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विषय खंड
खरवाटक भिणाय और श्री चवलेश्वर पार्श्वनाथ
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खरवाटक और जैन धर्म "दादा, बाधा डूंगरां, भाईजण बनराय । बू-बेयारी खेजड्यां, नद्यां जामणमाय ॥ 'तू' कारै मांटीमरै, 'जी' कारेने सांप । कणविध कण सं बोलणूं, जण-जण कालोसाप ॥ मक्की माणक, जो रतन; कांदा रोकड़ दाम ।
सोनी चारो धापिया, ऊबासी आराम ॥ 'खरवाटक भिणाय एवं चवलेश्वर' लेख के प्रसंग में खरवाटक और जैनधर्म संबंधी कुछ परिचय दे देना भी अप्रासांगिक नहीं कहा जा सकता । वर्तमान में खरवाटक के प्रमुख ग्रामों में माण्डलगढ़, जहांजपुर, नंदराय, कोटडी, धामणिया, अममरढ़, आमलदा, बागूदार, पारोली, काछोला, मुआ, मानपुरा, खटवाड़ा, बीगोद हैं । दोनों सम्प्रदायों के घर इनमें और अन्य ग्रामों में लगभग ८०० और ९०० के मध्य है। उपरोक्त एक या दो ग्रामों को छोड़कर प्रायः सभी ग्रामों में जैन मंदिर भी हैं । यह प्रदेश आज से ५० वर्ष पूर्व चौर्यकर्म के लिये ही विख्यात् रहा है । जैनेतर शातियों का जिनमें भील, मीणे आदि प्रमुख हैं उनका चौरी करके उदर भरना ही मुख्य था । ऐसे विकट प्रदेश में भी जैनधर्म आज से ८००-९०० वर्ष पूर्व से चला आ रहा है और इस प्रान्त के जैन मंदिर इस बात की साक्षी देते हैं कि जैनकुलों का यहां प्रभाव रहा । इधर के श्वेताम्बरकुल प्राय राजक्षेत्र में कार्य करते रहे हैं । व्यापार में भी वे आगे रहे हैं । माण्डलगढ़ के महताकुल का इतिहास मेवाड़ के राणाकुल के साथ कई गत शताब्दियों से जुड़ा हुआ रहा है। नन्दराय के चौधरियों का कुल भी मुसद्दी रहा है। घामणिया के लोढ़ा, बीगोद के पगारिया और माण्डलगढ़ के लोढ़ा अन्न और नाणा के लेनदेन में अग्रणी रहे हैं। जहांजपुर, नन्दराय, बीगोद, माण्डलगढ, पारोली, अमरगढ, कोटड़ी में जो श्वेताम्बर मंदिर हैं उनमें प्रतिमायें अधिकांशत: पाषाण की है और वे प्रायः १४ वीं १५ वीं शताब्दी के आसपास और पीछे की है। लेखक ने इन सर्व प्रतिमाओं के लेखों का संग्रह करने का कुछ वर्ष पूर्व प्रयास प्रारम्भ किया था, लेकिन प्राग्वाट इतिहास और फिर राजेन्द्र-स्मारक ग्रन्थ और भयंकर रुग्णता का क्रमशः क्रम बंधा रहने से वह कार्य अपूर्ण ही रहा। उपरोक्त तीन दोहों से प्रान्त की विकटता, उसके निवासियों की बर्बर रुचिका स्पष्ट परिचय मिल जाता है। ऐसे प्रान्त में भी जैनधर्म और उसके अनुयायी अपना प्रमुत्व स्थापित रख सके हैं । खरवाटक के इतिहास में जैन इतिहास ही प्रमुख अध्याय और अधिक भाग है। मेरी भावना है कि मैं 'ओसवाल इतिहास' भी लिखू अगर यह गुरुकृपा हो गया तो खरवाटक का इतिहास 'ओसवाल इतिहास' का एक पठनीय अध्याय होगा।
‘श्री चवलेश्वर तीर्थ' इस प्रान्त का प्रमुख तीर्थ है और सर्व सम्प्रदायों को वह मान्य है। अस्तु ।
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