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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
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अमर्मवेधितौदार्य, धर्मार्थ प्रतिबद्धता । कारकाध विपर्यासो, विभ्रमादिवियुक्तता ॥ ६९ ॥ चित्रकृत्वमदभुतत्वं, तथानतिविलम्बिता। अनेकजाति वैचित्र्यमारोपित विशेषता ॥७॥ सत्वप्रधानता वर्णपद वाक्य विविक्तता ।
अव्युच्छित्तिरखेदित्वं पंचत्रिंशच्च वाग्गुणा ॥७१ ॥ १ संस्कारवत्व - व्याकरणीय नियमों से युक्त (भाषा की दृष्टि से सब प्रकार के दोषों से रहित। २ औदात्य-उञ्चस्वर से उच्चारित । ३ उपचार परीतता-ग्रामीण दोषों से रहित। ४ मेघगम्मीर -घोषत्व- मेघ के जैसे गम्भीर घोषयुक्त। ५ प्रतिनादविधायिता-प्रतिध्वनिसे युक्त [चारों ओर दूर तक गुंजित होनेवाली]। ६ दक्षिणत्व - सरलता युक्त। ७ उपनीत -रागत्व - मालकोशादि रागों से युक्त अर्थात् संगीत की प्रधानतावाली। ये सात अतिशय शब्द की अपेक्षा से होते हैं । ८ महार्थता - दीर्घार्थवाली। ९ अव्याहतत्व- पूर्वापर विरोध से रहित (पहले कहा तथा बाद में कहा उस में किसी प्रकार का विरोध नहीं होना)। १० शिष्टत्व-अभिमत सिद्धान्त प्रतिपादक और वक्ता की शिष्टता की सूचक । ११ संशयानामसम्भवः - जिसके श्रवण से श्रोताजनों का संशय पैदा ही न हो। १२ निराकृतोऽन्योत्तरत्व - किसी भी प्रकार के दोष से रहित (जिस कथन में किसी प्रकार का दृषण न हो और न भगवान को वही दूसरी बार कहना पड़े)। १३ हृदयंगमता-श्रोताके अन्तःकरण को प्रमुदित करने वाली। १४ मिथः साकांक्षता-पदों और वाक्यों की सापेक्षता से युक्त । १५ प्रस्तावौचित्य - यथावसर देश काल भाव के अनुकूल । १६ तत्वनिष्ठता - तत्वों के वास्तविक स्वरूप को धारण करने वाली । १७ अप्रकीर्ण-प्रसृतत्व-बहुविस्तार और विषयान्तर दोष से रहित । १८ अस्वश्लाधान्यनिन्दिता - अपनी प्रसंशा और दूसरों की निन्दा इत्यादि दुर्गुण से रहित । १९ अभिजात्य -प्रतिपाद्य विषय के अनुरूप भूमिकानुसारी। २० अतिस्निग्धमधुरत्व-घृतादि के समान स्निग्ध और शर्करादि के समान मधुर । २१ प्रशस्यता - प्रशंसा के योग्य । २२ अमर्मवेधिता- दूसरों के मर्म अथवा गोप्य को न प्रकाश करने वाली। २३ औदार्य--प्रकाशन योग्य अर्थ को योग्यता से प्रकाशित करने वाली । २४ धर्मार्थ प्रतिबद्धता-धर्म और अर्थ से युक्त । २५ कारकाद्यविपर्यास - कारक, काल, लिंग, वचन और क्रिया आदि के दोषों से रहित । २६ विभ्रमादि-वियुक्तता-विभ्रम विक्षेप आदि चित्त के दोषों से रहित । २७ चित्रकृत्व-श्रोताजनों को निरन्तर आश्चर्य पैदा करने वाली। २८ अद्भुतत्व - अश्रुतपूर्व। २९ अनतिविलम्बिता - अति विलम्ब दोष से रहित । ३० अनेकजातिवैचित्र्य - नाना प्रकार के पदार्थो का विविध प्रकार से निरुपण करने वाली। ३१ आरोपित विशेषता - अन्य के वचनों की अपेक्षा विशेषता दिखालाने वाली । ३२ सत्वप्रधानता - सत्वप्रधान एवं साहसिक पन से युक्त । ३३ वर्णपद वाक्य विविक्तता - वर्ण, पद, वाक्यों का विवेक पृथक पृथक करने वाली । ३४ अन्युच्छित्ति प्रतिपाद्य विषय को अपूर्ण न रखने वाली। ३५ अखेदित्व-किसी भी
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