________________
विषयखंड
वसंतगढ़ की प्राचीन धातु प्रतिमायें
२०५
-
आज से करीब पचास या कुछ ज्यादा वर्ष पूर्व वसन्तगढ़ में श्री शान्तिनाथ जैन मन्दिर के भूगर्भकमरे से प्राचीन जैन धातुप्रतिमाओं का संग्रह मिला था। उस मन्दिर का अभी तो जीर्णोद्धार हो चुका है । इसी मन्दिर में शान्तिनाथजी की एक प्रतिमा पर वि. सं. १५०७ का लेख है । वसन्तगढ़ के पास एक दूसरा छोटा सा गांव है जहाँ एक शिलालेख में वि. सं. १६०० में दो जैन साधु वसन्तगढ़ के तीर्थकी यात्रा को गये थे ऐसा उल्लेख है। प्राचीन जैन कथाग्रन्थों में वसन्तगढ़ नामक नगर के उल्लेख आते हैं । यह ग्रन्थोक्त वसन्तगढ़ और यह वाँतपरागढ़-वटाकर-वसन्तगढ़ एक है ऐसा निश्चितरूप से तो हम नहीं कह सकते; मगर हो सकता है कि श्री हरिभद्रसूरि की सम्मराइञ्चकहा में वर्णित वसन्तगढ यही स्थान हो । श्री हरिभद्रसूरि का समय ई० स० ७ वीं शती का उत्तरार्द्ध है।
जब यह धातुप्रतिमासंग्रह मिला तब इस स्थान में पूजा आदि की योग्य व्यवस्था शायद न होने के कारण यह संग्रह वसन्तगढ से बाहिर चला गया और इसका मुख्य हिस्सा पिंडवाडा के जैन मन्दिर में रक्खा गया है। कुछ प्रतिमायें नजदीक के दूसरे स्थानों में भी चली गई होंगी; मगर इसकी हकीकत हमें मालूम नहीं । कोई जैन भाई अगर इनको खोज कर प्रकाशित कर सके तो अच्छा होगा।
सज्जनरोड़ स्टेशन से करीब दो मील दूर बस-सर्विस से पिंडवाडा जा सकते हैं । वहाँ के श्री महावीरस्वामी-मन्दिर में अभी इन प्रतिमाओं की पूजा हो रही है। ई० स० १९४० या १९४१ में मैं जब वहाँ गया था तब कुछ प्रतिमायें (आकृति नं. ४-५-६) दिवार के साथ जड़ी हुई; मगर पूजा में थीं और कुछ वैसी बिन जड़ी हुई पूजा में थीं। दो बड़ी कायोत्सर्ग-स्थित-जिन प्रतिमायें गर्भगृह के प्रवेशद्वार के पास दोनों बाजू पर एक - एक पूजा में थीं। किन्तु एक और कमरे में अपूजित, कुछ खण्डित ऐसी थोडी प्रतिमायें भी थीं जिन में से वहाँ के पूजारी ने थोड़ी सी लाकर मेरे को दिखाई थीं। इन के जो फोटो मैने लिए थे उनमें से एक यहाँ आकृति नं. ३ रूपसे शामिल किया है।
इन धातुशिल्पों के विषय में इतिहास-प्रेमी मुनिश्री कल्याणविजयजी ने सब से प्रथम नागरी प्रचारिणी पत्रिका, नया संस्करण, वर्ष जिल्द १८, अङक २ पृ० २२१-२३१ में एक लेख लिखा था। जिस में काउसग्गिया पर के लेख का अवतरण और कुछ प्रतिमाओं के विषय में थोड़ी चर्चा, वर्णन आदि दिये थे। श्री. साराभाई नवाब ने अपने प्राचीन जैन तीर्थों वाले पुस्तक में इस काउसग्गिया का फोटो और इस लेख का पाठ दिये थे। उमाकांत शाह कृत आइकॉनोग्राफी ऑफ दी जैन गॉडेस सरस्वती नामक लेख, जो ई. स. १९४१ में जर्नल ऑफ दी बॉम्बे युनिवरसिटी में छपा था उस में इस संग्रह की एक मनोहर और कला तथा शिल्पशास्त्र की दृष्टि से महत्त्व की सरस्वती-प्रतिमा का फोटो दिया गया था। फिर उसी की कला की चर्चा वसन्तगढ़ की एक दूसरी प्रतिमा के चित्र के साथ और अकोटा की कुछ धातुप्रतिमाओं
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org