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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
बड़नगर में हुआ । यह सम्मेलन पूज्य-पाद स्वर्गस्थ आचार्य देव श्री राजेन्द्रसूरिश्वरजी महाराज का “अर्ध-शतब्दि" महोत्सव कहाँ मनाया जावे ! इस सम्बन्ध में विचार करने के हेतु एकत्रित हुआ था । उसी समय मुनि समुदाय की ओर से समाज के प्रतिनिधियों के सन्मुख यह प्रस्ताव आया था कि वर्तमान् आचार्य श्री का हरिक-जयंति महोत्सव मनाया जाना चाहिये ।
किन्तु उस समय का प्रमुख विषय अर्ध-शताब्दि महोत्सव था इस कारण उस विषय पर विशेष विचार न हो सका। पूज्य गुरुदेव श्री ने भी उस समय इस कार्य के लिये आदेश नहीं दिया अतएव स्मृति-रुप में ही वह विचार रह गया।
जब अर्ध शताब्दि महोत्सव "मोहनखेड़ा-तीर्थ" पर विशाल जन-समुदाय के साथ सफलता पूर्वक सम्पन्न हो गया तब श्री संघ एवं सन्त समुदाय के सन्मुख "हरिक-जयंति" उत्सव मनाने का कार्य उपस्थित हुआ।
जब राणापुर में आचार्य देव श्री का चार्तुमास हो रहा था उसी अवसर पर श्री संघ के प्रमुख सज्जन वहाँ पर एकत्रित हुए और यह निश्चय किया कि "हरिक-जयंतिउत्सव” मनाया जावे और इस सम्बन्ध में "अभिनंदन-ग्रन्थ" के प्रकाशन हेतु ७००१) रुपये की धन-राशि दी जाना स्वीकृत की। स्मरण रहे यह रुपया अर्ध-शताब्दि-महोत्सव के बचत कोष में से दिया गया।
नागदा-जंकशन में प्रतिष्ठा महोत्सव की समाप्ती पर आप खाचरोद पधारे और वहीं पर आपका हरिक-जयंति महोत्सव मनाया गया।
नव-पद-आराधन जैन-शासन में नव-पद-आराधन का विशेष महत्व है। जैनियों के लिये ही नहीं किन्तु प्रत्येक जातियों के लोगों के लिये यह आराधन लाभ-प्रद सिद्ध हुआ है। प्राचीन काल में श्रीपाळ राजा और मैना सुंदरी के अपार कष्ट इसी अमोध मंत्र के जाप से मिटे ।
आयंबिल की उत्कृष्ट कियाऐं आत्मशुद्धि व स्वास्थय को लाभ करती हैं । आज भी जैनसमाज का बहुत बड़ा विश्वास इन क्रियाओं पर है और उनका पालन भी होता है।
खाचरोद नगर में श्री मोतीलालजी सा-बनवट भी सिद्ध-चक्र आराधक व्यक्ति हैं। प्रतिवर्ष आपही की ओर से इस महोत्सव का आयोजन होता है और उसका सारा व्ययभार भी आपही सहन करते हैं । इस वर्ष पूज्य गुरुदेव श्री का योग प्राप्त हुआ और इसी अवसर पर "हरिक-जयंति-महोत्सव" भी बनाया जानेवाला था इस कारण विशेष आनंद रहा।
मंडप की सजावट जिस स्थान पर धार्मिय क्रियाएँ होतीथीं उसे बहुत ही आकर्षक बनाया गया था। पक तरफ श्रीपाल राजा का पूरा जीवन चित्र व इतिहास सहित दिखाई देता था। उस दृश्य
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