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विषय खंड
वसंतगढ की प्राचीन धातु प्रतिमायें
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की चर्वा इस प्रतिमा के चित्र के साथ मैं ने Iconography of the Jaina Goddess Saraswati ( Journal of the University of Bombay, September 1941 ) में की है। वसन्तगढ़ की इस प्रतिमा में मुकुट और देवी का वस्त्र का अलंकरण दर्शनीय हैं। प्राचीन पश्चिमी भारतीय कला का यह एक उत्कृष्ट नमूना है और ई. स. ७०० आसपास के समय में यह प्रतिमा बनी हो ऐसा अनुमान होता है ।
आकृति नं. १० में दर्शित पार्श्वनाथ -प्रतिमा करीब १३ इंच ऊँची है जो तोरणयुक्त है। दोनों स्तम्भ के ऊपर भाग में छोटी चत्य-कमान ( Chaitya window ornament) और प्रतिमा के सबसे ऊपर के भाग पर भी ऐसी गवाक्ष-आकृति थी। इससे प्रतीत होता है कि यह प्रतिमा ई० स० ९ वीं सदी के अन्त या १० वीं सदी के आदि के भाग में धनी हो सकती है । भगवान् पार्श्वनाथ के दोनों बाजू में चामरधर खड़े हैं और पीठ से लगे हुए पक्षपर यक्ष-यक्षिणी है । सिंहासन और तोरणस्तम्भ के बीच में धरणेन्द्र और पद्मावती है । अभी उसमें पार्श्वनाथ की यक्षिणी अम्बिका रही है । ईसकी आकृति च शैली से भी लगता है कि यह प्रतिमा ई. स० ९०० -९५० के पीछे की नहीं होगी। ई० स० १०३१-३२ की बनी हुई तोरण-युक्त पार्श्वनाथ की षट्-तीर्थिक एक प्रतिमा वलन्तगढ़ से मिली ह जिसको देखने से (आकृति ११) यह हमारा अनुमान युक्तियुक्त लगेगा । इस प्रतिमा के पीछे लेख है (आकृति ११ अ)संवत् १०८८
महत्तमेन चचेन सज्जनेन च कारितम् श्यामनागतनयेन बिंब पुण्याय श्रद्धया कोरिंटक बृहच्चैत्ये श्रावकेण सुवासवा
सूर्यचन्द्रमसौ यावनंदतां जनपूजितम् ॥ ___ अब इस के बाद की ई. स. १०९४-९५ की एक और प्रतिमा आकृति नं. १२ में देखिये । यह प्रतिमा करीब १९.२ इंच ऊंची है, जब आकृति नं. ११ वाली प्रतिमा करीब १७.२ इंच ऊंची है। आकृति १२ के पीछे का लेख (देखो आकृति १२ अ) इस तरह है
संवत् ११५१ वीहिलतनुजश्राधः (तनुजः श्राद्धः) जसोवर्द्धन [संज्ञ] क [:] सोचीकर दिम रुच्यं चतुविसति (विंशति ) पटकं [पट्टकं ]
हमारे लिए यह धातुशिल्प महत्त्वपूर्ण है । प्राचीन पश्चिमी भारतीय कला के अन्त का और नयी प्रादेशिक मध्यकालीन शैलियों के उद्भव का संक्रांतिकाल का यह समय है । सं. १०८८ वाली प्रतिमा भी इसी सक्रान्तिकाल की है; किन्तु उसमें गूर्जरप्रतीहारों के समय के प्राचीन शिल्पों की छाया विशेषतः है।
पाठकों की जानकारी के लिए इसी संक्रान्तिकाल की सं. ११०२ ई. स. १०४५-४६ की एक और प्रतिमा, उसके लेख सहित, आकृति १३ और १३ अ में दी गई है।
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