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विषय खंड
श्री नमस्कार महामंत्र
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जिन्हों का अन्तःकरण जिनेश्वरों की आज्ञा में रत है । उन आचार्यवर्यो को बार बार नमस्कार हो जो आचार्य छत्तीस गुणों के धारक हैं । आचारका मार्ग जिन्होंने दिखलाया है । वे आचार्य तीर्थकर के समान है, जो जिनेन्द्र भगवान के शासन की शिरसा वहन करते हैं। जी सूत्रों के अर्थ को एवं मर्म को जनता के सामने रखते हैं । ऐसे आचार्य महाराज मेरे ( हमारे ) हृदय में वास करे ।
उपाध्याय
श्री भद्रबाहु स्वामि ने श्री आवश्यक निर्युक्ति में कहा है कि
बार संगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहियो बुहेहिं
तं वइ सन्ति जम्हा, उवज्झाया तेण वुञ्चंति ॥
श्री जिनेश्वर भगवान द्वारा प्ररुपित बारा अंगों ( द्वादशांगी) को पण्डित पुरुष स्वाध्याय कहते हैं । उनका उपदेश करने वाले उपाध्याय कहलाते हैं । अर्थात् “ उप समीपे अधि वसनात् श्रुतस्यायो लाभो भवति येभ्यस्ते उपाध्यायाः " याने जिनके पास निवास करने से श्रुत ( ज्ञान ) का आय याने लाभ हो उन्हें उपाध्याय' कहते हैं ।
श्री श्रमण संघ में आचार्य महाराज के पश्चाद् महत्वपूर्ण स्थान श्री उपाध्यायजी महाराज का होता है । वे संघस्थ मुनियों को द्वादशांगी का मूल से अर्थसे और भावार्थ से ज्ञान करवाते हैं । श्रमणों को आचार विचार में प्रवीण करते और चरित्र पालन के समस्त पहलुओं तथा उत्सर्ग अपवाद का ज्ञान कराते हैं । याँ तो श्री उपाध्यायजी महाराज साधु होने से साधु के सत्ताईस गुणों के धारक हैं ही । तथापि उनके पच्चीस गुण इस प्रकार दिखलाए हैं।
एसे
में है जिसके उप + अधि
में
उपाधि + इ घञ्
बना । घञ् की
१ उवज्झायाणं ( उपाध्यायेभ्यः ) सभीपार्थी उप और अधि पूर्व धातोः ) धातु से घञ् प्रत्यय होने पर उप + अधि + इ घञ् बना । | ६|१|१०१ सूत्र से पूर्व पर के स्थान में दीर्घादेश होने पर लशन्कतद्विते सूत्र से इत् संज्ञा और तस्यलोपः सुत्र से लोप हुवा । गिति |७|२|११५| सुत्र से अर्जता ग को वृद्धि । उपाधि + ह् + बना । उपाध्यै + अ । एचोज्यवायावः | ६ | ११७८ | सूत्र से ऐ के स्थान पर आय् हुवा घञ के शेष रहे अ में तब बना उपाध्याय । उपाध्याय का उवज्झाय इस प्रकार
तब उपाधि + इ + अ रहा । अचो
अ
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इङ् ( अध्ययने
अकः सवर्णे दीर्घः
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८|२| २६ | सूत्र से ध्या के शक्तार्थ वष्ड नमः स्वस्ति
पोवः | ८ |१| २३१ | सूत्र से पकार का वकार डुबा । साध्यस ध्य ह्यां झः स्थान पर ज्झा हुवा तब उवज्झाय बना । उवज्झाय से नमः के योग मे स्वाहा स्वधाभिः |२|२| २५ | सत्र से चतुर्थी का भ्यस् प्रत्यय आया । चतुर्थ्याः षष्ठी । सूत्र से भ्यस् के स्थान पर आम आया । उवज्झाय + आम । जस् शस ङसि तो दो द्वामि दीघः । सूत्र से अजन्तांग को दीर्घ हुवा टा आमोर्णः सत्र से आम के आकार का ण और अन्त्य मकार का मोज्नुस्वारः ||२३| से अनुस्वार होने पर उवज्झायाणं बनता है ।
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इको यण चि सूत्र से यण । आ मिला ध्यू में य मिला बनता है
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