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विषय खंड
श्री नमस्कार मंत्र महात्म्य की कथाएँ
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का स्वामी हो कर थोडे दिन में शिवकुमार नगर का प्रधान धनाढ्य हो गया। वह प्रतिदिन नवकार महामंत्र का जाप करता और सग्द्गुरु के वचनो से सम्यक्त्व प्राप्त कर यह स्वर्ण मय चैत्य निर्माण कराया और अन्त में शुभ भावों द्वारा स्वर्ग प्राप्त हुआ
कुमार राजसिंह ने यह वृतान्त श्रवण कर जिनेश्वर प्रभु के दर्शन किये और नवकार के प्रभाव से चमत्कृत हो मन्त्री पुत्र के साथ वहां से प्रयाण कर के पोतनपुर नगर पहुंचे। यहाँ घर घर में उत्सव देख कर राजसिंह ने लोगों से पूछा कि- इस नगर में आज क्या पर्व है ? लोगों ने कहा - कुमार, ध्यान देकर सुनिये ।
श्रीमती कथा इस पोतनपुर में धनदत्त नामक शुद्ध समकितधारी सेठ निवास करता था । उसको श्रीमती नामक अत्यन्त सुन्दर और सुशीला कन्या थी । एकदिन एक मिथ्यात्वी श्रेष्टिपुत्र श्रीमती के रूप पर मुग्ध होकर उससे पाणिग्रहन करने के लिए निमित्त कपटपूर्वक श्रावकपना धारण किया। वह प्रतिदिन जिन दर्शन करके भोजन करता । साधु साध्वियों का योग मिलने पर वन्दन करने जाता। उसने शक्रस्तव सीखा और लोगों के समक्ष कहता मैंने इतने दिन मिथ्यात्व में व्यर्थ गंवाएँ । अब जिनेश्वर प्रणित धर्म का मर्म प्राप्त कर शिवमत का त्याग कर कृतार्थ हुआ । इस प्रकार लोक प्रसिद्ध श्रावक हो कर उसने श्रीमती से पाणिग्रहण किया। श्रीमती उसके घर आई, तब वह पुनः जैसा का तैसा शैवधर्मी हो गया। श्रीमती घर का सारा काम करती पर मिथ्यात्व का अनुशरण कदापि नहीं करती। जिससे लास, लणंद, जिठानी आदि घर के सभी लोग उससे रूष्ट रहते और उन्हें नाना प्रकार के ताते कसे जाते । श्रीमती निर्विकार हो सब कुछ सहती, किन्तु अपने ब्रतनियमों पर दृढ रह कर जिन धर्म का पालन करती। एक दिन माता ने पुत्र को सिरवाया - तुम्हारी बहू धूतारी पाखण्ड का त्याग नहीं करती। अतः अपनी आशा को अमान्य करने वाली इस दुष्टा को मार कर दूसरी अच्छी बहू को लाओ। माता की शिक्षानुसार पुत्र ने श्रीमती का परिच्छेद समाप्त करने के लिए एक कृष्ण सर्प को गुप्तरूप से लाकर धडे में ढंक कर रखा। उसने श्रीमती से कहा- प्रिये घड़े में मैंने सुन्दर सुगन्धित पुष्प रखे हैं, निकाल कर लाओ। पतिज्ञता श्रीमती स्वामी की आशा पालन करने गयी ओर हृदय में अरिहंत्र का जाप करती हुई तीन नवकार गिन कर ज्योंही उसने घडे में हाथ डाला कृष्ण सर्प नवकार के प्रभाव से पुष्प रुप हो गया । श्रीमती ने उसे लाकर स्वामी को दिया । उसने चकित होकर घडे को देखा तो उसमें उत्तम सुगन्धी प्रस्फुटित हो रही थी। पति ने सोवा यह महान् सत्वशालिनी है, देवता भी इसकी सानिध्य करते हैं। मैं महापापी हूं जो ऐसी महिलारत्न को मारने के लिए उद्यत हुआ। उसने समस्त स्वजन परिजनों को एकत्र कर उनके समक्ष सारा चरित्र प्रकाश कर श्रीमती से क्षमा याचना की। और सारा कुटुम्ब जैन धर्मानुयायी हुआ। इस नकार मन्त्र के प्रभाव के हेतु ही आज नगर में यह उत्सव फनाया जा रहा है।
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