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विषय खंड
स्थाद्वाद की सैद्धान्तिकता
आदीपमाव्योमसमास्वभावं, स्याद्वादमुद्रानतिभेदि वस्तु ।
तन्नित्यमेवैकमनित्यमन्यदिति त्वदाशाद्विषतां प्रलापाः ॥ क्षणिकता में मानव जन्म के दूसरे क्षण ही मर जायगा। कार्य करता दूसरा होगा । कार्यकर्ता कार्य करने के दूसरे ही क्षण नष्ट हो जायगा। उसका फल कोई तीसरा ही अनुभवेगा। माता पुत्रजन्म देनेके दूसरे क्षण नष्ट हो जायगी । पुत्र को दूध पिलायेगा कौन ? पुत्र मातृहीन हो जायगा। दूध पिलायगी दूसरी माता। बड़े होनेपर सुख पुत्र का तीसरी ही माता देखेगी क्यों कि दुग्ध से पालक माता भी क्षण नष्ट हो जायगी । व माता का भी पुत्रजन्म देने का कष्टसहन वृथा होगा । पुत्रजन्म के अनंतर ही नष्ट होजायगा । पुत्रजन्म देकर भी माता निपुत्रीका रहेगी ऐसी स्थिति में यम-नियम सभी व्यर्थ होंगे । क्षणिकवाद में नियमों की आवश्यक्ता ही क्यों कर रहने लगेगी ? नियम पालनकर्ता नियम पालन के दूसरे क्षण ही नष्ट होजायगा । तो मुक्ति मृत को हो नहीं सकती और वह मरचुका तो मुक्ति मिलेगी किसे ? मुक्ति का अधिकार किसे ? जब मुक्ति मिलने की नही तो जप-तपव्रत-नियम-ब्रह्मचर्य का पालन ही करने की आवश्यक्ता नहीं होगी । चार्वाक से भी भयंकर नास्तिक मत ये होगा। वह तो मरने के पश्चात् दुसरा भव नहीं मानता जब कि यह तो एक भव ही नहीं मानता । एक भव में ही असंख्य जन्म-मरण करता है । इसके मत से किसी के पत्नी पति विवाहिता नहीं हो सकते । लग्नके पश्चात्की पति की पत्नी और पत्नी का पति मर जायगा । दोनों व्यभिचारी होगें। पति की पत्नी मर जाने से दूसरे क्षण दुसरी होगी और पत्नीके भी पति दूसरा होगा। यों असंख्य पति-पत्नी होगें । एकही देह में भला देह भी एक क्यों होगा ? वह भी तो क्षणविध्वंसी है। जब सभी वस्तु क्षणिक है तो किया जानेवाले कार्य का फल करनेवाले को मिल ही नहीं सकते । कारण के कार्य तो करने के अनंतर ही नष्ट होजायेगें । पुण्य और पाप, धर्म और कर्म सभी व्यर्थ । जब फल ही भोगने वाला न रहेगा तो फल किसका या फल भी उत्पन्न ही कैसे होगा? कारण कारणके रहते कार्य और कार्य के रहते फल । जब कारण ही नहीं तो कार्य ही क्या होगा? कार्य के अभाव में फल किसका? यो कार्य के नाशसे कृतप्रणाश और मानव रातदिन दुःख सुख भोगते दिखलाई देता है । पुण्य पाप तो किया ही नहीं और विना पुण्य पाप के सुखदुःख भोगे यह तो महा अनर्थवाद है। यह तो पोपाबाई के राज्य समान होगा कि टके सेर भाजी टके सेर खाजा । कर्म करे कोई और फल भुगते और । दुसरा जीव मारा किसीने और फाँसी में उसका गला छोटा पडता है तो किसी मोटे ताजी आदभी को फाँसी दे देना। किन्तु यह तो अनुचित है । क्षणिकवाद में स्मृति भी नहीं हो सकती । आज जिसने अनुभव किसी वस्तुका किया और वह तो दूसरे ही क्षण विनश्वर होगा । याद रखेगा कौन ? ऋण देगा एक लेनेवाला कोई दूसरा होगा । दाता देने के पश्चात् और ऋणी ग्रहण के अनन्तर ही नहीं रहेंगे तो आगे ऋण चुकायेगा कौन और दाता मरधुका ऋण पुनः लेगा कौन ? एकवार स्वयं बुद्धनें अपने शिष्यों को कहा-“देखो, यह मेरे पैर में जो काँटा लगा उसका कारण है मेंने ९९ भव पहले एक आदमी को शूली पर चढाया
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