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________________ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन पंथ विविध चौंकिये नहीं, जैनधर्म की बात तो एक उदाहरण के रूप में कह गया हूँ, किन्तु आज दुनियाभर के सारे सम्प्रदाय अपने अपने मजहब को ही सच्चा समझते हैं और दूसरों को झूठा ! इसके लिए भवानी, मिथ्यात्वी, म्लेच्छ, काफिर और नास्तिक जैसे शब्द भी बना रक्खे हैं उन्होंने । यह सब एकान्त-दृष्टि है। वीतराग की बताई हुई भनेकान्तदृष्टि उन सब का समन्वय करने के ही लिए है ! एकान्तदृष्टियों के दुराग्रह के कारण ही धार्मिक दृष्टि से भी आज मानवसमाज की चिन्दियाँ-चिन्दियाँ हो गई है । सब प्रकार के साम्प्रदायिक संघर्ष के मूल में उसी स्वत्वमोह की गर्जना है ! स्वत्वमोह के विजेता वीतराग वर्द्धमानस्वामी ने आज के तथाकथित जैनसमाज के ही लिए धर्मप्रवचन नहीं किया था, किन्तु : __ "सव्वजगजीवरक्खदयट्टयाए भगवया पावयणं सुकहियं ।” (जगत् के सभी जीवों की रक्षारूप दया के लिए भगवान ने प्रवचन कहा है ।) इसीलिये तो कहा जाता है, कि उनके समवसरण में मनुष्य ही नहीं, पशुपक्षी भी आकर उपदेश सना करते थे। कालमोह कालमोह दो प्रकार का है-प्राचीनत्वमोह और अर्वाचीनत्वमोह । जैसे अपनापन सत्य की पहिचान नहीं है, वैसे ही नयापन या पुरानापन भी सत्य की पहिचान नहीं है । अमुक वस्तु पुरानी है, इसलिए अच्छी है अथवा अमुक वस्तु नई है, इसलिये अच्छी है-यह कालमोह की आवाज है, किन्तु अमुक वस्तु सच्ची है, इसलिए अच्छी है यह विवेक को वाणी है। महाकवि कालिदास के शब्दों में: पुराणमित्येव न साधु सर्वम् न साधु सर्वम् नवमित्यवद्यम् । सन्तः परीक्ष्यान्यतरद्भजन्ते मूढः परप्रत्यय-नेहबुद्धिः ॥ [न सव पुराना होने से ही अच्छा माना जा सकता है और न सब नया होने से ही । सज्जन परीक्षा करके जो ठीक मालूम होता है, उसी को ग्रहण करते है (फिर भले ही वह नया हो या पुराना ) दूसरों के विश्वास पर चलने वाले तो मूढ हैं । ] यह बात एक चुटकुले से भी अच्छी तरह समझी जा सकती है :पहला आदमी-मेरा धर्म पाँच हजार वर्ष पुराना है। दूसरा ,, -मेरा मजहब पाँच लाख वर्ष पुराना है। तीसरा , -मेरा सम्प्रदाय पांच करोड वर्ष पुराना है। चौथा ,, –(पांचवे से) क्यों भाई, आप किसे अच्छा समझते हैं ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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