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________________ विषम खंड खरवाटक भिणाय और श्री चवलेश्वर पार्श्वनाथ पर्वत पर शाहपुरा की ओर के चढाव पर जब से सुदृढ सीढियां बनवादी हैं-चढ़ाव में होनेवाला भ्रम कम हो गया है। तीर्थ अत्यन्त रमणीय स्थान में आया है। चातुर्मास में तो इसकी शोभा दर्शनीय एवं रमणीय हो जाती है। * पार्श्वनाथ प्रतिमा वैसे तो इतनी खण्डित है कि वह अपूज्य कही जा सकती है परन्तु दो संप्रदायों का विवाद नहीं तो उस पर लेप करने देता और नहीं नवीन मूर्ति की स्थापना के सुभाष में सहाय करता है । * ● पार्श्वनाथ प्रतिमा के लगालग नहीं, परन्तु दायी दिवार के सहारे एक दिगंबर प्रतिमापट्ट है जो कुछ ही वर्षों पहिले स्वसत्त्व स्थापना की भावना से पीछे से बैठा दिया गया है। - भिणाय तलाब -- यह तालाब भिणायबाव और तीर्थ के ठीक मध्य में मैदान में आया है । इस समय तालाब में उसके शुष्क हो जाने पर गेहूँ आदि की कृषि होती है । तालाब पर पाल बनी है। इस पाल में लगे पत्थर मंदिर और घरों के खण्डहरों से लाये गये और लगाये गये प्रतीत होते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि तालाब * पार्श्वनाथ प्रतिमा - इस प्रतिमा के संबंध में इधर एक वह दंतकथा प्रचलित है कि बनास नदी में 1 एक गो किसी स्थल पर दूध शार कर नित्य अपने गोपाल के घर आतो थी। गौ से गोपाल को जब क दिन बराबर दूध नहीं मिला तो उसने इस रहस्य को जान लेने का एक दिन प्रयत्न किया । उस दिन गोपाल की दृष्टि उस गो पर समस्त दिन भर रही । वह देखता क्या है कि गौ समूह में से मलन होकर एक मोर नदी में जारही है। वह भी इसके पीछे हो का निदान गी एक स्थान पर पहुँच कर रथन से दूध शारने की । गोपाल बड़ा समझदार था। यह यह सर्व कौतुक देखकर चकित भी हुआ और इर्पित भी हुआ । गौ का य दूध शारने का क्रम बराबर कई मास चालू रहा। कहते हैं श्री नाथू श्रेष्ठी को एक रात्रि को स्वप्न हुआ । उसमें भगवान की अधिष्ठायिका देवी ने उसको कहा कि बनास नदी में अमुक स्थल पर भगवान् पार्श्वनाथ को बानिर्मित प्रतिमा तैयार हो गई है। तू उसको महां से निकाल कर महोत्सव कर और उसको इस चूलत पर्वतकी पर मंदिर बनाकर स्थापित कर । मेरे मतानुसार वह कथा ही भ्रामक है। प्रतिमा को बाळूविनिर्मित देखकर ऐसी कथा किसीने चालू कर दी और वह अब तक चल रही है। ऐसी कथायें बावनिर्मित प्रतिमानों के संबंध में अन्यत्र भी सुनने में भाई है । - २८१ - Jain Educationa International नाथू कावड़िया श्रेष्ठी के संबंध में इवर एक दंतकथा वह भी प्रचलित है कि एक समय किसी दिल्लीसम्राट ने नौ-नौ हाथ लम्बे नौ स्वर्ण पाटों की 'शाह' पद धरानेवाले व्यापारीवणिक वर्ग से मांग की। न देने पर शाह' पद छीन लेने की धमकी दी। इस पर दिल्ली के कई शाह एकत्रित हो कर भारत के कोने २ में उक्त प्रकार के पाटों की प्राप्तिहित विचरे। कहते है कि उनकी उक्त आवश्यकता की पूर्ति इस नायू शाह ने जो स्वर्ण पाट नै न हाथ लम्बे देकर की थी " है । जवनकाळ में भिणाव ऐसा प्रसिद्ध रहा होता तो वरन्तु वह कमा सर्वया निष्या वनकालभर प्रसिद्ध एवं गौरवान्वित और मिणाय वा कुछ इतिहास भी होगा और उसकी प्रसिद्धि - अधिक प्रसिद्ध रहे है । रहा मेवाड - राज्य के राणाओं का मिलता । मेरे मतानुसार तो भिणाब टक भर रही होगी। यवनकाल में इस प्रान्त के दुर्ग माण्डलगढ़ और जहाजपुर ध्यान उसकी भोर भवश्य जाता यवनकाल में एक छोटा करना रहा For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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