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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
एसो पंच नमुक्कारो: यह पांचों को किया हुवा नमस्कार। सव्व पावप्पणासणो:-सब पापों का नाश करने वाला है । मंगलाणं च सव्वेसिं:-और सब मंगलों में, पढमं हवइ मंगलं :-प्रथम मंगल हैं।
किस पद में कौन से अक्षर नमस्कार मंत्र के नौ पद और अडसठ अक्षर हैं। इसके प्रथम पदको तीन प्रकार से लिखा जाता है-णमो अरिहंताणं, णमो अरहंताणं और णमो अरुहंताणं । इन अरहंताणं और अरुहंताणं नहीं, अपीतु वास्तव में 'अरिहंताणं' ही लिखना चाहिये। श्री महानिशीथ सूत्र और श्री भगवती सूत्र में 'अरिहंताण' ही लिखा है । श्री आवश्यक सूत्र में तथा श्रीविशेषावश्यक भाष्य में श्री भद्रबाहु स्वामी और श्रीजिनभद्रगणी क्षमा श्रमण ने “अरिहंताणं" इस पद की ही व्याख्या की है।
___ दूसरा पद " णमो सिद्धाणं " है। यह सर्वत्र एक समान ही लिखा मिलता है। इस में किसी प्रकार का विकल्प नहीं है।
तीसरा पद " णमो आयरियाणं" है। इस पद को 'आयरियाणं, आयरीयाणं आइरियाणं और आइरीयाणं' इस प्रकार चार तरह से लिखा जाता है। परन्तु वास्तव में 'आयरियाणं' ही लिखना चाहिये, न कि आयरीयाणं, आइरियाणं या आइरीयाणं । श्री महानिशीथ सत्र के तीसरे अध्याय में और भगवती सूत्र में 'आयरियाणं'। आलेखित है। . चौथा पद ‘णमो उवज्झायाणं' है। लेखन दोष के कारण यह पद दो प्रकार से लिखा मिलता है-णमो उवज्झायाणं और णमो उबज्झायाणं । इनमें से प्रथम शुद्ध और दूसरा अशुद्ध है। उच्चारण भी प्रथम पद का ही होता है। न कि दूसरे पद का। महानिशीथ सूत्र में तथा भगवती सूत्र में णमो उवज्झायाणं ही लिखा है।
पांचवां पद ‘णमो लोए सव्व साहूणं' है। इस पद को अनेक मनुष्य ‘णमो लोये सब्ब साहुणं' एसे लिखते तथा बोलते हैं। जो अशुद्ध है । वास्तव में ‘णमो लोए सव्व साहूणं' ही लिखना तथा बोलना चाहिये । महानिशीथ सुत्र में यही पद प्राप्त है।
इन पांचों पदों के आदि में णमो आता है, यह भी दो प्रकार से लिखा जाता है। णमो और नमो ये दोनों शुद्ध हैं। क्यों कि नमो के नकार का 'वाऽऽदौ' ।८।१।२२९। सूत्र से विकल्प से णकार होता है। विकल्प का मतलब है कि एक पक्ष में होता है अथवा नहीं भी होता है। किन्तु नमस्कार मंत्र प्राकृत होने से नमो के स्थान पर णमो लिखना ठीक है।
१-देखो श्री अभिधान राजेन्द्र भाग २ पृष्ट १०५. २- देखो श्री अभिधान राजेन्द्र भाग ४ पृष्ट १८३५
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