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विषय खंड
श्री नमस्कार मंत्र महात्म्य की कथाएँ
सारा वृतान्त बतलाये हुए कहा कि में प्रतिदिन आपको बिजौरा भेट करूंगा ! यक्ष प्रतिदिन बिजौरा लाकर जिनदास को देता है और वह राजा को भेटकर उसका मनोरथ पूर्ण करता है। सारे नगर में प्रतिदिन का संहार दूर होने से आज यह उत्सव मनाया जा रहा है। सर्वत्र जिनदास सेठ और उसके वंश की प्रशंसा हो रही है जिसने समस्त नागरिकों को अभयदान दिया।
___ कुमार राजसिंह और मित्र नवकार मंत्र के महात्म्य का यह प्रत्यक्ष चमत्कार देखकर आगे बढे और क्रमशः चम्पावती नगरी पहुंचे। उन्होंने वहां एक आश्चर्य देखा कि छोटे बड़े सभी लोग जाप कर रहे थे। कुमार मे लोगों से इसका कारण पूछा, एक व्यक्ति ने कहा - हे नरश्रेष्ठ इस जपमाला की वार्ता सुनिये !
चण्डपिंगल चोर कथा इस चम्पावती नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता है। उसको मदनावली नामक साक्षात् इन्द्राणी के सदृश रूपवती पटरानी है । इसी नगरी में चण्डपिंगल नामक एक चोर बडा कठोर, अन्यायी और दुर्जेय था, उसने समस्त नागरिकों को बड़ा संत्रप्त कर रखा था । एकदिन उसने राजा के भांडागार में खात दी, और पटरानी के अत्यन्त मूल्यवान हार को निकाल कर ले गया । उस नगरी में कलावती नामक वेश्या बड़ी प्रसिद्ध थी जो कुछ श्राविका और कुछ मिथ्यात्वरत थी। चण्डपिंगल कलावतीपर आसक्त था। उसने वह हार उसे दे दिया। एकवार मदनत्रयोदशीपर्व के दिन सभी श्राविकाओंने श्रृंगार किया तो कलावती भी हार पहन कर उद्यान में गयी। पटरानी की दासीने कलावती के गले में पहने हुए हार को पहचानकर रानी से हार का अनुसन्धान बतलाया । रानी ने राजा से निवेदन किया । राजा ने तुरत प्रतिहार को आज्ञा दी कि वह चोर को पकड़ कर लावे । प्रतिहार ने अवसर देखकर चण्डलपिंगल को कलावती के यहां से गिरफ्तार कर लिया और राजसभा में पेश किया । राजाने उसे विडम्बनापूर्वक शूली का दण्ड दिया । जब कलावती को यह मालुम हुआ तो वह उसके पास गई और यह सोच कर कि इसने मेरे लिए अपने प्राण दिये तो मैं भी परपुरुष का त्याग करती हूं - उसने चण्डपिंगल से कहा- प्रियतम, नवकार मंत्र का जाप करो और यह नियाणा करो कि मैं मर कर राजकुमार होऊं । नियाणा के प्रभाव से उसने रानी की कुक्षि से जन्म लिया । राजा ने उत्सव महोत्सव पूर्वक उसका नाम पुरंदरकुमार रखा । कलावती ने दिनगणना से अनुमान कर लिया कि यह अवश्य मेरा प्रियतम् चण्डषिगल होगा। इसे अवश्य देखना चाहिए । वह राजमहलों में रानी मदनावलि के पास गयी और पुरंदरकुमार को हुलराते हुए जब वह रोता तो कहने लगती, रे चण्डपिंगल ! तुम क्यों रोते हो ? यह सुनकर बालक को जातिस्मरण ज्ञान हुआ, उसने पूर्वभव ज्ञात कर नवकार मंत्र का प्रभाव प्रत्यक्ष देखकर मन में विस्मित होकर रोना बंद कर दिया । जब राजकुमार पुरंदर बड़ा हुआ तो पिता के स्वर्गवासी होने पर सिंहासनारूढ हुआ और गणिका कलावती का उपकार स्मरण कर उसने उसे
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