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________________ विषय खंड खरवाटक भिणाय और श्री चवलेश्वर पार्श्वनाथ २७९ की देखरेख पहिले कोटड़ी, पारोली श्वेतांवर जैन संघ करता रहा-सके कतिपय प्रमाण वहां के संघों के आधीन विद्यमान हैं । आज कल इसकी व्यवस्थाका भार बागंदार दि० जैन संघके आधीन है। इस संघका मंत्री अपने को श्वेतांबर और दिगंवर के मध्य प्रारंभ हुए एक अभियोगमें दोनों पक्षोंका मंत्री होना स्वीकार कर चुका है। तीर्थ को लेकर गत कई वर्षों से दोनों पक्षों में बराबर द्वंद्व चल रहा है। कई राजकीय निर्णय निकल चुके हैं और वे सर्व प्रायः श्वेताम्बर पक्षका अधिकार सिद्ध करते हैं। तीर्थ भले श्वेतांबर हो; पर उसको दोनों सम्प्रदाय बराबर मानते आ रहे हैं और दर्शन-पूजन का अधिकार दोनों का सर्व निर्णयों में अपनी २ आम्नाय अनुसार करनेका राज्यने स्वीकार किया है। पूर्व से चली आती प्रथा के अनुसार दोनों जहांतक चलते हैं वहां तक कोई विग्रह उत्पन्न नहीं होताः परन्तु ज्योंहि एक पक्ष कुछ अपनी लगाने लगता है कि यहां द्वन्द्व बढ़ जाता है और यह द्वन्द्व लगभग गत २५ वर्षों से तीव्रतर रहा है। अब तक कई निर्णय निकल चुके हैं और उनके आधारपर कई विवाद समाप्त भी हो चुके हैं । अधिकतर विवादों का प्रारम्भ दिगंबर भाइयों की ओरसे ही होता रहा है और उनके निर्णय श्वेतांबर पक्ष में प्रायः निकलते रहे हैं । इन निर्णयों की एक सूची-पुस्तक भी श्वेतांबर श्री चवलेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ कमेटी की ओर से कोई ३-४ वर्ष पूर्व प्रकाशित हो चुकी है। तीर्थ की वर्तमान स्थिति एवं व्यवस्था पर भी इस लेख में कुछ लिख देना लाभ कर ही होगा। (१) दोनों सम्प्रदायों का तीर्थ-भण्डार सम्मिलित रूप में है और वह श्री चवलेवर पार्श्वनाथ जैन तीर्थ भण्डार के नाम स विश्रुत है। श्वे० अथवा दि. जैसा कोई सम्प्रदायवाची शब्द उसमें प्रयुक्त नहीं है। (२) अब तक दोनों सम्प्रदाय इसको संमिलित तीर्थ के रूप में मानते रहे हैं और व्यय चाहे भण्डार से हो अथवा कोई अलग व्यक्ति द्वारा किया गया हो-वह एक पक्षीय नहीं माना जाता । (३) प्रति वर्ष पौष कृष्णा ९मी को श्री पार्श्वनाथ जन्मोत्सव मनाया जाता है । गत्रि को ठीक जन्म के समय मूर्ति का प्रक्षालन पूजारी करता है और दोनों सम्प्रदायों का मंदिर के भीतर, बाहर सामूहिक कीर्तन, स्तवन, भजन होते हैं। कभी अलग २ बैठकर मी करते हैं । (४) आरती आदि संध्याकालीन स्तवनक्रियायें सम्मिलित होती हैं । (५) दिन के ९ बजे दिगंबरभाई सेवापूजन से निवृत्त हो जाने चाहिए और तत्पश्चात् श्वेताम्बर भाई पूजन करते हैं । दर्शन, चैत्यवंदन तो एक-दूसरे के निश्चित समयावधियों में भी चालू रहते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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