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शुभाशीष / श्रद्धांजलि
अनूठे विद्वान
ऋषभ कुमार जैन जिला आडीटर "ईशुरवारा "
"यथा नाम तथा गुण" की कहावत को चरितार्थ करने वाले पंडित दयाचंद जी साहित्याचार्य वास्तव में दया के भण्डार और ज्ञान के धनी थे । सिद्धांत के मर्मज्ञ विद्वान होने के साथ साथ पंडित जी बड़े सरल हृदयी थे, मैं उनको बार- बार प्रणाम करता हूँ अपनी विनयांजलि प्रस्तुत करता हूँ ।
अंतिम समय में मैं पंडित जी के समीप ही था । भगवान बाहुबलि जी का महामस्तिकाभिषेक दि. 12/2/2006 को सम्पन्न हो रहा था। पंडित जी अपने ध्यान में लीन थे। ऊपरी शरीर की गति कुछ और किन्तु अंतरंग में सम्यग्दर्शन की लहरें हिलोरे ले रही थी । पंडित मरण का यह कैसा अनुपम अद्भुत दृश्य था। इसे देखकर स्वयं अनुभव किया जा सकता था । पंडित जी ने अपनी इहलीला दोपहर 12.50 मि. पर शुभ मुहूर्त में समाप्त की । पंडित जी सतत जागरूक निश्छल, भद्रपरिणामी व्यक्ति थे उनके श्री चरणों में अपनी विनयांजलि पुन: समर्पित करता हूँ ॐ शांति ।
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मेरे श्रद्धेय पंडित जी
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नीरज जैन, पार्षद लक्ष्मीपुरा, सागर
बुंदेलखण्ड माटी के सपूत आदरणीय डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य काफी सरल व सादगी के प्रतीक थे और देश के वरिष्ठ विद्वान थे। मैं आशा करता हूँ कि इनका ग्रन्थ पढ़कर सभी वर्ग प्रेरणादायी हो लक्ष्मीपुरा वार्ड के निवासी रहे थे, वह हमारे विशेष परिचित रहे है ।
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
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स्मृति ग्रंथ प्रकाशन में मेरी विनम्र विनयांजलि
आर. के. जैन सीनियर आडीटर, सागर
पंडित जी ज्ञान और चरित्र की अद्वितीय मिशाल थे, सरस्वती ने तो उनके मुख में निवास बना लिया था । इस ज्ञान का उन्होंने आचरण से सभी को परिचय कराया, उनकी वाणी संतुलित एवं वात्सल्य से भरी थी ।
पंडित जी मेरे पितातुल्य थे, उन्होंने समय- समय पर सम्यग्दर्शन की गूढ़ न्यूनताओं पर मुझे समझाइश भी दी थी, जिससे आत्म तत्व की रूचि में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। उनके द्वारा रचित एक ग्रंथ "जैन पूजा काव्य एक चिंतन" का मैंने अध्ययन किया, जो कि भक्ति के क्षेत्र में एक उत्कृष्ट कृति के रूप में साबित हुई है। उनके पावन चरणों में प्रणाम करता हुआ, देवाधिदेव भगवान महावीर स्वामी से प्रार्थना करता हूँ कि अगली पर्याय में सीमंधर स्वामी के पादमूल में अर्हन्त होकर, सुख प्राप्त करें ।
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