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विषय खंड
श्री नमस्कार महामंत्र
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ये तीर्णा भववारिधिं मुनिवरास्तेभ्यो नमस्कुर्महे । येषां नो विषयेषु गृध्यति मनो नो वा कषायैः ल्युतम् ॥ राग द्वेष विमुक् प्रशान्त कलुषं साम्याप्तशर्माद्वयं ।
नित्यं खेलति चात्मसंयमगुणा क्रीडे भजद्भावना ॥१॥ जिन महामुनिवरों का मन इन्द्रियों के विषयों में आसक्त नहीं होता, कषायों से व्याप्त नहीं होता, जो राग द्वेष से मुक्त रहते हैं, पाप कर्मों (व्यापारों) का त्याग किया है जिनने । समता द्वारा अखिलानन्द प्राप्त किया है जिसने और जिन का मन आत्मसंयम रप उद्यान में खेलता हैं । संसार से तिर जाने वाले ऐसे मुनिराजों को हम नमस्कार करते हैं । श्री मद् राजेन्द्र सूरिजी महाराज भी श्री नवपद पूजा में लिखते हैं कि -
संसार छड़ी घढ मुक्ति मंडी, कुपक्ष मोडी भव पास तोडी । निग्गंथ भावे जसु चित्त आत्थि, णमो भवि ते साहु जणत्थि ॥१॥ जे साहगा मुक्ख पहे दमीणं, णमो णमो हो भविते मुणिणं ।
मोहे नही जेह पडंतिधीरा, मुणिण मज्झे गुणवंत वीरा ॥२॥ जैसा कि उपर लिखा जा चुका है कि नमस्कार मंत्र में दो विभाग हैं नमस्कार और नमस्कार चूलिका । 'नमो लोए सव्व साहूणं' यहाँ तक के पाद पदों से पन्चपरमेष्टि को अलग अलग नमस्कार किया गया है। " एसो पञ्च (पंच) नमुक्कारो सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलं" यह चुलिका नमस्कार फल दर्शन है। जो नमस्कार मन्त्र के आदि के पांच पदों के साथ नित्य स्मरणीय है। कुछ लोग कहते हैं कि चुलिकानित्य पठनीय नहीं अपितु जानने योग्य है। परन्तु उनका यह कथन तत्थ्यांश हीन है। शास्त्राकारों की आशा है कि'त्रयस्त्रिंशदक्षर प्रमाण चूला सहितो नमस्कारों भणनीय :'
श्री अभिधान राजेन्द्र भा. ४ पृष्ट १८३६। अतः पैंतीस अक्षर प्रमाण मन्त्र और तेतीस अक्षर चूला। दोनों मिला कर अडसठ अक्षर प्रमाण श्री नमस्कार मन्त्र का स्मरण करना चाहिये न्युनाधिक पढना दोष मूलक है ।
प्रश्न-नमस्कार मन्त्र में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु यह नमस्कार का क्रम क्यों रखा गया है ?
उत्तर-श्री अरिहंत भगवान को सर्व प्रथम नमस्कार इसलिये किया जाता है। कि वे हमारे सर्व श्रेष्ठ उपकारक हैं। श्री सिद्ध भगवन्तों की अपेक्षा अरिहंत भगवन्तो का उपकार निकट का जो है। क्यों कि श्री अरिहंत भगवान तीर्थ के प्रवर्तक होते हैं। तीर्थ के द्वारा धर्ममार्ग की प्रवृति होती है। अतः तीर्थ के निर्माता सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान वीतराग श्री अरिहंत को ही सर्व प्रथम नमस्कार किया जाता है। अरिहन्त भगवान ही हमको सिद्ध भगवन्तों की स्थिति आदि समझाते हैं, और उनके द्वारा ही
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