आभारी हैं, जिन्होंने ग्रंथ की फोटो टाइप सेटिंग करके तथा शीघ्र प्रकाशित करने में हमें सहयोग प्रदान किया है। इसके साथ ही इस सन्दर्भ में जिस किसी भी महानुभाव का जो भी हमें सहयोग प्राप्त हुआ है, परोक्ष से हम सभी का धन्यवाद करते हैं। अन्त में इस ग्रंथ के प्रकाशन में प्रूफ संशोधन में यदि किसी प्रकार की कोई त्रुटि रह गई हो या कोई भूल हुई हो उसके लिए हम अपने सभी पाठक बन्धुओं से क्षमाप्रार्थी हैं। १. डा० लाल बहादुर शास्त्री, दिल्ली २. डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर ३. डा० प्रेमसुमन जैन, उदयपुर ४. डा० श्रेयांस कुमार जैन, बड़ौत Jain Educationa International गुणानुरागी सम्पादक गण ब्रo रवीन्द्र कुमार जैन — हस्तिनापुर For Personal and Private Use Only ५. डा० शेखर चंद, अहमदाबाद ६. पं० विमल कुमार सोंरया, टीकमगढ़ ७. डा० अनुपम जैन, ब्यावरा ८. बाल ब्र० विद्युल्लता शहा, सोलापुर www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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