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विषय खंड
मोक्ष-पथ
कपड़ों का मैल दूर करने के लिये जैसे साबुन, पानी और धोने की क्रिया आवश्यक है, उसी प्रकार चित्त के मल को दर करने के लिये भी जीवन मक्त वीतराग पुरुषोत्तम के वचनों का ज्ञान, श्रद्धा और उसके अनुसार क्रिया आवश्यक है। जिस प्रकार पानी नहीं हो तो हजारों टन साबुन भी कपड़ा साफ नहीं कर सकता, उसी प्रकार श्रद्धा, दर्शन या भक्ति नहीं हो तो हज़ारों टन पुस्तकोंका शान भी चित्त शुद्धि के लिये बेकार है । जिस प्रकार साबुन नही हो तो भी पानी से मल दूर हो सकता है (चाहे चमक कम आवे) उसी प्रकार ज्ञान की कभी हो तो भी श्रद्धा से चित्त शुद्धि हो सकती है (चाहे प्रकाश कम हो ) परन्तु धोने की क्रिया तो अनिवार्य आवश्यक है । शान और श्रद्धा के साथ साथ आचरण न हो तो मोक्ष मार्ग में प्रगति ही नहीं हो सकती ।।
अब हमें यह सोचना है कि मोक्ष क्या वस्तु है ? जिसे हमें प्राप्त करना है । लिफाफे पर पता बराबर नहीं किया तो लिखी हुी सारी इबारत 'डेड लेटर ऑफिस' ( रद्दी के टोकरे ] में जायगी, उसी प्रकार मोक्ष के स्वरूप का पता नहीं हो तो सारी क्रियाएँ रद हो जायेंगी।
'मोक्ष' का अर्थ है छूटना - किससे छूटना ? हमको किसने बाँध रखा है ? कब बाँधा हैं ? क्या सचमुच हम बँधे हैं ? अनंत संतों के अनुभव में से यह एक ही आवाज निकली है कि निश्चय दृष्टी से आत्मा शुद्ध बुद्ध और मुक्त ही है - स्वरूपत : उसमें बंधन है ही नहीं, फिर भी व्यावहारिक दृष्टी से हम स्वयं अपनी मिथ्यात्वमयी धारणा से अनादि काल से बद्ध हैं - उस मिथ्यात्वमयी धारणा से छूटना ही सम्यग्दर्शन है, जो मोक्ष - पथ का प्रथम सोपान है।
उसके बाद राग द्वेष या क्रोध, मान, माया और लोभ के त्याग का अभ्यास प्रारंभ करना दुसरा सोपान है। परिग्रह का सर्वथा त्याग तीसरा सोपान है । मोह का सर्वथा त्य
था सोपान है। अशान का सर्वथा त्याग पांचवा सोपान है । और जब यह संपूर्ण अनुभूति हो जाती है कि कर्मो के साथ - जड़ तत्वों के साथ हमारा कोई सम्बन्ध नहीं और जब मन, वचन, काया की सारी प्रवृत्तियों शान्त हो जाती है तो सिद्धि हो गई । .
अब हम अपना विवेक करें कि हम कहाँ हैं ? मिथ्यात्व, अवत, प्रमाद, कषाय और योग रूप पंच आश्रवों का परित्याग ही मोक्ष है। झूठी समझ का त्याग मिथ्यात्व का त्याग है, मिथ्या आचरणों का त्याग अव्रत का त्याग है, आलस्य और असावधानी का त्याग प्रमाद का त्याग है, रागद्वेष का त्याग कषाय का त्याग है, और अंत में मन वचन काया की संपूर्ण प्रवृत्तीयों का त्याग योग का त्याग है, यही मोक्ष हे जो आत्मा की शुद्ध बुद्ध पर्याय है । वह दिन भन्द होगा जिस क्षण हम उस पर्याय की प्राप्ति कर चुके होंगे।
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