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णमो समणस्स भगवओ सिरी महावीरस्स।
श्री नमस्कार महामंत्र लेखक:-श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश शिष्य मुनि देवेन्द्र विजय “साहित्य प्रेमी"
नमस्कार समो मंत्रः, शत्रुजय समो गिरिः।
वीतराग समो देवो, न भूतो न भविष्यति ॥१॥ जिस प्रकार वैदिक समाज में वैदिक मंत्रों तथा गायत्री मंत्रों का पारसी और ईशाइयों में प्रार्थना का महत्व है। उसी प्रकार श्री जैन शासन में श्री नमस्कार महामंत्र का महत्ताशाली स्थान माना गया है । धर्मोंपासक कोई भी प्राणी हो फिर वे अवस्था से बाल हो, वृद्ध हो, अथवा तरुण हो सब प्रत्येक समय नमस्कार महामंत्र का श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं । जिनेन्द्र शासन में इस मंत्राधिराज के समान दुसरा कोई मंत्र अथवा विधान नहीं है। आत्मिक साधना हो या व्यवहारिक कार्य हो, व्यापार हो अथवा परदेश गमन हो, मूल बात छोटे बडे सब कार्यों में सर्व प्रथम महामंगलकारी श्री आदि मंत्र (नवकार ) का ही स्मरण किया जाता है । पूर्वाचार्यों ने जितने भी आश्चर्य जनक कार्य किये हैं, जिन्हें सुनकर हम विश्मित हो जाते हैं । उन सब में भी नमस्कार मंत्र की आराधना का ही फल सन्निहित है । पंचमांग श्री व्याख्या प्रज्ञप्ती [भगवती] सूत्र का प्रारंभ नमस्कार मंत्र से मंगलाचरण करने के पश्वा ही किया गया है। श्री महानिशीथ सूत्र में भी लिखा है किः
" ताव न जायइ चित्तेण, चिन्तियं पत्थियं च वायाए ।
कारण समाढत्तं, जाव न सरिओ नमुक्कारो ॥" चित्त से चिन्तित, वचन से प्रार्थित और काया से प्रारम्भित कार्य वहीं तक सिद्धि को प्राप्त नहीं होते, जब तक कि नमस्कार मंत्र का स्मरण नहीं किया जाता।।
इस प्रकार महानिशीथ सूत्र ही नहीं, अपितु अनेक सूत्र-ग्रन्थों तथा पूर्वाचार्यों ने इस चौदह पूर्व के सार भूत नमस्कार महामंत्र की महत्ता दिखलाई है। ऐसे महा महिमावन्त नमस्कार का उच्चारण करते समय किस पदमें कितने और कौन से अक्षर होना चाहिये ? नमस्कार मंत्र का ही स्मरण क्यों करना चाहिये ? यह दिखलाना ही यहाँ हमारा ध्येय हैं। श्री महानिशीथ सूत्र के :___"तहेव च तदत्थाणुगमियं इक्कारस पय परिच्छिन्नं ति आलावगतित्तीखडक्ख परिमाणं 'एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ
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