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विषयखंड
जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश
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तैयार की है। अकारादि क्रम से ज्ञातव्य जानकारी एवं साधननिर्देश के साथ उसे नीचे दी जा रही है
[१] अंचलगच्छ - इसका अपर नाम विधिपक्ष है । इस नाम की स्थापना सं. ११६९ में उपाध्याय विजयचंद्र [आर्य रक्षितसरि] से विधिमार्ग के पालन का पक्ष रखने से हुई। फिर श्रावकों के मुंहपति के स्थान पर वस्त्र का अंचल (छोर) से वंदनादि के विधान के कारण इसका नाम 'अंचल गच्छ' प्रसिद्ध हुआ । आज भी कई आचार्य व साधु इस गच्छ में विद्यमान हैं । कच्छ व काठियावाड (जामनगरादि) में इस गच्छ के श्रावकों के घर हैं । इस गच्छ के अनेक विद्वानों ने उपयोगी एवं महत्वपूर्ण ग्रन्थों का निर्माण किया व हजारों प्रतिमाएं उपदेश देकर श्रावकों से प्रतिष्टित करवाई । इस गच्छ की मान्यताओं का पता शतपदी, प्रवचनपरीक्षा, अंचलमतखंडनादि से भली भाँति मिल जाता है । शतपदी में इस गच्छ का संक्षिप्त इतिहास भी पाया जाता है । विशेष जानने के लिए म्होटी पट्टावली [शा. सोमचंद्र धारशी, कच्छ अंजार से प्रकाशित] व जैन गुर्जर कविओं भा. २ के परिशिष्ठ में प्रकाशित अंचलगच्छ पहावली का सार देखना चाहिये ।
सं. १२९४ की शतपदी में कई गच्छों के सम्बन्ध में महत्व की सूचनाएं मिलन से उन्हें भी यहाँ दिया जाता है
नाणक ग्राम के नाम से प्रसिद्ध नाणक गच्छ में [उद्योतनसूरि] चैत्यवासी आचार्य के लघुवय में ही दीक्षित सर्वदेवसूरि आगमों के अध्ययन से सुविहित मार्गानुयायी हुए । उन्हें गुरुश्री ने आबू के समीपवर्ती आवी और हरेली ग्रामों के मध्यवर्ती वड के नीचे छाणा के वासक्षेय से सूरिपद प्रदान किया । विशाल शिष्यसमुदाय व कई आचार्य होने से इनके समुदाय का नाम वृहद् या बड़गच्छ पड़ा।
सर्वदेवसरि के सन्तानीय यशोदेव उपाध्याय के शिष्य जयसिंघसूरि ने चंद्रावती के वीर जिनालय में एक साथ ९ शिष्यों को सूरिपद दिया जिनमें से शांतिसरि से पीपलीयागच्छ, देवेन्द्रसूरि से संगम खेडिया गच्छ, चंद्रप्रभसूरि, शीलगुणसूरि, पद्मदेवसरि
और भदेश्वरसूरि से पूनमीया गच्छ की ४ शाखायें चलीं । मुनिचंद्रसूरि के वादिदेवसरि हुए, बुद्धि सागरसूरि से श्रीमालिया गच्छ, मलयचंद्रसूरि से आशापल्लीय गच्छ निकला। इन्हीं जयसिंहसूरि के शिष्य विजयचंद्र उपाध्याय थे, जिनसे 'विधिपक्ष' गच्छ निकला । पूनमीया शीलगुणसूरि इनके मामा थे । लघुशतपदी (सं. १४५० में मेरूतुंगसूरिरचित) के अनुसार उ. विजयचंद्र को उनके शीलगुणसूरिशिष्य जयसिंहसूरि ने सूरिपद देकर आर्य रक्षितसूरि नाम दिया व आ. हेमचंद्र व कुमारपाल के समय इस गच्छ का नाम अंचल गच्छ प्रसिद्ध हुआ ।
___ अड्डालिजीय-संभवतः 'अडालिजा' स्थान के नाम से इसकी प्रसिद्धि हुई है। सं. ११३६ से १२७३ तक के ४ लेख प्राचीन लेख संग्रह भा. १ में प्रकाशित हैं।
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